Book Title: Stree Charitra Part 02
Author(s): Narayandas Mishr
Publisher: Hariprasad Bhagirath
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LbA - PAYAN . // श्री॥ स्त्रीचरित्र आषा. Do200-Darpop-100-100-72-03-200-200-200 -20-3-02-0120-12-2-220-200-200-202007-12-0: HOMMENTS द्वितीयभाग लखीमपुर (अवध) निवासि ज्योतिर्वित्पण्डित नारायणप्रसाद मिश्रलिखित जिसमें पतिव्रतास्त्रियों फेलक्षण तथा भारतवर्षकी विख्यात महारानियों के पवित्र चरित्र वर्णित है / __ जिसको हरिप्रसाद भगीरथजी . इन्होंने बंबईमें - नेटिवओपिनियन छापखानेमें छपवाया. सन १९०४-शके 1826. . JAIN P.P. Ac Gunratnasuri ni.s... Jun Gun Aaradhak Trust Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - इस पुस्तकका सब हक्क प्रसिद्ध कारने ... . स्वाधीन रक्खा है... P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इ भूमिका. प्रगट होकि अति कालसे हमारा विचार था कि कोई ऐसी पुस्तक लिखी जाय, जिसको पढकर स्त्रियोंको दशा सुधरै और भलीमांति ज्ञात हो जावै कि पूर्व समय इस भारतवर्षमें कैसी कैसी पतिव्रता और वीर स्त्रिया उत्पन्न हो चुकी हैं, जिनके धर्म, कर्म और वीरत्वको सुनकर बड़े बड़े बुद्धिवान् मनुष्य चकित होजाते हैं, इस कारण यह पुस्तक मनुष्यको ध्यानपूर्वक देखना चाहिये,भारतवर्षमें विशेषकर इस मध्यदेशमें प्रायः स्त्रियोंका पढना पढाना लुप्त होगया हैं, दश पांच स्त्रियां पढीभी है, तो उनको कोई ऐसी पुस्तक नहीं मिलती, जिसको पढकर वे अपनी दशापर ध्यान धेरै कि पूर्वसमयमें हमारी क्या दशा थी, और अब क्या है ? . . * इस अभावको दूर करनेके निमित्त हमने अतिपरिश्रमसे खोजकर यह पुस्तक लिखी हैं, यदि इस पुस्तकसे स्त्रियों का कुछभी उपकार होगा, तो हम अबकी वार कन्या सुबोधिनी जिसमें कन्याओंके सुधार निमित्त शिक्षा, .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्याभ्यास, योग्यातासे घरका सब काम काज करना. जैसे सीना, व्यंजन बनाना, सबसे यथोचित वर्ताव करना लिखेंगे, और स्त्री प्रबोधिनी अथवा स्त्री सुखबोधिनी जिसमें स्त्रियोंके उपकार निमित्त पूर्ण रीतिसे उपदेश लिखेंगे. __ निश्चय है कि उपरोक्त पुस्तकोंसे सबको अतिलाभ होगा क्योंकि शिक्षाका प्रभाव जब मनुष्यके हृदयमें भासित होजाता हैं, तभी बुद्धिकी वृद्धि होती है, और बुद्धिकी वृद्धी होनेसे मनुष्यकी दशा सुधर जाती है, जिसके सुधरनेसे अनेक लाभ होनेसे सुख प्राप्त होता है. ___इस पुस्तकका सर्वाधिकार पं. हरिप्रसाद भगीरथजी पुस्तकालय अध्यक्ष पं. व्रजवल्लभजीको दिया है. किमधिकमित्यलम्चैत्रकृष्णशुक्र- जगद्धितेक्षु-. वारसम्वत् 1960 पंडित नारयणप्रसाद सीतारामजी RP.AC. Ginratnasuri M:S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TATTA जाहिर खवर लावण्यवतीसुदर्शननाटक. यह ग्रन्थ मुरादावादनिवासी शालिग्राम वैश्यने रचाहै कि जिसमें राजकुमारी लावण्यवती, और इसकी सखियां सरोजिनी, स्वर्णलता, प्रेमलता और राजकुमार सुदर्शन तथा इसके परम मित्र सुलोचन इत्यादिकोंका अन्योन्य नाटककी रीतिसे ऐसा वियोगान्त पूरा प्रेम झलकाया है कि जिसके बांचते 2 मनहरण होता है. वही हमनें बड़े परिश्रमसे शुद्ध कराके उत्तम टाईपमे अच्छे जिकने पुष्ट कागज पै छपवायके प्रसिद्ध किया है. की. 