Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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.. दूसरा अध्ययन - प्रथम उद्देशक - प्रमाद-परिहार
णियगे पच्छा परिवएजा, णालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमं पि तेसिं णालं ताणाए वा, सरणाए वा। से ण हासाए, ण किड्डाए, ण रइए, ण विभूसाए।
कठिन शब्दार्थ - जेहिं - जिनके, सद्धिं - साथ, संवसइ - रहता है, णियगा - निजक-स्वजन-स्नेही, परिवयंति - तिरस्कार करते हैं, निंदा करते हैं, परिवएज्जा - निंदा करता है, ताणाए - त्राणाय - त्राण के लिए, सरणाए - शरण देने में, णालं - समर्थ नहीं है, हासाए - हंसी के लिए, किड्डाए - क्रीड़ा के लिए, रइए - रति के लिए, विभूसाए - विभूषा के लिए।
भावार्थ - वह जिनके साथ रहता है, वे स्वज़न (पत्नी, पुत्र आदि) कभी उसका तिरस्कार करने लगते हैं उसे कटु एवं अपमानजनक वचन बोलते हैं। बाद में वह भी उन स्वजनों की निंदा करने लगता है। वे स्वजन तेरी रक्षा करने में या तुझे शरण देने में समर्थ नहीं हैं। तू भी उन्हें त्राण या शरण देने में समर्थ नहीं हैं। वह वृद्ध पुरुष न हंसी-विनोद के योग्य रहता है, न खेलने के, न रति सेवन के और न ही श्रृंगार-विभूषा के योग्य रहता है। - विवेचन - वृद्धावस्था बड़ी दुःखरूप है। वृद्धावस्था के आने पर दूसरे लोग तो क्या किंतु अपने द्वारा पालन पोषण किये गये निज के पुत्र, पुत्री तथा पत्नी आदि आत्मीयजन भी उसकी निंदा करते हैं और कहते हैं कि यह बुड्डा कब मरेगा और कब इससे पिण्ड छूटेगा? इस प्रकार अनादर को प्राप्त हुआ बुड्डा दुःखी होकर उन्हें गालियां देता है। इस प्रकार वह वृद्ध पुरुष स्वयं भी दुःखी होता है और परिवार को भी दुःखी बनाता है। वृद्धावस्था में धर्म के अलावा कोई भी शरणदाता नहीं हो सकता है अतः वृद्धावस्था से पूर्व धर्म तथा संयम की शरण ले लेनी चाहिये।
'त्राण' का अर्थ रक्षा करने वाला है तथा 'शरण' का अर्थ आश्रयदाता है। 'रक्षा' रोग आदि से प्रतीकारात्मक है, 'शरण' आश्रय एवं संपोषण का सूचक है। आगमों में 'ताणं-सरणं' शब्द प्रायः साथ-साथ ही आते हैं। ' प्रस्तुत सूत्र में जीव की अशरणता एवं क्षण भंगुरता का वर्णन किया गया है।
- प्रमाद-परिहार
(६६) ___इच्चेवं समुट्ठिए अहोविहाराए अंतरं च खलु इमं संपेहाए धीरो मुहुत्तमवि णो पमायए। वओ अच्चेइ जोव्वणं च।
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