Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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• चौथा अध्ययन - प्रथम उद्देशक - अहिंसा धर्म का निरूपण
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भावार्थ - यह अहिंसा रूप धर्म शुद्ध है, नित्य है और शाश्वत है। खेदज्ञ तीर्थंकरों ने समस्त लोक को सम्यक् प्रकार से जान कर इसका प्रतिपादन किया है। जैसे कि - जो धर्माचरण के लिए उत्थित - उठे हैं अथवा नहीं उठे हैं, जो धर्म सुनने के लिए उपस्थित हुए हैं या नहीं हुए हैं, जो प्राणियों को दण्ड देने से उपरत - निवृत्त हैं या अनुपरत हैं, जो उपधि से युक्त हैं या उपधि से रहित हैं, जो स्त्री, पुत्र आदि संयोगों में रत हैं अथवा संयोगों में रत नहीं हैं। - विवेचन - प्रस्तुत दो सूत्रों में अहिंसा धर्म का सम्यक् निरूपण किया गया है।
गत काल में अनंत तीर्थंकर हो चुके हैं और भविष्यत् काल में अनंत तीर्थंकर होंगे तथा वर्तमान में पांच महाविदेह क्षेत्र में जघन्य २० तीर्थंकर और उत्कृष्ट १६० तीर्थंकर विद्यमान हैं। उन सब का यही फरमाना है कि एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिये, उन्हें शारीरिक या मानसिक कष्ट न देना चाहिये तथा उनके प्राणों का नाश नहीं करना चाहिये। यह अहिंसा धर्म नित्य है, शाश्वत है। संसार सागर में डूबते हुए प्राणियों पर अनुकम्पा करके उनके उद्धार के लिए तीर्थंकर भगवंतों ने यह अहिंसात्मक धर्म फरमाया है।
प्रस्तुत सूत्रों में प्रयुक्त शब्दों के विशेष अर्थ इस प्रकार हैं - - आइक्खंति - आख्यान करते हैं - दूसरों के द्वारा प्रश्न किये जाने पर उसका उत्तर देना आख्यान-कथन कहलाता है।
भासंति - भाषण देते हैं - देव मनुष्यादि परिषद् में बोलना भाषण कहलाता है।
पण्णवेंति - प्रज्ञापन करते हैं - शिष्यों की शंका का समाधान करने के लिए कहना 'प्रज्ञापन' है। . ..
परूति - प्ररूपण करते हैं - तात्त्विक दृष्टि से किसी तत्त्व या पदार्थ का निरूपण करना 'प्ररूपण' कहलाता है। ___हंतव्या - डंडा/चाबुक आदि से मारना-पीटना।
अज्जावेयव्वा - बलात् काम लेना, जबरन आदेश (आज्ञा) का पालन कराना, शासित करना।
परिघेत्तय्या - बंधक या गुलाम बना कर अपने कब्जे में रखना। दास-दासी आदि रूप में रखना।
परितावेयव्वा - परिताप देना, सताना, हैरान करना, व्यथित करना। उहवेयव्वा - प्राणों से रहित करना, मार डालना।
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