12 आ. ट. 2 आना राजा दुष्यन्त व शकुन्तला चरित्र. प्रकट हो कि इस असार संसारमें कैसे 2 महात्मा लोग बुद्धिमान् होगये हैं और होते चले जाते हैं कि जिन्होंने अनेक प्रकारके ग्रन्थ रचकर संस्कृत और भापामें बनाये हैं कि जिनके देखनेसे मन संसारी काम्य P.P. Ac. Cunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मसे निवृत्त होकर श्रीकृष्णचन्द्र आनन्दकन्दके चर णारविन्दमें मलिन्द (भ्रमर) की तरह लग जाता हैं. - और मोक्ष पदको प्राप्त होते हैं देखो ! कवियोंके मुकुटमणि कालिदासजीनेभी “शकुंतला नाटक' आदि अनेक ग्रन्थ बनाये हैं परंतु वे सब संस्कृतमें है और वर्तमानकालमें संस्कृतके विद्वान् बहुत कम हैं, और भाषाके ज्ञाता दिनप्रति ज्यादा होते जाते हैं, यह विचारकर मैंने बंगा लीलाल परमानन्द सुहानेसे सरल हिन्दी भाषामें रचवाय कर यह ग्रन्थ शुद्ध करवाय उत्तम कागजपर टाइपके अक्षरोंमें छपवाया है. की. 3 आ. ट. 1 आ. आत्मपुराण. स्वामी श्रीचिद्धनानंदजीकृत हिं भाषाटीका सह अतिउत्तम कागजपर बड़े टाईपकी छपीहुई तैयार है कीमत रु. 1580 1 रु.० 10 आ० _ हरिप्रसाद भगीरथजीकापुस्तकालय--कालकादेवीरोड़ रामवाड़ी-मुम्बई. .....P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak T Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / स्त्रीचरित्र द्वितीयभागकी अनुक्रमणिका. विषय मङ्गलाचरण _ 1 अनसूया ग्रंथारम्भ 3 चित्ररेखा अथ पतिव्रता माहात्म्य 4 लीलावती पतिव्रताधर्मवर्णन 6 मालती स्त्रीशिक्षा विषयक व्या- स्त्रीबुद्धिप्रशंसा ख्यान ९पतिव्रता माहात्म्य मंदोदरी 18 वीरता चूडाला 19 सतीसम्वाद मदालसा 21 स्त्रीचरित्र द्वितीयभाग दृष्टान्त 22 पूर्वखण्ड समाप्तम्. सीता 23 अथ उत्तरखण्ड प्रारम्भः पुत्र और कन्याकीस- वीर रानी .. 28 नीलदेवी... शकुन्तला ..36 / संयोगता ( पद्मनी) 110 101 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust, Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय कूर्मदेवी पद्मावती मीराबाई ताराबाई रूपमती दुर्गावती चांद वीवी जोधाबाई वीरनारी.. मृगनयनी राजकुमारी इन्दुमती पृष्ठ | विषय पृष्ठ. - 145 गुन्नीरकी रानी अहल्याबाई कृष्णकुमारी . 153 वैजाबाई | रानीचन्दा 159 लक्ष्मीबाई . 164 माहाराणी स्वर्णमयी 218 165 राजराजेश्वरी विक्टो१६८ . रिया 222 183 / स्त्रीचरित्र द्वितीयभाग 186 : समाप्तम् / P.P.AC.Gunratnasuri.in Jurr Gun Aaradhak Trust Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Bhar 2113/ 14...-41212 a tmaramapungapna ॥श्रीः॥ स्त्रीचरित्र भाषाटीका. द्वितीयभाग- पूर्वखण्ड. आर्या.. मनमतं गजवदनं सादित विद्यावलीसदनम्। गौरीहरयोस्तोकं पालितलोकंहृदालम्वे॥१॥ // मंगलाचरणम् // दोहा. शरणागत आरतहरण,श्रीगुरुवर उर ध्याय। स्त्रीचरित्रभाषा लिखत,नारायण मनलाय 1 .