Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भावार्थ - जो एक (अनंतानुबंधी कषाय ) को क्षय करता है वह बहुत ( बहुत सी कर्मप्रकृतियों) का क्षय करता है और जो बहुत का क्षय करता है वह एक का क्षय करता है।
कषाय-त्याग का फल
आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध)
88888 श्री
(२१२)
दुक्खं लोगस्स जाणित्ता, वंता लोगस्स संजोगं, जंति वीरा महाजाणं, परेणं परं जंति णावकंखंति जीवियं ।
कठिन शब्दार्थ - संजोगं - संयोग को, महाजाणं - महायान
मोक्ष पथ को, परेण
परं- आगे से आगे बढ़ते हुए मोक्ष को ।
भावार्थ - साधक लोक के दुःख को, दुःख के कारणभूत कषाय को जान कर उन्हें त्याग दे । धीर (वीर) साधक लोक के संयोग (धन पुत्र आदि में ममत्व कृत संबंध) को त्याग कर महायान - मोक्षपथ को प्राप्त करते हैं वे आगे से आगे बढ़ते जाते हैं उन्हें फिर असंयमी जीवन की आकांक्षा नहीं रहती है।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में कषाय त्याग की उपलब्धियों का वर्णन किया गया है। कर्म विदारण में समर्थ, सहिष्णु अथवा कषाय विजयी साधक को वीरा - वीर कहा गया है।
महाजाणं शब्द के टीकाकार ने निम्न अर्थ किये हैं
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१. महान् यान (जहाज), रत्नत्रयी रूप धर्म, महायान के समान है जो साधक को मोक्ष तक पहुँचा देता है।
२. महायान अर्थात् मोक्ष, रत्नत्रयी
३. महायान अर्थात् विशाल पथ निर्भय होकर चल सकते हैं।
"परेण परं जंति" का आशय है- कषाय क्षय करके आगे से आगे बढ़ना । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र का पालन करके कितनेक जीव अनुत्तर विमान तक देवलोकों को प्राप्त करते हैं और बाद में संपूर्ण कर्मों को क्षय कर मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस प्रकार पर अर्थात् संयम आदि के पालन से पर अर्थात् स्वर्ग और परम्परा से अपवर्ग (मोक्ष) भी जीव प्राप्त कर लेता है । अथवा पर - सम्यग्दृष्टि गुणस्थान ( चौथे) से उत्तरोत्तर आगे बढ़ते बढ़ते साधक
को महायान महान् यान मोक्ष कहा गया है।
राजमार्ग, संयम का पथ राजमार्ग है जिस पर साधक
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