Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
पांचवाँ अध्ययन - तृतीय उद्देशक - धर्म स्थिरता के सूत्र
६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ॐ ॐ ॐ ॐ
२. पूर्वोत्थायी पश्चान्निपाती जो पहले सिंह के समान संयम स्वीकार करते हैं किंतु बाद में श्रृगाल के समान वृत्ति वाले होकर संयम से पतित हो जाते हैं। ऐसे पुरुष दूसरे भंग के स्वामी हैं। जैसे कि पुंडरीक राजा का छोटा भाई कंडरीक मुनि (ज्ञाता सूत्र अध्ययन १९ ) ।
३. न पूर्वोत्थायी न पश्चान्निपाती जो न तो पहले दीक्षित होते हैं और न ही पीछे गिरते हैं। इस भंग के स्वामी गृहस्थ हैं और शाक्य आदि भी इसी भंग में हैं क्योंकि वे सावद्य योग का त्याग नहीं करते हैं अतः वे गृहस्थ के तुल्य ही हैं।
चौभंगी के हिसाब से एक चौथा भंग भी बन सकता है।
४. न पूर्वोत्थायी, पश्चान्निपाती - जो पहले संयम ग्रहण नहीं करता है और पीछे पतित हो जाता है। यह भंग शून्य है । इसलिये इस भंग को उपरोक्त सूत्र में नहीं लिखा गया है।
धर्म स्थिरता के सूत्र (२२)
इह आणाकंखी पंडिए अणिहे, पुव्वावररायं जयमाणे सया सीलं संपेहाए । कठिन शब्दार्थ - पुव्वावरायं - पूर्व रात्रि ( रात्रि का प्रथम प्रहर) और अपर रात्रि (रात्रि का अंतिम प्रहर) में, सीलं - शील एवं संयम को, संपेहाए भली प्रकार जान कर उसका पालन करे।
भावार्थ
-
Jain Education International
-
-
-
. इस विषय (उत्थान-पतन) को केवलज्ञान के द्वारा जान कर मुनि ने अर्थात् तीर्थंकर भगवान् ने कहा है । इस जिनशासन में स्थित पुरुष तीर्थंकर भगवान् की आज्ञा इच्छा करे, पंडित सत् और असत् का विवेक रखने वाला बने, स्नेह रहित ( रागद्वेष, आसक्ति रहित ) हों, पूर्व रात्रि और अपर रात्रि में यत्नपूर्वक सदाचार रहे और सदा शील को भली प्रकार जान कर उसका पालन करे ।
स्वाध्याय ध्यान में रत
(२६३)
-
सुणिया भवे अकामे अझंझे ।
भावार्थ शील एवं संयम पालन के फल को सुन कर अकाम अझंझ - मायादि से रहित बने ( होवे ) ।
For Personal & Private Use Only
१६१
-
काम रहित और
www.jainelibrary.org