Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR
भावार्थ - शस्त्र एक से बढ़ कर एक तीक्ष्ण से तीक्ष्णतर होता है किंतु अशस्त्र (संयम) एक से बढ़ कर एक नहीं होता। यानी संयम से उत्कृष्ट कुछ भी नहीं है।
विवेचन - शस्त्र के द्वारा प्राणियों को भय उत्पन्न होता है। वह शस्त्र दो प्रकार का कहा गया है - १. द्रव्य शस्त्र और २. भाव शस्त्र।
___ द्रव्य शस्त्र एक दूसरे से तीक्ष्ण से तीक्ष्ण होता है जिससे प्राणियों को भय होता है किंतु संयम (अशस्त्र) से किसी को भय नहीं होता। संयम सब प्राणियों को अभय देने वाला है। वह एक ही प्रकार का है। उसकी भिन्न भिन्न कक्षाएं नहीं हैं क्योंकि संयमधारी साधक पृथ्वी. आदि समस्त प्राणियों में समभाव रखता है। उसका किसी के साथ द्वेष नहीं होता। अथवा शैलेशी . अवस्था वाले संयम से बढ़ कर दूसरा संयम नहीं है क्योंकि उससे ऊपर कोई गुणस्थान नहीं है।
कषाय त्यागी की पहचान
(२१७) जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायादंसी, जे मायादंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पिज्जदंसी, जे पिजदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी, जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गब्भदंसी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से णरयदंसी, जे णरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी।
कठिन शब्दार्थ - कोहदंसी - क्रोधदर्शी - क्रोध को, क्रोध के स्वरूप को देखने वाला, माणदंसी - मानदर्शी, मायादंसी - मायादर्शी, लोहदंसी - लोभदर्शी, पिज्जवंसी - प्रेम (राग) दर्शी, दोसदंसी - द्वेषदर्शी, मोहदंसी - मोहदर्शी, गब्भदंसी - गर्भदर्शी, जम्मदंसी - जन्मदर्शी, मारदंसी - मृत्युदर्शी, णरयदंसी - नरकदर्शी, तिरियदंसी - तिर्यंचदर्शी, दुक्खदंसीदुःखदर्शी।
भावार्थ - जो क्रोधदर्शी होता है वह मानदर्शी होता है। जो मानदर्शी होता है वह मायादर्शी होता है। जो मायादर्शी होता है वह लोभदर्शी होता है। जो लोभदर्शी होता है वह प्रेमदर्शी होता है। जो प्रेमदर्शी होता है वह द्वेषदर्शी होता है। जो द्वेषदर्शी होता है वह मोहदर्शी होता है। जो मोहदर्शी होता है वह गर्भदर्शी होता है। जो गर्भदर्शी होता है वह जन्मदर्शी होता
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