Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 參參參參參事事非难事參參參事事部參事來參參參參事事事密密部參事事非事事都事事奉學,
पठमं अज्झयणं सत्तमो उदेसो
प्रथम अध्ययन का सातवां उद्देशक .. छठे उद्देशक में त्रसकाय का स्वरूप एवं उसके आरम्भ-समारंभ के त्याग की प्रेरणा की गयी है। अब इस सातवें और अंतिम उद्देशक में छह काय में शेष वायुकाय का वर्णन किया जाता है। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं - वायुकायिक जीव हिंसा निषेध
.. (५५) . . पहू एजस्स दुगुंछणाए, आयंकदंसी अहियंति णच्चा।
जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ, जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ। एयं तुलमण्णेसिं। .
इह संतिगया दविया णावकंखंति.जीविडं। ..
कठिन शब्दार्थ - पहू - समर्थ, एजस्स - वायुकाय के, दुगुंछणाए - जुगुप्सायाम्आरम्भ से निवृत्त होने में, आयंकदंसी - आतंकदर्शी-दुःखों का ज्ञाता-द्रष्टा, अहियंति - अहितमिति - अहितकर, अज्झत्थं - अध्यात्मं - अपने सुख-दुःखों को, तुलमण्णेसिं - अन्य जीवों को भी अपने तुल्य, संतिगया - शांतिगताः-शांति को प्राप्त, दविया - द्रविक - दया हृदय वाले अर्थात् संयमी मुनि, णावकंखंति- इच्छा नहीं करते हैं, जीविउं - जीवन की। .... भावार्थ - जो पुरुष वायुकायिक जीवों की हिंसा को दुःखोत्पादक एवं अहितकर जानता है। वही वायुकायिक जीवों की हिंसा से निवृत्त होने में समर्थ होता है।
जो अध्यात्म को जानता है वह बाह्य को भी जानता है और जो बाह्य को जानता है वह अध्यात्म को जानता है अथवा जो अपने सुख दुःख को जानता है वह बाहर के अर्थात् दूसरे प्राणियों के सुख दुःखों को भी जानता है और जो बाहर के यानी दूसरे प्राणियों के सुख दुःखों को जानता है वह अपने सुख दुःखों को भी जानता है। इस तरह दूसरे प्राणियों में भी अपने समान ही सुख दुःख समझना चाहिये। .
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