Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) RRRRC @ 9888888@@@@@@@@@@@@@@@@@RRRRRRRBee में इन आरम्भों के कटु परिणामों से अनजान है। जो इन वायुकायिक जीवों पर शस्त्र प्रयोग नहीं करता है वास्तव में वही इन आरम्भों का ज्ञाता होता है।
विवेचन - वायुकाय, जीव है और वायुकाय का आरम्भ पाप का कारण है जब तक जीव यह नहीं जानता है तब तक उसका त्याग नहीं कर पाता है। जो वायुकाय के स्वरूप को अच्छी तरह जानता है वही वायुकाय के आरम्भ का त्यागी हो सकता है। आरम्भ में लगा पुरुष हिंसा संबंधि प्रवृत्तियों के कटु परिणामों से अनजान होता है।
(६१) तं परिणाय मेहावी व सयं वाउसत्थं समारंभेजा णेवण्णेहिं बाउसत्वं समारंभावेजा, जेवण्णे बाउसत्वं समारंभंते समणुजाणेजा। .
जस्सेए वाउसत्व-समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि। . भावार्थ - बुद्धिमान् पुरुष वायुकाय के आरम्भ समारम्भ को कर्म बन्ध का कारण जान कर स्वयं वायुकाय का समारम्भ न करे, न दूसरों से वायुकाय का समारम्भ करवाएं और वायुकाय का समारम्भ करने वालों का अनुमोदन भी न करे।
जिसने वायुकाय के समारम्भ को जान कर त्याग दिया है वही मुनि परिज्ञात कर्मा होता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र का सार यही है कि मुमुक्षु वायुकायिक जीवों पर किये जाने वाले . शस्त्र प्रयोग से उन्हें जो वेदना होती है और इससे जो कर्म बन्ध होता है उसे समझे और तीन करण तीन योग से वायुकाय के आरम्भ का त्याग करे। एक काय की हिंसा करने वाला छह काय
. हिंसा का भागी
एत्थं पि जाण उवाईयमाणा जे आयारे ण रमंति, आरंभमाणा विणयं वयंति, छंदोवणीया, अज्झोववण्णा, आरंभसत्ता पकरंति संग।
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