Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चौथा अध्ययन - चौथा उद्देशक - संयम में पुरुषार्थ
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कठिन शब्दार्थ - आवीलए - आपीड़न - पीड़ित करे, पवीलए - प्रपीडन - विशेष पीड़ित करे, णिप्पीलए - निष्पीड़न - निश्चित रूप से पीड़ित करे, जहित्ता - त्याग कर, हिच्चा - प्राप्त कर, उवसमं - उपशम को। .
भावार्थ - मुनि पूर्व संयोग का त्याग कर और उपशम को प्राप्त कर अर्थात् असंयम को छोड़ कर तथा संयम को स्वीकार करके, इन्द्रिय विषयों और कषायों का उपशम करके आपीडन, प्रपीडन और निष्पीडन करे यानी तपस्या के द्वारा कर्म शरीर को पीड़ित करे, विशेष पीड़ित करे और निश्चित रूप से अच्छी तरह पीड़ित करे।
विवेचन - धन, धान्य तथा कलत्रादि के पूर्व संयोग को एवं असंयम को त्याग कर तथा संयम को स्वीकार करके नवदीक्षित मुनि पहले तपस्या के द्वारा आपीडन - शरीर को थोड़ा पीड़ित करे, फिर प्रपीडन - विशेष पीडित करे और अंतिम समय में शरीर को त्यागने की इच्छा करता हुआ साधु मासखमण तथा अर्द्ध मासखमण आदि तपस्या के द्वारा शरीर को निष्पीडन - निश्चय ही पीड़ित करे।
(२५४) तम्हा अविमणे वीरे, सारए समिए सहिए सया जए।
कठिन शब्दार्थ - अविमणे - अविमना - भोगों और कषायों में जिस का मन नहीं जाता है, सारए - स्वारत - तप संयम में रत। . भावार्थ - इसलिए मुनि अविमना, वीर, स्वारत, समित (पांच समितियों से युक्त) सहित (ज्ञानादि से युक्त) होकर सदैव संयम पालन में पुरुषार्थ करे।
(२५५) दुरणुचरो मग्गो वीराणं अणियट्टगामीणं। . कठिन शब्दार्थ - दुरणुचरो - दुरनुचर - कठिनाई से आचरण करने योग्य, वीराणं - वीरों का, मग्गो - मार्ग, अणियहगामीणं - अनिवृत्तगामी - मोक्षार्थी।
भावार्थ - मोक्ष में जाने वाले वीर पुरुषों का मार्ग दुरनुचर - कठिनाई से आचरण करने योग्य हैं।
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