Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीसरा अध्ययन - तृतीय उद्देशक - आत्मा का अतीत और भविष्य १३६ 部部來來來來聊聊邵邨邨邨帶來率部整形部部參事密部來聊聊部部邯郸部邮來來來來參够
भावार्थ - समस्त प्राणियों की आगति और गति को जान कर दोनों अंतों - राग और द्वेष को त्याग देने वाला पुरुष संपूर्ण लोक में किसी के द्वारा छेदन नहीं किया जाता, भेदन नहीं किया जाता, अग्नि आदि से जलाया नहीं जाता और मारा नहीं जाता है।
विवेचन - जो साधक शब्दादि विषयों में रागद्वेष नहीं करता है वह चार गतियों में गमनागमन का त्याग कर पांचवीं गति मोक्ष को प्राप्त कर लेता है एवं संसार के विविध दुःखों से मुक्त हो जाता है।
आत्मा का अतीत और भविष्य
. (१६६) अवरेण पुव्विं ण सरंति एगे, किमस्सतीतं? किंवाऽऽगमिस्सं? भासंति एगे इह माणवाओ, जमस्सतीतं तं आगमिस्सं।
कठिन शब्दार्थ - अवरेण - भविष्य के साथ, पुव्विं - पूर्वकाल की, सरंति - स्मरण करते हैं, अतीतं - अतीत - भूतकाल, आगमिस्सं - भविष्यकाल।
भावार्थ - कुछ अज्ञानी पुरुष भविष्यकाल के साथ पूर्वकाल का स्मरण नहीं करते। वे इसकी चिंता नहीं करते कि इसका अतीत क्या था, भविष्य क्या होगा? कुछ मूढमति - मिथ्याज्ञानी मानव यों कह देते हैं कि इस जीव का जो अतीत था, वही इसका भविष्य होगा।
(२००) __णाईयमलृ णय आगमिस्सं, अहूं णियच्छति तहागया उ, विहूयकप्पे एयाणुपस्सी, णिज्झोसइत्ता खवए महेसी। ... कठिन शब्दार्थ - णाईयमé - अतीतकाल के अर्थ को, णियच्छंति - स्मरण करते हैं, तहागया - तथागत-सर्वज्ञ (सिद्ध), विहूयकप्पे - विधूतकल्प - कर्मों का नाश करने वाला - जिसने विविध प्रकार से कर्मों को धूत - कम्पित कर दिया है ऐसे कल्प - आचार वाला, एयाणुपस्सी- इस प्रकार देखने वाला, णिज्झोसइत्ता - कर्मों का शोषण करके, खवए - क्षपक - क्षय करने वाला, महेसी - महर्षि ।
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