Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पांचवाँ अध्ययन - चौथा उद्देशक - स्त्री संग एवं विषयों की उग्रता . २०१ RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRE
कठिन शब्दार्थ - पभूयदंसी - प्रभूतदर्शी - कर्मों के विपाक को देखने वाला, पभूयपरिणाणे - प्रभूत ज्ञान वाला, विप्पडिवेएइ - विप्रतिवेदयति - विचार करता है, परमारामो- परम आराम - मोहित करने वाली।
भावार्थ - प्रभूतदर्शी, प्रभूत ज्ञानी, उपशांत, समित (समिति युक्त) सहित (ज्ञानादि सहित) सदा यतनाशील मुनि स्त्री आदि के परीषह को देख कर पर्यालोचन करता है कि यह स्त्री आदि मेरा क्या कर सकती है?' अर्थात् संयम में रमण करते हुए यह मेरा कुछ नहीं कर सकती है। लोक में जो ये स्त्रियां हैं वे मोह रूप हैं, परमाराम-मोह में डालने वाली हैं और संयम ही परम सुख रूप है। निश्चय ही यह भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया है।
स्त्री संग एवं विषयों की उग्रता
.. (३०६) उब्बाहिजमाणे गामधम्मेहिं अवि णिब्बलासए, अवि ओमोयरियं कुज्जा, . अवि उई ठाणं ठाइजा, अवि गामाणुगामं दूइजिजा, अवि आहारं वुच्छिंदिज्जा, अवि चए इत्थीसु मणं।
कठिन शब्दार्थ - उब्बाहिज्जमाणे - पीड़ित किया जाता हुआ, गामधम्मेहिं - इन्द्रिय विषयों से, णिब्बलासए - निर्बल - निःसार अन्त प्रांतादि आहार करने वाला, ओमोयरियं - ऊनोदरी. तप, ठाणं - स्थान पर, ठाइज्जा - स्थित हो जाय, दूइज्जिज्जा - विहार करे, वुच्छिंदिज्जा - त्याग कर दे, चए - छोड़ देवे।
भावार्थ - इन्द्रियों के विषयों से पीड़ित किया जाता हुआ साधु निर्बल यानी अन्त प्रान्त आहार करे अथवा ऊनोदरी तप करे अथवा ऊंचे स्थान पर स्थित हो जाय यानी शीत और उष्ण काल में कायोत्सर्ग करके आतापना ले अथवा ग्रामानुग्राम विहार कर जाय अथवा आहार का त्याग कर दे किंतु स्त्रियों में मन को न जाने दे।
(३१०) . पुव्वं दंडा पच्छा फासा, पुव्वं फासा पच्छा दंडा, इच्चेए कलहासंगकरा भवंति। पडिलेहाए आगमित्ता आणविजा अणासेवणाए त्ति बेमि।
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