Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र ( प्रथम श्रुतस्कन्ध )
हिंसा करते हैं। कोई चर्म के लिए शेर, चीता आदि त्रस प्राणियों को मारते हैं। कोई मांस के लिए सूअर आदि को, कोई खून के लिए त्रस जीवों की हिंसा करते हैं। इसी प्रकार कोई हृदय (कलेजा ) के लिए, कोई पित्त के लिए मोर आदि को, चर्बी के लिए मगरमच्छ आदि को, पंख के लिए मोर, गृद्ध पक्षी आदि को, पूंछ के लिए रोझ (नील गाय ) आदि को, केशों के लिए चमरी गाय आदि को, (सींगों के लिए मृग विशेष एवं बारह सींगे आदि को, विषाण-अन्धकार विनाशक दांत विशेष के लिए सूअर आदि को, दांत के लिए हाथी को, दाढ के लिए अ आदि को, नख के लिए व्याघ्र को, स्नायु के लिए गाय, भैंस आदि को, हड्डी के लिए शंख सीप आदि को और अस्थिमज्जा - हड्डी की चर्बी के लिए भैंसे और सूअर आदि को उपरोक्त प्रयोजनों के लिए अथवा बिना प्रयोजन भी त्रस प्राणियों का घात करते हैं ।
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कुछ व्यक्ति इन्होंने मेरे स्वजन आदि की हिंसा की थी । इस कारण प्रतिशोध (द्वेष ) की भावना से हिंसा करते हैं। कुछ व्यक्ति यह मेरे स्वजन आदि की हिंसा कर रहा है अतः प्रतीकार की भावना से हिंसा करते हैं अथवा कुछ व्यक्ति यह मेरी अथवा मेरे स्वजन आदि की हिंसा करेगा इस कारण भावी आतंक या भय की संभावना से हिंसा करते हैं।.
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में स्वार्थी लोगों द्वारा त्रस जीवों की हिंसा करने के अनेक कारणों का वर्णन किया गया है। इस संसार में बहुत से विषयासक्त जीव अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न प्रयोजनों से त्रस प्राणियों को मारते हैं किन्तु बहुत से अज्ञानी जीव ऐसे भी होते हैं जो निष्प्रयोजन केवल अपने चित्त विनोद के लिए तथा प्रमाद के कारण त्रस प्राणियों की हिंसा करते हैं। यह सब कर्मबन्धका कारण है। विवेकी पुरुष को ऐसी हिंसा का त्याग करना चाहिये ।
(५३)
एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा अपरिण्णाया भवंति । एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चे आरंभा परिण्णाया भवंति ।
भावार्थ - इस प्रकार त्रसकायिक जीवों पर शस्त्र का समारम्भ करने वाला पुरुष वास्तव में इन आरम्भों-हिंसा संबंधी प्रवृत्तियों के कटुपरिणामों एवं जीव की वेदना से अपरिज्ञातहै । जो इन त्रसकायिक जीवों पर शस्त्र प्रयोग नहीं करता, वह इन आरंभों का ज्ञाता होता है। विवेचन सकाय का आरम्भ पाप का कारण है यह जब तक जीव नहीं जानता है तब
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