Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दूसरा अध्ययन - प्रथम उद्देशक - संसार का भूल - विषयासक्ति 8888888@@@@@@RRRRRRRR@@@@@98888@@@@@@@@@decisit :
अर्थात् क्रोध और मान शांत न किये हों तथा माया और लोभ बढ़ रहे हों तो आत्मा को मलिन बनाने वाले ये चारों कषाय पुनर्जन्म रूपी विष वृक्ष की जड़ों को सींचते हैं अर्थात् ये चारों कषाय जन्म मरण रूपी संसार को बढ़ाते हैं।
इस प्रकार शब्द आदि विषयों में आसक्त होना ही संसार वृद्धि का कारण है किंतु विषयासक्त पुरुष माता पिता स्वजन-संबंधी आदि में ममत्व स्थापित करके उनके सुख के लिए हिंसा, झूठ, चोरी आदि पाप कार्य करता है और दुःखी होता हुआ अपना संसार परिभ्रमण बढ़ाता है। इसी बात को सूत्रकार अगले सूत्र में स्पष्ट करते हैं -
(६६) - अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकालसमुट्ठाई संजोगट्ठी, अट्ठालोभी, आलुपे, सहसाकारे; विणिविट्ठचित्तं एत्थ सत्थे पुणो पुणो। ___कठिन शब्दार्थ - अहो य राओ - रात दिन, परितप्पमाणे - परितप्यमानः-चिंता से संतप्त रहता हुआ, कालाकालसमुट्ठाई - कालाकालसमुत्थायी-काल (समय) अकाल (बेसमय) प्रयत्नशील, संजोगट्ठी - संयोगार्थी - संयोग का अभिलाषी, अट्ठालोभी - धन का लोभी, आलुंपे - लूटपाट करने वाला (चोर या डाकू), सहसाकारे - सहसाकार-बिना सोचे विचारे पाप कार्य करने वाला, विणिविट्ठचित्ते - विनिष्टचित्तः - विभिन्न विषयों में दत्तचित्त। - भावार्थ - वह प्रमत्त तथा आसक्त पुरुष रात दिन परितप्त - चिंता एवं तृष्णा से आकुल व्याकुल रहता है। काल या अकाल में (समय असमय) प्रयत्नशील रहता है। वह संयोग का अर्थी होकर, धन का लोभी बन कर चोर या डाकू बन जाता है। सहसाकारी - बिना विचारे कार्य करने वाला हो जाता है और विविध प्रकार की आशाओं-इच्छाओं में उसका चित्त फंसा रहता है। इन माता पिता आदि परिजनों या शब्दादि विषयों में आसक्त बना व्यक्ति अपनी इच्छा पूर्ति के लिये बार बार पृथ्वीकाय आदि छहकाय जीवों की हिंसा करता है।
विवेचन - ममत्व और प्रमाद के वशीभूत बना व्यक्ति अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिये, धन जुटाने के लिये रात दिन प्रयत्न करता है, हर प्रकार के अनुचित उपाय अपनाता है और छह काय जीवों की हिंसा करता हुआ भारी कर्मा बन जाता है।
(६७) अप्पं च खलु आउयं इहमेगेसिं माणवाणं, तंजहा-सोयपरिणाणेहिं परिहाय
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