Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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. आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 8888888888888888888888888888888888888888888 पण्णाणेणं - अपनी बुद्धि को पूर्ण रूप से केन्द्रित कर के सूर्य की किरणों को केन्द्रित करने की तरह अथवा सभी प्रकार के विषयों के यथार्थ स्वरूप को अपनी प्रज्ञा से जान कर, अकरणिज्ज- अकरणीय। ... ..भावार्थ - वह ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप धन से सम्पन्न सब प्रकार के विषयों का प्रज्ञापूर्वक चिंतन कर अपनी आत्मा से पाप कर्म को अकरणीय - नहीं करने योग्य जाने।
छहकाय जीव हिंसा निषेध
तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं छजीवणिकायसत्थं समारंभेजा, णेवण्णेहिं छजीवणिकायसत्थं समारंभावेजा, णेवण्णेहिं छजीवणिकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेजा। ____जस्सेए छज्जीवणिकायसत्थसमारंभा परिणाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय- . कम्मे त्ति बेमि।
॥ सत्तमोइसो समत्तो॥ .
॥ पढमं अज्झयणं समत्तं॥ भावार्थ - बुद्धिमान् पुरुष छह काय के आरम्भ-समारम्भ को कर्म बन्ध का कारण जान कर स्वयं छह काय के जीवों का समारम्भ न करे, न दूसरों से छह काय का समारम्भ करवाएं और छह काय का समारम्भ करने वालों का अनुमोदन भी न करे।
जिसने छहकाय के समारम्भ को जान कर त्याग दिया है वही मुनि परिज्ञातकर्मा होता है, ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन - प्रस्तुत अध्ययन का सार यही है कि मुमुक्षु प्राणी छह काय जीवों पर किये जाने वाले शस्त्र प्रयोग से उन्हें जो वेदना होती है और परिणाम स्वरूप जो कर्म बंध होता है उसे समझे तथा समझ कर तीन करण तीन योग से छह काय जीवों के आरम्भ-समारम्भ का
त्याग करे।
॥ इति प्रथम अध्ययन का सातवां उद्देशक समाप्त॥ ॥ शस्त्र परिज्ञा नामक प्रथम अध्ययन समाप्त।
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