Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - तीसरा उद्देशक - अनगार कौन?
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उत्तराध्ययन सूत्र के तीसरे अध्ययन की बारहवीं गाथा में प्रभु फरमाते हैं कि - "सोही उज्जुभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ" । __ - ऋजु आत्मा की शुद्धि होती है। शुद्ध हृदय में ही धर्म ठहरता है, इसलिये ऋजुता धर्म का - साधुता का मुख्य आधार है। ऋजु आत्मा मोक्ष के प्रति सहज भाव से समर्पित होती है इसलिए अनगार का दूसरा विशेषण है - ... २. णियाग पडिवण्णे (नियाग प्रतिपन्न) - जो अपने स्वार्थ को साधने के लिए, यशख्याति पाने के लिये, भौतिक सुख या स्वर्ग आदि को पाने की अभिलाषा से इन्द्रिय एवं मन पर नियंत्रण करते हैं वे वास्तव में अनगार नहीं कहे जा सकते। इसी बात को सूत्रकार ने "णियाग पडिवण्णे' विशेषण से स्पष्ट किया। टीकाकार ने इस शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है
___ "नियाग-सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रात्मकं मोक्षमार्ग प्रतिपन्नो नियाग प्रतिपन्नः।"
अर्थात् - सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र से युक्त मोक्ष मार्ग पर गतिशील साधक ही नियागप्रतिपन्न कहा गया है। तात्पर्य यह है कि जो केवल कर्मों की निर्जरा के लक्ष्य से शुद्ध आत्मस्वरूप प्रकट करने के लिये रत्नत्रयी की साधना करता है वह 'नियाग प्रतिपन्न' है।
३. अमायं - अनगार का तीसरा विशेषण है - अमायी अर्थात् माया रहित, छल कपट नहीं करने वाला। आगम में सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि की परिभाषा करते हुए बताया गया है कि "माई मिच्छादिट्ठी अमाई सम्मदिट्ठी" - माया एवं छल कपट युक्त व्यक्ति मिथ्यादृष्टि कहा गया है जबकि अमायी सम्यग्दृष्टि होता है। अतः संसार के कार्यों में ही नहीं अपितु धर्मप्रवृत्ति में छलकपट करना दोष माना गया है। . ___अमाय का एक अर्थ होता है - संगोपन नहीं करना, छुपाना नहीं। अतः साधना मार्ग में जो अपनी शक्ति को छुपाता नहीं, शक्तिभर जुटा रहता है, वह माया रहित होता है।
ऋजुकृत में वीर्याचार की शुद्धि, नियाग प्रतिपन्नता में ज्ञानाचार एवं दर्शनाचार की शुद्धि तथा अमाय में तपाचार की शुद्धि परिलक्षित होती है। इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र में साधना एवं साध्य की शुद्धि का निर्देश भी किया गया है।
अनगार के यथार्थ स्वरूप को बताने के बाद आगमकार साधना मार्ग पर प्रविष्ट साधक के कर्तव्य का वर्णन करते हुए फरमाते हैं -
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