Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पांचवाँ अध्ययन - छठा उद्देशक - मुक्तात्मा का स्वरूप
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भावार्थ - स्रोत - आस्रवद्वार को दूर करने के लिये प्रव्रज्या धारण करके यह महान् . साधक अकर्म - कर्मरहित होकर लोक को - सभी पदार्थों को जानता देखता है। वह लोक में प्राणियों की गति और आगति को जान कर अर्थात् संसार परिभ्रमण के कारण का ज्ञान कर उन (विषय सुखों) की इच्छा नहीं करता। इस प्रकार जीवों की गति-आगति के कारणों को जान कर मोक्ष मार्ग में रत मुनि जन्म मरण के वृत्त (चक्राकार) मार्ग को पार कर जाता है। . मुक्तात्मा का स्वरूप
(३३०) सव्वे सरा णियति, तक्का जत्थ ण विजइ, मई तत्थ ण गाहिया, ओए अप्पइट्ठाणस्स खेयण्णे।
कठिन शब्दार्थ - सरा - स्वर, णियटुंति - निवृत्त हो जाते हैं, लौट जाते हैं, तक्कातर्क, ण विजइ - विद्यमान नहीं है, गाहिया - ग्राहक, ओए - ओज रूप - ज्योति स्वरूप, अप्पइट्ठाणस्स - अप्रतिष्ठान - मोक्ष का, खेयण्णे - खेदज्ञ - निपुण।
भावार्थ - सभी स्वर लौट जाते हैं यानी परमात्म स्वरूप को शब्दों के द्वारा नहीं कहा जा सकता है, वहां कोई तर्क नहीं है वह बुद्धि द्वारा ग्राह्य नहीं है। मोक्ष में वह समस्त कर्म मल से रहित ज्योतिस्वरूप खेदज्ञ (ज्ञानमय) है।
(३३१) ___ से ण दीहे ण हस्से ण वट्टे ण तंसे ण चउरंसे ण परिमंडले, ण किण्हे, ण णीले, ण लोहिए, ण हालिद्दे ण सुक्किल्ले ण सुरहिगंधे ण दुरहिगंधे ण तित्ते ण कडुए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे, ण कक्ख डे, ण मउए ण गरुए ण लहुए ण सीए ण उण्हे ण णिद्धे ण लुक्खे ण काऊ ण रुहे ण संगे ण इत्थी ण पुरिसे ण अण्णहा, परिण्णे सण्णे।
- कठिन शब्दार्थ - काऊ - काय या लेश्या, रुहे - कर्मबीज - जन्मधर्मा, संगे - संग युक्त, परिण्णे - परिज्ञः - सर्वात्म प्रदेशों का ज्ञाता, सण्णे - संज्ञः - ज्ञान दर्शन के उपयोग से युक्त।
भावार्थ - वह (सिद्ध आत्मा-परमात्मा) न दीर्घ है, न ह्रस्व है, न वृत्त है, न त्रिकोण है,
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