Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 888888888
8 8888888888888 कठिन शब्दार्थ - उद्देसो - उपदेश, पासगस्स - पश्यकस्य-द्रष्टा, विवेकी तत्त्वज्ञ पुरुषों के लिए। ___भावार्थ - जो मनुष्य तत्त्वज्ञ/द्रष्टा/विवेकी है उसके लिए उपदेश की आवश्यकता नहीं होती।
. (१०१) ___ बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवर्ल्ड अणुपरियइ त्ति बेमि॥१०१॥ .
॥ बीअं अज्झयणं तइओद्देसो समत्तो॥ . कठिन शब्दार्थ - णिहे - राग युक्त, कामसमणुण्णे - कामभोगों में आसक्त, असमियदुक्खे - दुःख का शमन नहीं करता, दुक्खाणमेव - दुःखों के, आवर्ट - आवर्तचक्र में, अणुपरियट्टइ - परिभ्रमण करता है। ____ भावार्थ - अज्ञानी पुरुष जो राग के बंधन में बंधा है, काम भोगों, में आसक्त है वह कभी दुःख का शमन नहीं कर पाता। वह दुःखी होकर दुःखों के आवर्त में बार-बार भटकता रहता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन - जो वस्तु स्वरूप को देखने वाला है उसे ‘पश्यक' कहते हैं अथवा केवलज्ञान के द्वारा समस्त पदार्थों को जानने वाले तीर्थंकर भगवान् और उनकी आज्ञा में चलने वाले पुरुष ‘पश्यक' कहलाते हैं। इन सब के लिए उपदेश की कोई आवश्यकता नहीं है। वे स्वतः ही अहित से निवृत्ति और हित में प्रवृत्ति करते हैं।
रागादि से मोहित और विषय भोगों में आसक्त अज्ञानी पुरुष शारीरिक और मानसिक दुःखों से सदा पीड़ित होता हुआ संसार चक्र में परिभ्रमण करता रहता है। इसलिए विवेकी पुरुष को रागादि तथा विषय भोगों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिये।
|| इति दूसरे अध्ययन का तृतीय उद्देशक समाप्त॥
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