Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參事
कुछ साधु वेषधारी 'हम अनगार-गृहत्यागी है' ऐसा कथन करते हुए भी नाना प्रकार के शस्त्रों से त्रसकाय की हिंसा में लग कर त्रसकायिक जीवों का आरम्भ समारम्भ करते हैं तथा त्रसकायिक हिंसा के साथ तदाश्रित अन्य अनेक प्राणियों की भी हिंसा करते हैं।
विवेचन - जो त्रसकाय का स्वयं आरम्भ समारम्भ नहीं करते हैं दूसरों से नहीं करवाते हैं और आरम्भ समारम्भ करने वालों का अनुमोदन भी नहीं करते हैं वे ही सच्चे अनगार हैं। ऐसे आत्म-साधकों को त्रसकाय का आरम्भ करने वाले वेषधारी साधकों से पृथक् समझने का सूत्रकार का निर्देश है। जो वेषधारी साधु अपने आप को अनगार कहते हुए भी त्रसकाय का आरम्भ समारम्भ करते हैं, वे वास्तव में अनगार नहीं हैं।
त्रसकायिक जीव हिंसा के कारण
.. . (५०) तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणण-पूयणाए, जाइमरणमोयणाए, दुक्खपडिघायहेर्ड, सें सयमेव तसकायसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा तसकायसत्थं समारंभावेड़, अण्णे वा तसकायसत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ, तं से अहियाए, तं से अबोहीए। ___ भावार्थ - इस विषय में निश्चय ही भगवान् ने परिज्ञा (विवेक) फरमाई है। इस जीवन के लिए अर्थात् इस जीवन को नीरोग और चिरंजीवी बनाने के लिए, परिवंदन प्रशंसा के लिए, मान के लिए, पूजा प्रतिष्ठा के लिए, जन्म मरण से छूटने के लिए और दुःखों का नाश करने के लिए वह स्वयं त्रसकायिक जीवों की हिंसा करता है, दूसरों से हिंसा करवाता है और हिंसा करने वाले का अनुमोदन करता है। यह हिंसा उसके अहित के लिए होती है, उसकी अबोधि के लिए होती है।
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(५१)
से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय सोच्चा भगवओ, अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवइ-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए। इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकायसमारंभेणं तसकायसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ।
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