Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) @@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@REE
समयं शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. समता २. आत्मा और ३. सिद्धान्त। तीनों अर्थों को ध्यान में रखकर साधक को पाप कर्म-त्याग की प्रेरणा दी गई है। इसीसे आत्मा प्रसन्न होती है।
(१९६) अणण्णपरमं णाणी णो पमाए कयाइवि। आयगुत्ते सया धीरे, जायामायाइ जावए।
कठिन शब्दार्थ - अणण्णपरमं - अनन्यपरम - सर्वोच्च परम सत्य, संयम, आयगुत्तेआत्मगुप्त, जायामायाइ - संयम यात्रा मात्रा से, जावए - निर्वाह करे - कालयापन करे। _____भावार्थ - ज्ञानी मुनि संयम में कभी भी प्रमाद न करे। वीर पुरुष सदा आत्मगुप्त रहे। वह अपनी संयम यात्रा का निर्वाह मात्रा के अनुसार आहार से करे।
विवेचन - इस संसार में संयम से बढ़ कर दूसरा कोई पदार्थ नहीं है। अतः संयम के अनुष्ठान में मुनि को प्रमाद नहीं करना चाहिये। साधु इन्द्रिय और मन को पाप में न जाने देकर अपनी आत्मा की रक्षा करे और जितना आहार करने से संयम के आधारभूत शरीर का निर्वाह हो सके उतने से ही अपना निर्वाह करें किंतु अधिक आहार का सेवन न करे।
(१९७) विरागं रूवेहिं गच्छिज्जा महया खुएहिं वा। कठिन शब्दार्थ - विरागं - वैराग्य को, महया - महान् यानी दिव्य, खुाएहिं - क्षुद्र-तुच्छ।
भावार्थ - वह साधक छोटे या बड़े (दिव्य अथवा क्षुद्र) रूपों में वैराग्य - विरतिभाव - . को धारण करे।
(१९८) आगई गई परिण्णाय दोहिंवि अंतेहिं अदिस्समाणेहिं से ण छिज्जइ, ण भिज्जइ, ण उज्झइ ण हम्मइ कंचणं सव्वलोएं।
कठिन शब्दार्थ - अदिस्समाणेहिं - अदृश्यमानाभ्यां - अदृश्य करता हुआ, छिज्जइ. छेदा जाता, भिज्जइ - भेदन किया जाता, डझइ - जलाया जाता, हम्मइ - हनन किय जाता, कंचणं - किसी के द्वारा, सव्वलोए - सर्वलोक में।
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