Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तइयं अज्झयणं
तृतीय अध्ययन का द्वितीय उद्देशक
तृतीय अध्ययन के प्रथम उद्देशक में सुप्त और जागृत पुरुष का वर्णन करने के बाद सूत्रकार इस द्वितीय उद्देशक में पाप करने वाले जीवों के दुःखों का वर्णन करते हैं । इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है
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तीसरा अध्ययन - द्वितीय उद्देशक - बंध और मोक्ष
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बीओ उद्देसओ
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बंध और मोक्ष (१७६)
जाईच वुद्धिं च इहज्ज पासे, भूएहिं सायं पडिलेह जाणे । तम्हाऽतिविज्जो परमंति णच्चा, सम्मत्तदंसी ण करेइ पावं ।
कठिन शब्दार्थ - जाइं जन्म को, वुद्धिं - वृद्धि को, अज्ज - आर्य, भूएहिं प्राणियों के, अतिविज्जो - अतिविद्य - अति विद्वान्, परमं परम - मोक्ष को, सम्मत्तदंसीसम्यकत्वदर्शी ।
भावार्थ - हे आर्य! तू इस संसार में जन्म और वृद्धि को अर्थात् जन्ममरण के दुःखों को देख तू प्राणियों को जान और उनके साथ अपने सुख का पर्यालोचन (विचार) कर ! इससे अतिविद्य बना हुआ साधक मोक्ष को जान कर और सम्यक्त्वदर्शी बन कर पापकर्म नहीं करता है । विवेचन प्रस्तुत गाथा में जन्म और वृद्धि को देखने की प्रेरणा की गयी है अर्थात् संसार में जीवों के जन्म और उसके साथ लगे हुए अनेक दुःखों को तथा बालक, कुमार, युवक और वृद्ध रूप जो वृद्धि हुई है उसके बीच आने वाले शारीरिक तथा मानसिक दुःखों का चिंतन करना है । ऐसे चिंतन से जीव की संमूढता दूर हो जाती है और किसी किसी जीव को पूर्व जन्मों एवं दुःखों का चिंतन करते हुए मृगापुत्र की तरह जातिस्मरणज्ञान भी हो जाता है।
भूएहिं सायं पडिलेह जाणे का भाव यह है कि संसार के सभी प्राणियों को जान कर उनके साथ अपने सुख की तुलना और पर्यालोचन करे कि जैसे मुझे सुख प्रिय है उसी प्रकार संसार के समस्त जीवों को भी सुखप्रिय है ऐसा समझ कर ऐसा कोई कार्य नहीं करे जिससे दूसरे प्राणियों को दुःख हो। ऐसा करने वाला जन्म और मरण के दुःखों से मुक्त हो जाता है।
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