Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) @@Rea@988@RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR .
४. श्रुत से व्यक्त और वय से व्यक्त - आचार ज्ञान से युक्त और १६ वर्ष से अधिक अर्थात् परिपक्व अवस्था वाला साधक कारण विशेष से गुरु आज्ञा से अकेला विचर सकता है।
___ कारण विशेष के अभाव में श्रुत और वय से व्यक्त साधक के एकाकी विचरण में कई दोषों की संभावनाएं होने के कारण ही आगमकार एकल विहार का निषेध करते हैं। .....
(३०५) वयसावि एगे बुइया कुप्पंति माणवा, उण्णयमाणे य गरे महया मोहेण मुज्झइ संबाहा बहवे भुजो-भुज्जो दुरइक्कमा अजाणओ, अपासओ, एयं ते मा होउ, एयं कुसलस्स दंसणं।
कठिन शब्दार्थ - वयसा - वचन से, बुइया - कहे हुए, कुप्पंति - कुपित हो जाते हैं, उण्णयमाणे - अत्यंत मान (अहंकार) करता हुआ, मुज्झइ - मोहित होता है, अजाणओदुःख निवृत्ति के उपायों को न जानता हुआ, संबाहा - बाधाएं, दुरइक्कमा - दुरतिक्रमाः - . दुर्लघ्य - पार करना अत्यंत कठिन।
भावार्थ - कई एक मनुष्य थोड़े से प्रतिकूल वचन सुनकर कुपित हो जाते हैं। स्वयं को उन्नत (ऊँचा) मानने वाला अभिमानी मनुष्य प्रबल मोह से मोहित (मूढ) हो जाता है। दुःखों की निवृत्ति के उपायों को न जानने वाले और दुःखों को सहन करने के फल को नहीं देखने वाले अपरिपक्व साधक को बार-बार बहुत-सी परीषह उपसर्ग जनित बाधाएं (पीड़ाएं) आती हैं जिन्हें पार करना उसके लिए अत्यंत कठिन होता है। अतः एकाकी विचरण का विचार तुम्हारे मन में भी न हो, यह कुशल पुरुषों (तीर्थंकरों) का दर्शन (उपदेश, अभिप्राय) है।
तहिडीए तम्मुत्तीए तप्पुरक्कारे तस्सण्णी तण्णिवेसणे जयं विहारी चित्तणिवाई पंथणिज्झाई पलिबाहिरे, पासिय पाणे गच्छिजा। से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचमाणे पसारेमाणे विणिवट्टमाणे संपलिमजमाणे।
कठिन शब्दार्थ - तहिड्डीए - उस (दर्शन, आचार्य-गुरु) में ही दृष्टि रखे, तम्मुत्तीए - उसी में मुक्ति माने, तप्पुरक्कारे - उसी को आगे रखे, तस्सण्णी - उसी में संज्ञान - स्मृति रखे, तण्णिवेसणे - उसी के सानिध्य में रहे, जयं विहारी - यतना पूर्वक विहार करे, .
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