Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीसरा अध्ययन - चतुर्थ उद्देशक - शस्त्र-अशस्त्र
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अयोगी केवली नामक चौदहवें गुणस्थान तक पहुँच जाता है। अथवा पर - अनंतानुबंधी कषाय क्षय से पर - दर्शन मोह - चारित्र मोह का क्षय अथवा घातीकर्मों का क्षय कर लेता है अथवा पर - तेजोलेश्या से पर - उत्तरोत्तर (विशिष्टतर) शुभ लेश्या को प्राप्त कर लेता है।
(२१३) एगं विगिंचमाणे पुढो विगिंचइ पुढो विगिंचमाणे एगं विगिंचइ। कठिन शब्दार्थ - विगिंचमाणे - क्षय करता हुआ, विगिंचइ - क्षय करता है।
भावार्थ - क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ साधक एक अनंतानुबंधी कषाय का क्षय करता हुआ पृथक् - अन्य दर्शनावरण आदि का भी क्षय कर लेता है। पृथक् - अन्य का क्षय करता हुआ एक अनंतानुबंधी कषाय का क्षय कर देता है।
(२१४) सड्डी आणाए मेहावी। भावार्थ - वीतराग की आज्ञा में श्रद्धा रखने वाला मेधावी होता है।
. ... (२१५) लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुओभयं। .
कठिन शब्दार्थ - लोगं - लोक (षड्जीवनिकाय रूप या कषाय रूप लोक) को, अभिसमिच्चा - जान कर, अकुओभयं - अकुतोभय - पूर्ण अभय - किसी को भय नहीं देता।
भावार्थ - साधक जिनवाणी के अनुसार छह काय जीव रूप लोक अथवा कषाय रूप लोक को जान कर त्याग देता है वह अकुतोभय - पूर्ण अभय हो जाता है, वह किसी भी प्राणी को भय नहीं देता है।
शस्त्र-अशस्त्र
(२१६) अस्थि सत्थं परेण परं, णत्थि असत्थं परेण परं।
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