Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पांचवाँ अध्ययन - चौथा उद्देशक - दोष युक्त एकल विहार 88@@@@@@8888888888888888888888888888888
दोष युक्त एकल विहार
! (३०४) गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स दुजायं दुप्परक्कंतं भवइ अवियत्तस्स भिक्खुणो।
कठिन शब्दार्थ - गामाणुगामं - ग्रामानुग्राम - एक ग्राम से दूसरे ग्राम को, दूइजमाणस्सविचरते हुए, दुजायं - दुर्यात - अवांछनीय (बुरा) गमन, दुप्परिक्कंतं - दुष्पराक्रांत - दुःसाहस से युक्त पराक्रम, अवियत्तस्स - अव्यक्त - वय और श्रुत में अगीतार्थ (अपरिपक्व)।
भावार्थ - अव्यक्त (अपरिपक्व-अगीतार्थ) साधु का ग्रामानुग्राम विचरण करना दुर्यात और दुष्पराक्रांत है यानी सुखप्रद नहीं है, उनके चारित्र का पतन होने की संभावना रहती है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अव्यक्त (अगीतार्थ) साधु के एकल विहार का निषेध किया गया है। जो साधु श्रुत में और वय (अवस्था) में परिपक्व नही है वह 'अव्यक्त' कहलाता है। • जो आचार कल्प का अर्थ नहीं जानता है और अवस्था में भी अल्प है ऐसा साधु यदि गच्छ से निकल कर अकेला विचरता है तो उसका विहार दोष युक्त होना संभव है क्योंकि मार्ग में अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्गों के आने से उसकी संयम से भ्रष्ट हो जाने की सम्भावना रहती है और जिस स्थान पर वह ठहरता है वहां पर भी अनेक दोष लगने की संभावना रहती है। इसीलिए आगमकार एकल विहार का निषेध करते हैं। - अव्यक्त की श्रुत और वय की अपेक्षा से चतुभंगी इस प्रकार है -
१. श्रुत और वय से अव्यक्त - जिसने नौवें पूर्व की तीसरी आचार वस्तु तक का अध्ययन नहीं किया है वह श्रुत से अव्यक्त है और १६ वर्ष की वय से जो नीचे का है वह वय से अव्यक्त है, जो श्रुत से भी अव्यक्त है और वय से भी अव्यक्त है उसका अकेला विचरना उचित नहीं है क्योंकि उसके संयम और शरीर की हानि संभव है।
२. श्रुत से अव्यक्त किंतु वय से व्यक्त - जो श्रुत-आचार के ज्ञान से तो अव्यक्त है किंतु वय से व्यक्त यानी १६ वर्ष से अधिक उम्र वाला है ऐसा साधक भी अकेला विचरण करे तो अगीतार्थ होने के कारण उसके भी संयम और शरीर की विराधना संभव है।
३. श्रुत से व्यक्त किंतु वय से अव्यक्त - आचार के ज्ञान से युक्त किंतु १६ या १६ वर्ष से कम अवस्था का साधक एकाकी विचरण करे तो अवस्था में छोटा होने के कारण वह सब का अपमान पात्र होता है।
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