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust : Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. कवित्त-घनाक्षरी. करकर बालपर चन्दखण्ड भालपर लोचन विशालपर सरस समागयो। गोरे गोरे गालपर अधर सुलालपर दंतद्युति जालपर भंवर भुला गयो॥ कुचफल लालपर दोभुज मृणालपर झीनीरोम मालपर श्रीपति नचागयो। नीकी नाम लालपर नूपुर रसालपर मन्द मन्द चालपर मोमन विकागयो॥२॥ अंग रंग सारपर शोभाकी बहारपर छटे छटे बारपर चित्त उरझा गयो। गोरे भुज गोलपर सुन्दर कपालपर अधर अमोल पर चित्त ललचा गयो / मृदु मुसकानपर हगन मिलानपर ललित लजानपर सुमति लुभागयो। PP.AC. GunratnasuriM.S. ... Jun Gun Aaradhak Trust Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. कटि अति छीनपर नागर प्रवीनपर योवन नवीनपर मो मन विकागयो॥३॥ दोहा. प्रेमसहित बन्दन करौं, श्री राधा वरश्याम। लिखिहौं भाग द्वितीय यह, जनहित अति अभिराम // 4 // // अथ ग्रन्थारम्भः // इस स्त्रीचरित्र नामक ग्रन्थ के द्वितीयभागका पूर्व खण्ड कुछ पतिव्रता स्त्रियोंके सच्चरित्रोंसे सुशोभित किया गया हैं. और उत्तरखण्ड कुछ वीर महारानियोंके सच्चरित्रोंसे सुशोभित किया गया है. इस प्रकार यह द्वितीय भाग पूर्ण किया है. तहां प्रथम स्त्रियोंकी शिक्षाके विषय में कुछ लेख लिखा जाता है // कवित्त--सवैया.. - जीव विना जस देह मलिन के नीर T AITRITES P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -स्त्रीचरित्र. विना सरि सूखत बैसे ।ज्ञान विहीन यती क्षितिमें हरिभक्त विना नररूप अनैसे। चन्द मलीन पियूष विना ब्रह्मज्ञान विना कुल ब्राह्मण कैसे। नारि विरंजि विचारि कहै प्रिय भक्ति विना तिय सोह न तैसे॥५॥ तीरथ नेमकरै सब भांति उजागरि संतन साधु प्रवीनी। लक्षणरूप सराहो कहां मुख पूर्ण चन्द्रकला जनु कीनी / लोक कि रीति लखै सब भाँति भली. कुल उत्तम बैस नवीनी। नारि विरंजि विचारि कहे पिय भक्तिविना सब भाँति मलीनी॥६॥ अथपतिव्रतामाहात्म्य-छप्पय. 1. पति पद रति जेहिं होय ताहि यम देखत कम्पै / सुरपति रहै सकात तेज. रवि शशि द्युति कंपै // हरि हरि विधि in Gun-Aaradhak.Trust. . P.P.:Ac. Gunratnasuri M.S. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - / भाषाटीकासहित. निज तीयन तासुकी कीर्ति सुनावै / तेही दर्शन हित हेत तहां नित्य प्रति चलि आवै // सकल तीर्थ इच्छा करें यह डारै मम उदर पग। धन्य नारि वह पतिव्रता शुद्ध होत तेहि मगन मग // 7 // धन्य तात वै मातु धन्य जाको तिय व्याही / धन्य श्वसुर अरुसासु धन्यकुल विमल सराहीं।। धन्य नगर गृह गांव धन्य जो वसत परोसी। धन्य टहलुई तासु सदा निजकर जिन पोसी // इते धन्य सब जगतमें तासु पापनहीं यमसुने / पतिव्रताके वचन ध्रुव-धर्म अमितमनमें गुने // 8 // नर वर जप तप करहिं नियम व्रत संध्या साधहि / यत्नयोग विज्ञान मोहि माया तेहि वाधहिं // जबहिं नारि हरिभक्ति ताहिं को धारण ...... . P.P.AC.Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak, Trust Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रः करिये / विनु प्रयास निस्तार हर्षि भवसा गर तरिये // तब नहिं तेहि माया छलै अ-चल पतिव्रत. भक्ति है / वहु अनंद तेहि -जगतमें कर जार तेहि मुक्ति है // 9 // अथ संक्षेपतः पातिव्रतधर्मवर्णन-चौपाई. / नारि पतिव्रतधर्म वखानौं। अति संक्षेप रीति उर आनौं / प्रातधमे यह नारिन करा। पीय मुख लखि तब उठहि सवेरा // पतिके चरण शीश तवदेई / / मुखधोवन हित जलकर लेई॥ तव मुखधोई देई कर दर्पन / करै देव अजपाकर अर्पन // बहु अनंदते पतिहि रिझाई। अपनो गृह कारज कर जाई // 2. Jun Gun. Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S... Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाठीकासहित. करि स्नान वस्त्र शुचिधारन / शिर सेंदुरकी तिलक संभारन // . दृग अंजन दै भूषण करई।... पतिकर ध्यान हृदय महंधरई // तव पिय रुचि ज्यौनार बनाई। अशन देखि अस कोन लुभाई // ताहि सिद्ध करि पियहि जिमाई। सेवाकरहि भक्ति मनलाई // तेहि पाछे त्रिय भोजन करई। विनु प्रयास भव सागर तरई // 10 // ठाकुरद्वारे हरि अशन, साधु न करहिं विवेक। त्यों जानै पियजूठनाहि,राखिप्रियामतिएक॥ - चौपाई... जैसे हरिहिभजतहै साधू।। सुरति न टारि सकहि पल आधू // P anaman . P.P.AC.GunratnasuriM.S.. ___ Jun Gun Aaradhak Trust : Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रोचरित्र. तैसे पियपद सुरति लगावै। म अंतकालसो हरिपुर जावै // हरि जन नामभजहिं करिप्रेमा। त्यौं राखै त्रिय प्रिय सननेमा॥ संतमजहि हरिलज्जा खोई। त्यौं पतिमजै दोष नहिं कोई // सुत वित नारि भवन सब त्यागी। भजहि नाम हरि जन अनुरागी॥ त्यौं त्रियभजै पियहि मनलाई / हित कुटुंब तजि सखी सुहाई॥ करें सत्यपति पद कर पूजा / तीनि लोक तेहि सम नहिं दूजा // ब्रह्म रुद्र हरिदेव मुआरा। पतिव्रताके आज्ञाकारा // 12 // * सकल देव रक्षाकरै, पतिसेवै जो नारि। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S; Jun Gun Aaradhak Trust Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित अंतकालहरिलोकतेहि,यशगावैश्रुतिचारि१३ पिय आज्ञा विन नारिजो, पूजै देव विधान। तौ तेहि पतिआयू घटै,ताको नरक निदान॥ वरतकरै तीरथकरै, दानधर्मजपयोग। स्वामीभक्ति विहीन तिय, पावै यमपुरभोग। एक तपस्या एक बल, एक आश विश्वास। मनसा वाचा कर्मणा, पतिपदपरमहुलास। अथ स्त्रीशिक्षाविषयक व्याख्या.. बहुत दिनोसे भारतवर्षीय लोगोनें स्त्रियां नहीं पढती और न उनके परिपालको द्वारा पढानेका उपदेश किया जाता है स्त्रियोंके न पढनेसे बडे बडे अनर्थ फैलगये है / यावन्नसाक्षरामाता, तावत्तहालबालिका। निरक्षराहितिष्ठति विनोपायसहस्रकैः // 16 . अर्थ-जब तक माता नहीं पढी होती तबतक उसके बालक, बालिका विना पढ़े हुयेही रहते है, चाहे हजारों उपाय क्यों न किये जाय तथा जबतक धर्मशास्त्र के द्वारा पुण्य पापको न जाने, तबतक पुण्य करना, - - - - - P.P. Ac: Gunratnasuri M.S.. P.P. Yun Gun Aaradhak Trust Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. और पापसे बचना क्योंकि जैसे स्त्री शास्त्र पढकर बुरे कामोंसे बच सकती है। वैसे ताडना करने, और घरमें रोकनेसे नहीं बचती मनुस्मृतिमें लिखाहै // 16 // / अरक्षिता गृहे रुडाः पुरुषैराप्तकारिभिः // आत्मानमात्मनायास्तु रक्षेयुस्ताःसुरक्षिता॥ - अर्थ-अच्छे अच्छे पुरुष स्त्रियोंको बडे प्रयत्नसे घरमें रोके तो भी अरक्षित है, और जो स्त्री अपने आप बुरे कामोंसे बचेगी सोही सुरक्षित अर्थात् रक्षा करीहुई होगी। अब विचार करना चाहिये कि जब स्त्री रोकनेसे पापको त्याग सकती और अपने आपसे बच सकती है, तो उनको पढाना अवश्य उचित है, कि जिस्से स्त्रियां पापको जानकर बुरे कामोंसे बचें, यहां एक ह. शान्त है, कि जैसे किसी चोरी करनेवालेको उपदेश किया जाय कि तुम चोरी करना छोड दो यह काम बहुतही बुरा है. तो वह चोर चोरी करना कभी नहीं त्यागैगा. परंतु जब पकडा जाकर कैदी किया जाय तो कैदके दुःखसे चोरीको बुरा समझकर उससे विल्कुल हाथ उठा C. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradnak Trust Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. वैगा। आजकल इस भारत वर्षमें स्त्रियोंका न पढाना ऐसा प्रचलित होगया है, कि मानों यहांकी स्त्रियोंको पढनेका अधिकारही नहीं है पूर्व समयमें स्त्रियोंका पढना | परम ज्ञानवती होनेके दृष्टांत सुनों जो इतिहास ग्रंथोमें | लिखे है / .. ..... . सीता सुमति सुशीलता,सवजगमें विख्यात। |जिहि चरित्र उपमा लिखत, कविजन मनसकुचात // 18 // देवहुती विद्याधरी, अनसूया गुणगेह / पतिव्रत धर्म सिखावती, विद्या सहित सनेह // १९॥नामगार्गी जगविदित, अति विरक्त संसार / ब्रह्मचारिणी परमदृढ, विद्यासिंधु अपार // 20 // सभाबीच गर्जतरही, वेदशास्त्र मुखद्वार। मानी पण्डित जयकिये, रहे सबी मनमार // 21 // ज्ञानवती सुमदालसा, परमशील संतोष / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. स्त्रीचरित्र विद्याबुद्धि सुसभ्यता, धर्म धैर्य धन कोष॥ // 22 // गान्धारी शुभ कुलवती, पतिव्रत धर्मागार / सुखमें सुख दुखमें दुखी, रही स्वपति अनुसार // 23 // श्रीपटराणी रुक्मिणी, पतिव्रत धर्मनिकेत / तनमन धन अर्पणकियो, कंत प्रेमके हेत॥२४॥ पार्वती शुभ गुणवती, कंतप्रेम आधार / जिहि गुण सुन शिक्षा लहै, सब कुलवंती नार // 25 // विद्यानिधि लीलावती,भारत जीवन प्राण। तासु रचित पुस्तक सुभग, मानत सबी प्रमाण // 26 // दमयंताक चरित सुनि, वहत नयनसे नीर / जिहि न होय रोमांच नरं, को जगमें अस धीर / // 27 // क्षत्रिय सुता शकुंतला, सत्त्यशील मुविवेक। लाखन संकट नव सहे,एक धर्म ~ .P.P. Ac. GunratnasuriM.S. .. ... . Jun Gun Aaradhak Trust Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. की टेक॥२८॥ पतिव्रता कोटिनभई, गिनै सबन अस कौन। जिन चरित्र सुनि धरतहै, सबी कवीश्वर मौन // 29 // पहले बाला जो भई, सब विद्याकी खानि / हाय अज अक्षर पढत, अबला करत गलानि // 30 // | एक दिवस भारत हुतो, सुख सम्पति भरपूर। भई नारि विद्या रहित, कीनो चकनाचूर 31 द्रौपदी / श्रीमद्भागवतके पहले स्कन्ध अध्यायसातवे में द्रौपदीजीकी विद्या और बुद्धिको देखो कि जिस समय द्रौपदोके पांचौ पुत्रों का शिर काटकर अश्वत्थामाजी अपने प्राण.