Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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*४७ 88888888888888888888888888888888888888
...प्रथम अध्ययन - छठा उद्देशक ..............४७ पठमं अज्झयणं छठो उद्देसो
प्रथम अध्ययन का छठा उद्देशक पांचवें उद्देशक में वनस्पतिकाय का वर्णन करते हुए उसके आरम्भ-समारम्भ के त्याग की प्रेरणा की गयी है। इसे छठे उद्देशक में त्रसकाय का वर्णन किया जाता है। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
. से बेमि, संतिमे तसा पाणा, तंजहा-अंडया, पोयया, जराउया, रसया, संसेयया*, संमुच्छिमा, उब्भिया, उववाइया, एस संसारेत्ति पवुच्चइ।
मंदस्स अवियाणओ।
कठिन शब्दार्थ - संति - हैं, इमे - ये, तसा - त्रस, पाणा - प्राणी, अंडया - अण्डज, पोयया - पोतज, जराउया - जरायुज, रसया - रसज, संसेयया - संस्वेदज, संमुच्छिमा - सम्मूर्च्छिम, उब्भिया - उद्भिज्ज, उववाइया - औपपातिक, मंदस्स - मंद व्यक्ति का, अवियाणओ - अविजानतः-अज्ञानी पुरुष।
भावार्थ - मैं कहता हूं, ये त्रस प्राणी हैं यथा - १. अण्डज - अण्डे से उत्पन्न होने वाले कबूतर, मुर्गा आदि २. पोतज - जन्म के समय चर्म से आवृत होकर कोथली सहित उत्पन्न होने वाले अथवा बच्चा रूप से उत्पन्न होने वाले हाथी, चमगादड़ आदि ३. जरायुज - जम्बाल से वेष्टित होकर उत्पन्न होने वाले गाय, भैंस तथा मनुष्य आदि ४. रसज - विकृत रस में उत्पन्न होने वाले ५. संस्वेदज - पसीने से उत्पन्न होने वाले जूं, खटमल आदि ६. सम्मूर्छिम - माता पिता के संयोग बिना उत्पन्न होने वाले कीडी मक्खी आदि ७. उद्भिज्ज - जमीन को फोड़ कर उत्पन्न होने वाले पतंग खंजरीट आदि ८. औपपातिक - उपपात-शय्या में उत्पन्न होने वाले देव, नैरयिक, ये सब संसार कहे जाते हैं।
मंद और अज्ञानी पुरुष की ही संसार में उत्पत्ति होती है।
* पाठान्तर - संसेइमा
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