Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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• आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) . @@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@REE
बीयं अज्झयणं बीओ उदेसो द्वितीय अध्ययन का द्वितीय उद्देशक लोकविजय नामक दूसरे अध्ययन के प्रथम उद्देशक में सूत्रकार ने पारिवारिक एवं भौतिक सुख साधनों आदि के मोह त्याग की प्रेरणा दी है। अब इस द्वितीय उद्देशक में सूत्रकार संयम मार्ग में आने वाली अरुचियों का वर्णन करते हुए उन पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
अरति त्याग
अरई आउट्टे से मेहावी, खणंसि मुक्के।
कठिन शब्दार्थ - अरई - अरति (अरुचि) को, आउट्टे - निवृत्त होता है, त्याग करता है, खणंसि - क्षण भर में, मुक्के - मुक्त हो जाता है।
भावार्थ - वह बुद्धिमान् पुरुष है जो संयम में उत्पन्न हुई अरति का त्याग करता है। ऐसा व्यक्ति क्षण भर में ही मुक्त हो जाता है।..
विवेचन - संयम में रमण करना, आनंद अनुभव करना 'रति' है। इसके विपरीत चित्त की व्याकुलता, उद्वेगपूर्ण स्थिति 'अरति' है। रति का त्याग करने वाला क्षण भर में-अल्प समय में ही सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है।
सांसारिक विषय भोगों से मन को सर्वथा हटा कर एकान्त संयम में रति रखने वाला पुरुष जिस अपूर्व आनंद का अनुभव करता है वैसा चक्रवर्ती भी अनुभव नहीं कर सकता है।
(७७) अणाणाए पुट्ठा वि एगे णिवदृति मंदा मोहेण पाउडा।
कठिन शब्दार्थ - अणाणाए - अनाज्ञया-आज्ञा से विपरीत, पुड्डा वि - स्पृष्ट होकर, णियदृति - पतित (भ्रष्ट) होते हैं, मंदा - मंद-अज्ञानी जीव, मोहेण - मोह से, पाउडा - प्रावृत-घिरे हुए।
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