Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 够非您本本部本部參事奉奉來參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 न चतुष्कोण है और न परिमण्डल है। वह न काला है, न नीला है, न लाल है, न पीला है
और न सफेद है। वह न सुगंध वाला है और न दुर्गंध वाला है। वह न तीखा है, न कड़वा है, न कषैला है, न खट्टा है और न मीठा है। वह न कर्कश है, न कोमल है, न गुरु (भारी) है, न लघु (हल्का) है, न ठण्डा है, न गर्म है, न चिकना है और न रूखा है। वह कायवान् नहीं (अशरीरी) है अथवा अलेशी है, न जन्मने वाला है (अजन्मा है) और न संग वाला है (असंग-निर्लेप है) न स्त्री है, न पुरुष है और न अन्यथा यानी नपुसंक है। वह परिज्ञ (समस्त पदार्थों को विशेष रूप से जानने वाला) है और वह संज्ञ (समस्त पदार्थों को सामान्य रूप से जानने वाला) है।
(३३२) उवमा ण विज्जए, अरूवी सत्ता, अपयस्स पयं णत्थि।
भावार्थ - उसकी कोई उपमा नहीं है। वह अरूपी (रूप रहित) सत्ता है। वह अपद (पदातीत - वचन अगोचर) हैं उसका बोध कराने के लिये कोई पद नहीं है।
(३३३) से ण सद्दे, ण रूवे, णं गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चेयावंति त्ति बेमि। .
॥ छट्ठोद्देसो समत्तो॥
॥ लोगसार णामं पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥ भावार्थ - वह मुक्तात्मा न शब्द है, न रूप है, न गंध है, न रस है और न स्पर्श है। बस इतना ही है। ऐसा मैं कहता हूं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में मोक्ष एवं मुक्तात्मा के विषय में विशद विवेचन किया गया है।
इस संसार में जन्म मरण का कारण कर्म है। जो पुरुष जन्म मरण के कारणभूत कर्मों को सर्वथा क्षय कर डालता है वह मोक्ष पद को प्राप्त करता है। मोक्ष को शब्द के द्वारा प्रकट करना शक्य नहीं है। वह तर्क का भी विषय नहीं है। औत्पत्तिकी आदि चार प्रकार की मति उसको ग्रहण करने में समर्थ नहीं है, वह समस्त विकल्पों से अतीत है। उस परम पद रूप मोक्ष . में स्थित पुरुष अनंतज्ञान और अनंत दर्शन संपन्न होता है। वह शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श
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