Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - चतुर्थ उद्देशक - अग्निकायिक हिंसा के कारण ३७ @ @@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावार्थ - वह साधक हिंसा के उक्त दुष्परिणामों को समझता हुआ संयम साधना में तत्पर हो जाता है, कितनेक मनुष्यों को तीर्थंकर भगवान् के समीप अथवा अनगार मुनियों के पास धर्म सुन कर यह ज्ञात हो जाता है कि 'यह अग्निकाय का आरम्भ (जीव हिंसा) ग्रंथ-ग्रंथि है, यह मोह है, यह मृत्यु है और यही नरक है।' फिर भी विषय भोगों में आसक्त जीव अपने वन्दन, पूजन और सम्मान आदि के लिए नाना प्रकार के शस्त्रों से अग्निकाय के आरम्भ में संलग्न होकर अग्निकायिक जीवों की हिंसा करता है तथा अग्निकायिक जीवों की हिंसा के साथ तदाश्रित अन्य अनेक प्रकार के छोटे-बड़े (त्रस-स्थावर) जीवों की भी हिंसा करता है।
विवेचन - अग्निकायिक जीवों का आरम्भ ग्रन्थ, मोह, मृत्यु और नरक का कारण है। इन कारणों से नरक आदि गति की प्राप्ति होती है। इसलिए कारण में कार्य का उपचार करके अग्निकाय के आरम्भ को ग्रन्थ, मोह, मृत्यु और नरक कहा गया है।
(३५) : से बेमि, संति पाणा, पुढविणिस्सिया, तणणिस्सिया, पत्तणिस्सिया, कट्टणिस्सिया, गोमयणिस्सिया, कयवरणिस्सिया, संति संपाइमा पाणा, आहच्च संपयंति। अगणिं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावति, जे तत्थ संघायमावजंति ते तत्थ परियावजंति, जे तत्थ परियावजंति ते तत्थ उद्दायंति।
...कठिन शब्दार्थ - पुढवीणिस्सिया - पृथ्वीनिश्रिताः-पृथ्वी के आश्रय में रहने वाले, तणणिस्सिया - तृणनिश्रिताः-तृण के आश्रय में रहने वाले, पत्तणिस्सिया - पत्रनिश्रिताः-पत्तों के आश्रय में रहने वाले, कट्ठणिस्सिया - काष्ठनिश्रिताः-काठ के आश्रय में रहने वाले, गोमयणिस्सिया - गोबर के आश्रय में रहने वाले, कयवरणिस्सिया - कचरे के आश्रय में रहने वाले, संपाइमा - उड़ने वाले, आहच्च - कदाचित्, संपयंति - गिरते हैं, पुट्ठा - स्पर्श करके, संघायमावजंति - संघात को प्राप्त होते हैं, घायल हो जाते हैं, परियावज्जंतिमूच्छित हो जाते हैं, उद्दायंति - मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
भावार्थ - मैं कहता हूँ कि - पृथ्वी, तृण, पत्र, काष्ठ, गोबर और कूड़े-कचरे के आश्रित बहुत से प्राणी रहते हैं। कुछ कीट पतंगें, पक्षी आदि संपातिम-उड़ने वाले प्राणी होते हैं जो -अग्नि में गिर जाते हैं और अग्नि का स्पर्श पाकर वे शरीर संघात को प्राप्त होते हैं। मूञ्छित हो जाते हैं तथा मूछित हो जाने के बाद वे प्राणी मृत्यु को भी प्राप्त हो जाते हैं।
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