Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - छठा उद्देशक - त्रस जीवों की हिंसा के विविध कारण ५१ .800000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - वह साधक हिंसा के दुष्परिणामों को समझता हुआ संयम साधना में तत्पर हो जाता है। कितनेक मनुष्यों को तीर्थंकर भगवान् के समीप अथवा अनगार मुनियों के समीप धर्म सुनकर यह ज्ञात हो जाता है कि यह त्रसकाय का आरम्भ (जीवहिंसा) ग्रंथ-ग्रंथि है, यह मोह है, यह मृत्यु है और यही नरक है। फिर भी विषयासक्त जीव अपने वंदन, पूजन और सम्मान आदि के लिए नाना प्रकार के शस्त्रों से त्रसकाय के आरम्भ में संलग्न होकर त्रसकायिक जीवों की हिंसा के साथ तदाश्रित अन्य अनेक प्रकार की जीवों की भी हिंसा करता है।
त्रस जीवों की हिंसा के विविध कारण .
से बेमि-अप्पेगे अच्चाए वहंति, अप्पेगे अजिणाए वहति अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, एवं हिययाए, पित्ताए वसाए-पिच्छाए-पुच्छाएबालाए-सिंगाए-विसाणाए-दंताए-दाढाए-णहाए-हारुणीए-अट्ठीए-अट्ठीमिंजाए-अट्ठाए-अणट्ठाए-अप्पेगे हिंसिंस्सु मेत्ति वा वहंति, अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहंति, अप्पेगे हिंसिस्संति मेत्ति वा वहति।
कठिन शब्दार्थ - अच्चाए - अर्चना-देवता की बलि, विद्या मंत्र आदि की सिद्धि अथवा शरीर श्रृंगार के लिए, वहंति - मारते हैं, अजिणाए - चर्म के लिए, मंसाए - मांस के लिए, सोणियाए - शोणित-रक्त के लिए, हिययाए - हृदय के लिए, पित्ताए - पित्त के लिए, वसाए - वसा चर्बी के लिए, पिच्छाए - पंख के लिए, पुच्छाए - पूंछ के लिए, वालाए - केशों के लिए, सिंगाए - सींगों के लिए, विसाणाए - विषाण-सूअर के दांत विशेष के लिए, दंताए - दांतों के लिए, दाढाए - दाढों के लिए, णहाए - नख के लिए, हारुणीए - स्नायु के लिए, अट्ठीए - हड्डी के लिए, अट्ठिमिंजाए - अस्थिमज्जा के लिए, अट्ठाए - अर्थप्रयोजन के लिए, अणट्ठाए - अनर्थ-बिना प्रयोजन से, हिसिंसु - हिंसा की, हिंसंति - हिंसा करते हैं, हिंसिस्संति - हिंसा करेगा।
भावार्थ - मैं कहता हूँ कि कुछ मनुष्य. अर्चा (देवता की बलि, विद्या मंत्र आदि की सिद्धि के लिए ३२ लक्षणवान् पूर्णांग पुरुष को अथवा शरीर श्रृंगार) के लिए त्रस प्राणियों की
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