Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 帮帮帮帮帮帮密密密密密密密密密密密密密部參事密密事***举幹幹事爭事部举举*******聯
कठिन शब्दार्थ - अणाइयमाणे - अनादर करता हुआ, सेयंति णत्थि - इस प्रकार श्रेयस्कर नहीं है।
भावार्थ - कदाचित् अनादर होने पर श्रोता उसको मारने भी लग जाता है अतः यह भी जाने। ऐसा जाने बिना उपदेश देना श्रेयस्कर नहीं है।
(१५७) - केयं पुरिसे कं च णए? एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए, उडं अहं तिरियं दिसासु।
भावार्थ - धर्मोपदेशक को यह जान लेना चाहिए कि. यह पुरुष कौन है? किसको नमस्कार करने वाला है? वही पुरुष प्रशंसनीय होता है, जो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को देख कर उपदेश देता है और वही ऊँची, नीची और तिरछी दिशाओं में कर्म बन्ध से बंधे हुए प्राणियों को मुक्त करने में समर्थ होता है। __विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में धर्म कथन करने की कुशलता का वर्णन है। धर्मोपदेष्टा समयज्ञ
और श्रोता के मानस को समझने वाला होना चाहिये। उसे श्रोता की योग्यता, उसकी विचारणा, उसका सिद्धान्त तथा समय की उपयुक्तता को समझना बहुत आवश्यक है। वह द्रव्य से समय को पहचाने। क्षेत्र से - इन नगर में किस धर्म सम्प्रदाय का प्रभाव. है, यह जाने। काल से - परिस्थिति को परखे तथा भाव से - श्रोता के विचारों व मान्यताओं का सूक्ष्म पर्यवेक्षण करे।
इस प्रकार कुशल पर्यवेक्षण किये बिना ही अगर वक्ता धर्मकथन करने लगता है तो कभी संभव है अपने संप्रदाय या मान्यताओं का अपमान समझ कर श्रोता उलटा वक्ता को ही मारने पीटने लगे और इस प्रकार धर्मवृद्धि के स्थान पर क्लेश वृद्धि का प्रसंग आ जाय। इसीलिए आगमकार ने कहा है कि इस प्रकार उपदेश-कुशलता प्राप्त किये बिना उपदेश न देना ही श्रेयस्कर है।
धर्मोपदेश की विधि का वर्णन करते हुए श्री तीर्थंकर भगवान् ने फरमाया है कि धर्मोपदेश करने वाले साधु के पास आकर यदि कोई धर्मविषयक प्रश्न करे तो उसके विषय में साधु को विचार करना चाहिये कि 'यह पुरुष कौन है?' 'यह मिथ्यादृष्टि है या भद्र स्वभावी?' 'यह किस अभिप्राय से धर्म पूछ रहा है?' 'यह किस दर्शन और किस देव को मानने वाला है?' इत्यादि बातों का निश्चय करने के पश्चात् समभाव से धर्म का उपदेश करना चाहिए। इस प्रकार द्रव्य,
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