Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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छठा अध्ययन - चौथा उद्देशक - दोहरी मूर्खता
२४१ RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR
विवेचन - जो साधु शीलसम्पन्न - आचारवान् हैं, कषायों के शांत होने से उपशांत हैं तथा विवेक पूर्वक संयम का पालन करते हैं ऐसे महात्माओं को अशील कहना अज्ञानियों का काम है। वे अज्ञानी स्वयं संयम का पालन नहीं करते हैं यह उनकी पहली मूर्खता है और संयम का पालन करने वाले महात्माओं को अशील कहना, यह उनकी दूसरी मूर्खता है।
(३७३) णियमाणा वेगे आयारगोयरमाइक्खंति।
कठिन शब्दार्थ - णियमाणा - संयम से निवृत्त हुए, आयार गोयरं :- आचार विचार का, आइक्खंति - कथन करते हैं। ... भावार्थ - कुछ साधक संयम से निवृत्त होकर भी (मुनि वेश का त्याग कर देने पर भी) आचार सम्पन्न मुनियों के आचार विचार का बखान करते हैं।
. (३७४) . णाणब्भट्ठा दंसणलूसिणो णममाणा एगे जीवियं विष्परिणामंति।
कठिन शब्दार्थ - णाणभट्ठा - ज्ञान से भ्रष्ट, दसणलूसिणो - दर्शन के नाशक, णममाणा - नत होते हुए - ऊपर से विनय करते हुए, विप्परिणामंति - नाश कर देते हैं।
भावार्थ - जो ज्ञान से भ्रष्ट हो गये हैं वे दर्शन (सम्यग्दर्शन) के भी विध्वंसक हो जाते हैं। कई साधक ऊपर से आर्चायादि के प्रति नत - समर्पित होते हुए भी संयमी जीवन को बिगाड़ देते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में ज्ञान भ्रष्ट और दर्शन भ्रष्ट साधकों से सावधान रहने की सूचना की गयी है। ... कोई साधक कर्मोदय से संयम का पूर्णतया पालन करने में समर्थ नहीं होते हैं फिर भी . उनकी प्ररूपणा शुद्ध होती है ऐसे साधकों के आचार में दोष होने पर भी उनके ज्ञान में कोई दोष नहीं है। अतः ये ज्ञान से भ्रष्ट न होने के कारण दर्शन को दूषित नहीं करते हैं परन्तु जो ज्ञान से भ्रष्ट हैं और अपने असंयम जीवन और शिथिलाचार का समर्थन करते हुए उसे शास्त्र सम्मत बताने की धृष्टता करते हैं वे दर्शन का नाश करने वाले महा अज्ञानी हैं।
ज्ञान-भ्रष्ट और दर्शन-भ्रष्ट स्वयं तो चारित्र से भ्रष्ट होते ही हैं अन्य साधकों को भी ।
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