Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) RRRRRRRR
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि अज्ञानी जीव किन किन कारणों से अप्काय का आरंभ-समारम्भ करते हैं। यह आरम्भ उस जीव के लिये अहितकारी और दुःखदायक होता है तथा अबोधि अर्थात् ज्ञान-बोधि, दर्शन बोधि और चारित्र बोधि की अनुपलब्धि के कारणभूत होता है अतः विवेकी पुरुष को अप्काय के आरम्भ से बचना चाहिये।
(२३) से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवइ, एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए। इच्चत्थं गढिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदयकम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ॥२३॥ .
भावार्थ - वह साधक हिंसा के उक्त दुष्परिणामों को समझता हुआ संयम-साधना में तत्पर हो जाता है। कितनेक मनुष्यों को तीर्थंकर भगवान् के समीप अथवा अनगार मुनियों के . पास धर्म सुन कर यह ज्ञात हो जाता है कि "यह अप्काय का आरम्भ (जीव हिंसा) ग्रंथ-ग्रंथि है, यह मोह है, यह मृत्यु है और यही नरक है।" फिर भी विषय भोगों में आसक्त जीव अपने वन्दन, पूजन और सम्मान आदि के लिए नाना प्रकार के शस्त्रों से अप्काय के आरम्भ में संलग्न होकर अप्कायिक जीवों की हिंसा करता है तथा अप्कायिक जीवों की हिंसा के साथ तदाश्रित अन्य अनेक प्रकार के त्रस-स्थावर जीवों की भी हिंसा करता है।
विवेचन - शंका - प्रस्तुत सूत्र में अप्काय के आरम्भ को मोह, मार (मृत्यु) और नरक क्यों कहा है?
समाधान - अप्काय आदि जीवों का आरम्भ, ग्रन्थ, मोह, मृत्यु और नरक का कारण है। इन कारणों से नरक आदि गति की प्राप्ति होती है। इसलिये कारण में कार्य का उपचार करके अप्काय के आरम्भ को ग्रन्थ, मोह, मृत्यु और नरक कहा है।
अप्काय सजीव है
(२४) .. से बेमि-संति पाणा उदयणिस्सिया जीवा अणेगे, इहं च खलु भो!
अणगाराणं उदयजीवा वियाहिया। सत्थं चेत्थं अणुवीइ पास। पुढो सत्थं पवेइयं।
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