Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
चौथा अध्ययन - चौथा उद्देशक - सम्यक्त्व-प्राप्ति
१७१ @@RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRO
' भावार्थ - अज्ञानी जीव नेत्र आदि इन्द्रियों को अपने-अपने विषयों से रोक कर भी मोहादि उदय वश फिर इन्द्रिय विषय आदि में आसक्त हो जाता है, वह कर्म बंधन का छेदन नहीं कर पाता है तथा शरीर और परिवार आदि के संयोगों को नहीं छोड़ सकता है। मोह रूपी अंधकार में पड़े हुए अपने आत्महित एवं कल्याण को नहीं जानने वाले उस अज्ञानी पुरुष को तीर्थंकर भगवान् की आज्ञा (उपदेश) का लाभ नहीं होता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
- विवेचन - कितनेक अज्ञानी जीव इन्द्रियों का निरोध करके भी मोह के उदय से फिर विषय भोग में आसक्त बन जाते हैं। रात दिन भोगों में रचे पचे रहने के कारण उनका अन्तःकरण राग द्वेष और महामोह रूप अंधकार से आवृत्त रहता है, उसे अर्हत् देव के प्रवचनों का लाभ नहीं मिल पाता, न उसे धर्म श्रवण में रुचि जागती है और न उसे कोई धर्माचरण करने की सूझती है। इसीलिए आगमकार ने 'आणाए लंभो णत्थि' कहा है यहाँ आणाए - आज्ञा के दो अर्थ किये हैं - १. श्रुतज्ञान और २. तीर्थंकर वचन या उपदेश। टीकाकार आज्ञा का अर्थ बोधि या सम्यक्त्व भी करते हैं।
सम्यक्त्व-प्राप्ति
(२५८) जस्स णत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कुओ सिया?।
भावार्थ - जिसको पूर्वकाल में बोधि-लाभ नहीं हुआ उसे आगामी काल में भी बोधिलाभ होने वाला नहीं है उसको मध्य में अर्थात् वर्तमान में बोधिलाभ कहां से हो सकता है? .
- विवेचन - मिथ्यात्व, प्रमाद, अविरति आदि के कारण जिस पुरुष को पूर्वभव में सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं हुई है तथा आगामी काल में भी होने वाली नहीं है उसको वर्तमान में भी सम्यक्त्व की प्राप्ति कैसे हो सकती है? अर्थात् जिस जीव को पूर्व भव में सम्यक्त्व की प्राप्ति हो चुकी है या आगामी जन्म में होने वाली है उसी को वर्तमान समय में सम्यक्त्व की प्राप्ति हो सकती है। जिसने सम्यक्त्व की प्राप्ति कर ली है किन्तु फिर मिथ्यात्व के उदय से सम्यक्त्व से पतित हो गया है उसको अर्द्ध पुद्गल परावर्तन में फिर सम्यक्त्व की प्राप्ति अवश्य हो जाती है।
टीकाकार ने इस सूत्र का एक अर्थ यों भी किया है - जो पुरुष विषय भोगों के कटु परिणाम को जान कर पहले भोगे हुए काम भोगों का स्मरण नहीं करता तथा भविष्य में भी विषय भोग की इच्छा नहीं रखता उसको वर्तमान काल में भोगों की इच्छा कैसे हो सकती है?.. अर्थात् नहीं होती।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org