Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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६४६४४४४ श्री
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(१२५)
अदिस्समाणे कयविक्कएसु, से ण किणे, ण किणावए, किणंतं ण
समणुजाणइ ।
कठिन शब्दार्थ - अदिस्समाणे - अदृश्यमान क्रय-विक्रय - खरीदने और बेचने में, किणे - खरीदे।
भावार्थ - क्रय विक्रय आदि कार्यों से निवृत्त साधु स्वयं कोई वस्तु न खरीदे, दूसरों से
भी क्रय न करवाएं और क्रय करने वाले का अनुमोदन भी न करे ।
विवेचन किन्तु क्रय
दूसरा अध्ययन - पांचवाँ उद्देशक - निर्दोष आहार ग्रहण
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साधु क्रय विक्रय यानी कोई भी वस्तु खरीदना या बेचना, यह कार्य न करे विक्रय के साधन भूत द्रव्य से रहित होकर विचरे ।
(१२६)
भिक्खु काणे - बलणे - मायणे - खेयण्णे-खणयण्णे - विणयण्णेससमयण्णे-परसमयण्णे - भावण्णे- परिग्गहं अममायमाणे, कालाणुट्ठाई, अपडिण्णे
दुहओ छेत्ता, णियाइ ॥ १२६ ॥
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कालज्ञ
काल को जानने वाला, बलणे बलज्ञ
कठिन शब्दार्थ - कालणे आत्म बल को जानने वाला, मायणे मात्रज्ञ - मात्रा (परिमाण) को जानने वाला, खेयण्णे खेदज्ञ - दूसरों के दुःख (पीड़ा ) को जानने वाला, खणयपणे
क्षणज्ञ-क्षण ( अवसर - समय ) को जानने वाला, विणयण्णे - विनयज्ञ- विनय को जानने वाला, ससमयण्णे
स्व समयज्ञ
पर समयज्ञ पर सिद्धान्त को जानने वाला,
भावज्ञ -
स्व सिद्धान्त को जानने वाला, परसमयण्णे भावण्णे ज्ञ भावों को जानने वाला, अममायमाणे मूच्छित न होता हुआ, कालाणुट्ठाई - कालानुष्ठायी - कालानुसार अनुष्ठान करने वाला, अपडणे अप्रतिज्ञ किसी प्रकार का भौतिक संकल्प निदान न करने वाला, नियाति - नियम पूर्वक संयम के अनुष्ठान में रत रहता है।
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छेत्ता
छेदन कर, या
भावार्थ - वह साधु कालज्ञ है, बलज्ञ है, मात्रज्ञ है, खेदज्ञ है ( क्षेत्रज्ञ है) क्षणज्ञ है विनयज्ञ है, स्व, समयज्ञ है, पर, समयज्ञ है, भावज्ञ है। परिग्रह में ममत्व न करने वाला,
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न देखा जाता हुआ, कयविक्क सु
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