Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRE
छठं अज्झयणं तइओ उद्देसो ___छठे अध्ययन का तीसरा उद्देशक .
दूसरे उद्देशक में कर्मों के धूनन (क्षय) का उपदेश दिया है किन्तु कर्मों का क्षय शरीर और उपकरणों की आसक्ति का त्याग किये बिना संभव नहीं है। अतः प्रस्तुत उद्देशक में शरीर और उपकरणों के धूनन का उपदेश दिया जाता है। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -..
(३५६) एयं खु मुणी आयाणं सया सुअक्खायधम्मे विधूयकप्पे णिज्झोसइत्ता।
कठिन शब्दार्थ - आयाणं - आदान - कर्म बंध का कारण जानकर, सुअक्खायधम्मेसुआख्यात - सम्यक् प्रकार से कथित धर्म वाला, विधूयकप्पे - विद्यूत कल्पी - आचार का . सम्यक् पालन करने वाला, णिज्झोसइत्ता - त्याग कर देता है।
भावार्थ - सर्वज्ञ प्रणीत धर्म का आचरण करने वाला और साधु के आचार को भलीभांति पालन करने वाला साधु मर्यादा से अधिक वस्त्रादि को कर्म बंध का कारण जान कर त्याग देता है।
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(३६०)
जे अचेले परिवुसिए तस्स णं भिक्खुस्स णो एवं भवइ परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूई जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीविस्सामि, उक्कसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि।
कठिन शब्दार्थ - वत्थे - वस्त्र, परिजुण्णे - जीर्ण हो गया है, जाइस्सामि - याचना करूँगा, सुत्तं - सूत्र - धागे (डोरे) की, सूई - सूई की, संधिस्सामि - सांधूंगा, जोडूंगा, सीविस्सामि - सीऊंगा, उक्कस्सिसामि - बड़ा बनाऊँगा, वोक्कसिस्सामि - छोटा बनाऊंगा, परिहिस्सामि - पहनूंगा, पाउणिस्सामि - ओढूंगा। "
भावार्थ - जो अचेल - अल्पवस्त्र से युक्त अथवा वस्त्र रहित जिनकल्पी, संयम में स्थित साधु होता है उसे ऐसी चिंता नहीं रहती कि मेरा वस्त्र जीर्ण हो गया है अतः मैं वस्त्र की याचना करूँगा, फटे हुए वस्त्र को सीने के लिए डोरे की याचना करूँगा, सूई की याचना करूँगा
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