Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीसरा अध्ययन - तृतीय उद्देशक - दुःखों से मुक्ति
१४३ 部带脚部部部非事事非事事部部脚部脚部部本部本部部形部部參事部等部事部部密密密
__ भावार्थ - राग और द्वेष से कलुषित आत्मा, जीवन की वंदना, मान और पूजा प्रतिष्ठा के लिए हिंसादि पापों में प्रवृत्त होती है। कितनेक जीव परिवंदन आदि के लिए प्रमाद करते हैं।
विवेचन - अज्ञानी मनुष्य अपने इस क्षण भंगुर जीवन को वंदनीय, माननीय और पूजनीय बनाने के लिये नाना प्रकार से पापाचरण करते हैं। दुहओ (दुहतः) शब्द के टीकाकार ने चार अर्थ किये हैं - १. राग और द्वेष दो प्रकार से २. स्व और पर के निमित्त से ३. इहलोक और परलोक के लिए ४. दोनों से-राग और द्वेष से जो हत है, वह दुर्हत है।
दुःखों से मुक्ति
(२०७) सहिओ दुक्खमत्ताए पुट्ठो णो झंझाए, पासिमं दविए लोए लोयालोयपवंचाओ मुच्चइ त्ति बेमि।
. ॥ तइओ उद्देसो समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - दुक्खमत्ताए - दुःख की मात्रा से, झंझाए - व्याकुल, दविए - द्रव्यभूत - शुद्ध संयम का पालन करने वाला, मोक्ष मार्ग पर गतिशील साधक, लोयालोयपवंचाओ - लोकालोक के प्रपंच से।
भावार्थ - ज्ञानादि से युक्त पुरुष दुःख की मात्रा से स्पृष्ट होने पर व्याकुल नहीं होता। हे साधक! तू यह देख कि द्रव्यभूत-मोक्ष मार्ग का पथिक, शुद्ध संयम का पालन करने वाला मुनि लोकालोक के प्रपंच से मुक्त हो जाता है। ऐसा मैं कहता हूं।
विवेचन - ज्ञानवान् साधक संयम के परीषह - उपसर्गों से नहीं घबराता हुआ समभाव पूर्वकं मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ता रहता है और अंत में सभी बंधनों से मुक्त हो कर शाश्वत सुखों का स्वामी बन जाता है। . ॥ इति तृतीय अध्ययन का तृतीय उद्देशक समाप्त॥
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