Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दूसरा अध्ययन - छठा उद्देशक - धर्मोपदेश की विधि
११५ 888888888888888888888888888888888888 क्षेत्र, काल, भाव का विचार कर उपदेश देना वाला प्रशंसा का पात्र होता है। वह कर्म बद्ध अनेक मनुष्यों को प्रतिबोध देकर मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर कर देता है। बंधन से मुक्ति तो स्व-पुरुषार्थ से ही संभव है किन्तु धर्मोपदेशक उसमें प्रेरक बनता है इसलिए उसे एक नय से 'बंधमोचक' कहा जाता है।
(१५८) से सव्वओ सव्वपरिण्णाचारी ण लिप्पइ छणपएण, वीरे।
कठिन शब्दार्थ - सव्वपरिण्णाचारी - सर्व परिज्ञाचारी - सर्व परिज्ञाओं के आचरण करने वाला अर्थात् विशिष्ट ज्ञान से युक्त, सर्व संवर और सर्व चारित्र से युक्त, छणपएण - हिंसा के पद - स्थान से, ण लिप्पड़ - लिप्त नहीं होता।
भावार्थ - वह साधक सर्व प्रकार से सर्व परिज्ञाओं के आचरण करने वाला होता है। वह हिंसा से लिप्त नहीं होता है। वह वीर है।
(१५६) से, मेहावी अणुग्घायणस्स खेयण्णे जे य बंधपमुक्खमण्णेसी।
कठिन शब्दार्थ - अणुग्घायणस्स - कर्मों का नाश करने में, खेयण्णे - खेदज्ञ-कुशल, बंधपमुक्खमण्णेसी - बंध से मुक्त होने के उपाय का अन्वेषक।
भावार्थ - वह मेधावी (बुद्धिमान्) है जो कर्मों का नाश करने में कुशल है तथा कर्मों के बंधन से मुक्त होने के उपाय का अन्वेषण करता है।
विवेचन - "अणुग्घायणस्स खेयण्णे" का एक अर्थ अनुद्घात का खेदज्ञ भी किया है। अनुद्घात अर्थात् अहिंसा व संयम के रहस्यों को सम्यक् प्रकार से जानने वाला, 'अनुद्घात का खेदज्ञ, कहलाता है।
(१६०) कुसले पुण णो बद्धे, णो मुक्के। भावार्थ - कुशल पुरुष न तो बद्ध है और न मुक्त है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में कुशल शब्द केवली के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। केवली चार
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