Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२०२
आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 88888888888888888888888888888888888888888888
कठिन शब्दार्थ - दंडा - दण्ड, फासा - स्पर्श, कलहासंगकरा - कलह के कारण अथवा राग द्वेष को बढ़ाने वाले, अणासेवणाए - सेवन न करने की, आणविज्जा - आज्ञा दे।
__ भावार्थ - स्त्री भोग में आसक्ति होने से पहले तो दण्ड प्राप्त होता है और पीछे नरकादि पीड़ाएं भोगनी पड़ती है अथवा पहले स्त्री स्पर्श होता है और पीछे दण्ड भोगना पड़ता है। इस प्रकार ये स्त्री संबंध कलह के कारण अथवा रागद्वेष को बढ़ाने वाले होते हैं। अतः स्त्री संबंधों को पूर्वोक्त अनर्थों का कारण समझ कर एवं जान कर सेवन न करने की आज्ञा दे अर्थात् सेवन . न करे, ऐसा मैं कहता हूं।
(३११) से णो काहिए, णो पासणिए, णो संपसारए णो मामए णो कयकिरिए, वइगुत्ते, अज्झप्पसंवुडे, परिवजए सया पावं, एयं मोणं समणुवासिजासि-त्ति बेमि।
॥ पंचमं अज्झयणं चउत्थोद्देसो समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - काहिए - कहे, पासणिए - देखे, संपसारए - संप्रसारण करे, मामए- ममत्व, कयकिरिए - वैयावृत्य, वइगुत्ते - वचन गुप्त, अज्झप्पसंवुडे - अध्यात्म संवृत्त, परिवज्जए - वर्जित करे।
भावार्थ - ब्रह्मचारी कामकथा - कामोत्तेजक कथा न करे, राग पूर्वक स्त्रियों के अंगोपांगों को न देखे, परस्पर कामुक भावों - संकेतों का प्रसारण न करे, उन पर ममत्व न करे, उनकी वैयावृत्य न करे, वाणी का संयम रखे, स्त्रियों के साथ विशेष आलाप संलाप.न करे, स्त्री भोगों में चित्त न दे, सदा पाप का परित्याग करे। इस प्रकार मुनिव्रत का सम्यक् प्रकार से पालन करे - ऐसा मैं कहता हूं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में स्त्री संग एवं विषयों की उग्रता का वर्णन करते हुए ब्रह्मचर्य की साधना पर बल दिया गया है। जो साधक शांत, दांत एवं तत्त्वदर्शी होता है उसे स्त्रियों से भय नहीं होता। वह यही चिंतन करता है कि 'यह स्त्रीजन मेरा क्या बिगाड़ सकती है' अर्थात् कुछ भी नहीं। संयम में विचरण करते हुए साधु की यदि इन्द्रियां उसे पीड़ित करे अथवा स्त्री आदि का परीषह उपस्थित हो जाय तो काम निवारण के निम्न छह उपाय आगमकार ने बताये हैं - .. १. नीरस भोजन करना - विगय त्याग २. कम खाना - ऊनोदरी करना ३. कायोत्सर्ग -
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org