Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
दूसरा अध्ययन - तृतीय उद्देशक - धन अस्थिर और नाशवान् है ८३ 參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參那來來來來來來來
कठिन शब्दार्थ .- अणोहंतरा - अनोघंतर-संसार सागर को तैरने में असमर्थ, ओहं - ओघ-संसार समुद्र को, तरित्तए - तैरने में समर्थ, अतीरंगमा - अतीरंगम - तीर को प्राप्त नहीं कर पाए, अपारंगमा - अपारंगमा - पार पहुंचने में समर्थ नहीं, पारं गमित्तए - पार को प्राप्त करने में समर्थ। ____ भावार्थ - वे मूढ़ मनुष्य (अन्यतीर्थी) अनोघंतर है अर्थात् संसार प्रवाह को तैरने में समर्थ नहीं होते। वे अतीरंगम हैं, तीर-किनारे तक पहुंचने में समर्थ नहीं होते। वे अपारंगम हैं, पार - संसार के उस पार - मोक्ष तक पहुँचने में समर्थ नहीं होते।
विवेचन - तीर्थंकर प्रभु ने स्पष्ट कहा है कि सावध आरम्भ में जीवन व्यतीत करने वाले पुरुष कभी संसार सागर को पार नहीं कर सकते हैं।
(EE) आयाणिजं च आयाय, तंमि ठाणे ण चिट्ठइ। .: वितहं पप्पऽखेयण्णे तंपि ठाणंमि चिट्ठइ। .
. कठिन शब्दार्थ - आयाणिजं - आदानीय - सत्यमार्ग, संयम पथ, पांच आचार को, आयायः - ग्रहण करके, ठाणे - स्थान में, वितहं - वितथ, अखेयण्णे - अखेदज्ञ - अकुशल असंयम मार्ग-मिथ्या उपदेश का, पप्प - प्राप्त कर। .. भावार्थ - वह मूढ सर्वज्ञोक्त मार्ग (संयम पथ) को प्राप्त करके भी उसमें स्थित नहीं हो पाता और वह अकुशल पुरुष असत्मार्ग को प्राप्त कर उसी में ठहर जाता है अर्थात् असंयम मार्ग में ही रमण करता है। - विवेचन - टीकाकार ने आदानीय का अर्थ पांच प्रकार का आचार भी किया है तब उसका भावार्थ होता है कि परिग्रही मनुष्य पंच आचार में स्थित नहीं हो सकता। टीकाकार ने उपरोक्त सूत्र का एक अन्य अर्थ भी इस प्रकार किया है -
आदानीय अर्थात् ग्रहण करने योग्य संयम मार्ग में जो प्रवृत्त है वह उस मूल स्थान (संसार) में नहीं ठहरता जो अक्षेत्रज्ञ अज्ञानी, मूढ़ है वह असत्य मार्ग का अवलम्बन ले कर उस स्थान (संसार) में ठहरता है।
(१००) उद्देसो पासगस्स णत्थि।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org