Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) @RRRRRRRRRRRRRRRRRRRR RRRRRRRRRRRRRRRR
कठिन शब्दार्थ - सोया - स्रोत - आस्रव द्वार, वियक्खाया - कहे गये हैं, संगंति - आसक्ति से - संग से कर्म बंध होता है।
भावार्थ - ऊपर स्रोत (कर्मों के आगमन - आस्रव के द्वार) हैं, नीचे स्रोत हैं और तिरछी दिशा में भी स्रोत कहे गये हैं। ये कर्मों के स्रोत यानी आस्रव द्वार कहे गये हैं। इनके संग से (आसक्ति से) कर्मों का बंध होता है, ऐसा तुम देखो। .
विवेचन - तीनों लोकों में स्रोत - विषयासक्ति के स्थान, कर्मों के आगमन के द्वार बताए हैं। ऊर्ध्वस्रोत है - वैमानिक देवांगनाओं या देवलोक के विषय सुखों की आसक्ति। अधोस्रोत है - भवनवासी देवों के विषय सुखों में आसक्ति। तिर्यक् स्रोत है - वाणव्यंतर देव, मनुष्य तिर्यंच संबंधी विषय - सुखासक्ति। इन स्रोतों - आस्रवद्वारों से साधक को सावधान रहते हुए, कर्मबंधन से बचना चाहिये।
(३२८) आवर्ट तु उवेहाए, एत्थ विरमिज वेयवी।
कठिन शब्दार्थ - आवटें - आवर्त को, उवेहाए - देखकर, विरमिज - विरत हो जाय, वेयवी - आगमविद्।
भावार्थ - आगमविद् - आगम को जानने वाला पुरुष आवर्त (विषयासक्ति रूप भावावर्त) को देखकर उससे निवृत्त हो जाय।
विवेचन - किसी किसी प्रति में 'एत्थ विरमिन वेयवी' के स्थान पर 'विवेगं किट्टइ वेयवी' ऐसा पाठ भी मिलता है। जिसका अर्थ है - आगम को जानने वाला पुरुष आस्रवों के निरोध से कर्मों का अभाव बताता है।
(३२६) विणइत्तु सोयं णिक्खम्म एस महं अकम्मा जाणइ, पासइ, पडिलेहाए णावकंखइ, इह आगई गई परिण्णाय अच्चेइ जाइमरणस्स वट्टमग्गं विक्खायरए।
कठिन शब्दार्थ - विणइत्तु - हटाने के लिए, णिक्खम्म - निष्क्रमण - दीक्षा लेकर, अकम्मा - अकर्म - कर्मरहित होकर, वट्टमग्गं - वट (वृत्त) मार्ग को, विक्खायरए - विख्यातरत-मोक्ष मार्ग में स्थित।
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