बचानेको भागे. तब अर्जुनने द्रौपदीको समुझाय बुझाय अश्वत्थामाका पीछा किया और बांधकर द्रौपदीके सन्मुख लाय खडा किया, तब मू-तथाहृतं पशुवत्पाशबद्धमवाङ्मुख ..P.R.AC. Gunratnasuri M.S. Jun-Gun Aaradhak Trust Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. कर्म जुगुप्सितेन ॥निरीक्ष्यकृष्णाऽपकृतं - गुरोः कृतं वामस्वभावा कृपया न नाम च // 32 // उवाच चासह त्यस्य बंधनानयनं सती / मुच्यतां मुच्यतामेषा ब्राह्मणो नितरां गुरुः // 33 // अर्थ-पशुके सामान रस्सीसे बांधकर लायेहुये, बालहत्यारूप दुष्कर्म करनेसे नीचामुख कियेहये महारथी उस गुरुपुत्र (अश्वत्थामा) को देखकर, सुशीला द्रौपदीको दया आगई, और तत्काल उसको प्रणाम किया 32 // तथा तिसके बंधकर आनेको न सहनेवाली पर तिव्रता द्रौपदी शीघ्रतासे कहने लगी, कि इसको अभी इसीसमय छोडो, छोडो, यह ब्राह्मण तुह्मारा सा. क्षात गुरुहै॥ 33 // मू-सरहस्यो धनुर्वेदः सविसर्गोपसंयमः / अस्त्रग्रामश्च भवता शिक्षितो यदनुग्रहात्३४ .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. स एष भगवान् द्रोणः प्रजारूपेण वर्तते / तस्यात्मनोऽर्धपत्न्यास्तेनान्वगाहीरसूकृपी तधर्मज्ञमहाभाग भवद्भिौरवं कुलं // ब्रजिनंनाहतिप्राप्तुंपूज्यं वंद्यमभीक्ष्णशः३६ . अर्थ-क्योंकि गुप्त मंत्रों सहित धनुर्वेद और छोडना तथा लौटाना इन रीतियों सहित सकल अस्त्र तुमने जिनकी कृपासे सीखे // 34 // वहही यह भगवान् द्रोणाचार्य पुत्र रूपसे विद्यामान हैं (अन्यत्रभी लिखाहै, “आत्मावैजायतेपुत्रः ' पुत्रअपनी आत्मा होता है) और तिन द्रोणाचार्यके शरीरका आधाभागरूप 'कृपी' नामा उनकी स्त्रीभो अभी जीवित, वहवीर माता होनेके कारण पतिके साथ परलोकको नहीं गई, (पुत्रवाली स्त्रीको शास्त्रमें सती होनेका अधिकार नहीं है)॥३५॥f ससे हे धर्मज्ञ ! हे महाभाग! तुम्हारे वारंवार पूजने और वन्दना करने योग्य जो गुरु कुला, वह तुमसे दुःख पानेके योग्य नहीं हैं // 36 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S Gun Aaradhak Trust. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 16 स्त्रीचरित्र. मू०-मा रोदीयस्य जननी गौतमी पति देवता // यथाऽहंमृतवत्साों रोदिम्यश्रुमुखी मुहुः // 37 // यैः कोपितंब्रह्मकुलं राज न्यै रकृतात्मभिः॥तत्कुलं प्रदर्हत्यारों सानुवन्ध शुचार्पितम् ॥३८॥धयं न्याय्यं सकरुणं नियंलीकं सनं महत् ॥राजा धर्मसुतो राज्याः प्रत्यनंदहचो हिजाः॥ ३९॥नकुलः सहदेवश्च युयुधानो धनंजयः ॥भगवा न्देवकीपुत्रो ये चान्ये याश्च योषितः॥४०॥ - अर्थ-हाय! जैसे मैं अपने मरे हुये बालकोंके दुःखसे दुःखित होकर वारंवार मुखपर अश्रुधारा वहातीहुई रुदन करती हूं तैसे अश्वत्थामाको माता (गौतमाकी पुत्री) पतिव्रतापी रुदन न करै // 37 // इन्द्रियोंको वशमें न रखनेवाले जिन क्षत्रियोंने ब्राह्मणकुलको कुपित किया, तो शोकसे दुःख पानेवाला वह ब्राह्मणकुल, तिन P.P.AC.Gunrathasuri M.S., Jun Gun Aaradhak Trust Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित... 17 राजाओंके कुलको परिवारसहित समूल भस्म करदेता है // 38 // इस प्रकार धर्मयुक्त नीतिके अनुकूल, करुणा भरे, कपट रहित, समान और अति उत्तम द्रौपदीके वचनकी धर्मराज युधिष्ठिरने सराहना करी // 39 // और नकुल, सहदेव, सात्यकि, अर्जुन, देवकीसुत भगवान श्रीकृष्ण तथा अन्य उपस्थित पुरुष एवं स्त्रियोंनेभी द्रौपदीके कथनकी सराहनकरी तथा महाभारतमें लिखा है कि जिससमय धर्मराज युधिष्ठिरने जुवां में द्रौपदीको "हार दिया उस समय दुर्योधनने चाहा कि द्रौपदीको नम करूं, तब द्रौपदीने भरी सभाके बीच भीस्मआदि महा। वीरोंके सन्मुख कहा कि मेरा पति मुझको किसप्रकार हारै गा, क्योंकि मैं आधा अंगहूं, स्वामीने यदि अपने अंगको हारदिया, तो मुझको दावपर किसनेरकरखा वा क्योंकि वे तो हारेही गये अब विचार करना चाहिये कि क्या विना विद्या पढे ऐसी बातोंका ज्ञान होसकता है // 40 // . P.P.Ac. Gunratnasuxi.M.S. Sun Aaradhak Trust Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. मन्दोदरी. *. एवं मन्दोदरीका चरित्र देखनसे प्रतीत होता है, कि वह भी पढीहुई थी, उसने अपने पति रावणको बहुतसे नीतियुक्त वचनोंसे समुझाया, वाल्मीकीय रामायणके लंकाकाण्ड सर्ग 59 में लिखा है, कि जिससमय प्रहस्तराक्षस युद्धमें मारागया, उस समय मन्दोदरीने सभामें आकर रावणसे यह कहा कि, पिताके वचनसे श्रीरामचन्द्र छोटे भाई लक्ष्मण सहित दण्डकवनमें आये हैं, और ब्रम्हचर्ययुक्त होकर बनमें रहते हैं, उनकी स्त्रीको बनसे तुम हर लाये विना अपराध ऐसा करनेसे महापाप होता है, क्योंकि पतिव्रताके रोकनेसे बडा दोष है, हमारी इस बातमें आपके मंत्रियोंकीभी सम्मति है कि रामचन्द्रकी भार्या रामचन्द्रको दे दीजाय, यही महात्मा बिभीषणनेभी आपसे कहा था कि रामचन्द्रजी स्त्री उनको दे दीजाय, हमारा कहना मानो और रामचन्द्रको वस्त्र और रत्नसहित सीताजीको देकर वार्ता शुभके देनेवाली हैं और अशुभ संशयको प्राप्त होकर जो जय प्राप्त होती है P.P.AC. Gunratnasiri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ भाषाटीकासहित. उससे क्या कारोगे. क्योंकि युद्धकी सिद्धि चंचल है, कभी आप औरोंको मारता है कभी आपही मारा जाताहै इस कारण युद्ध मुझको अच्छा नहीं लागता अब हे प्राण प्रिया, मिलाप करो, यहां विचार करनेकी बात है, कि मन्दोदरीको विना विद्या पढे ऐसी नीति आसकती है रावण सरीखे पंडितको इसप्रकार समझाना कोई सहजबात नहीं है. चूडाला. फिर देखो चूडाला रानी कैसी विद्यावती थी कि जिसने अपने पति राजा शिखिध्वजको ब्रह्मज्ञानका उपदेश किया, उस ब्रह्मज्ञानको विना समझे जिस समय राजा शिखिध्वज राज्य छोड बनको चलागया तब उसकी रानीने दूसरी स्त्रीका रूप धारण करके बनमें जाय अपने पतिको समझाया कि तेरी रानीने जो तुझको ज्ञानका उपदेश किया है सो ठीक है तेरी रानी बडी ब्रह्मज्ञानवाली है, तुमने उसके उपदेशको उलटा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 . - स्त्रीचरित्र. समझा राज्यको छोडकर बनमें रहना अनुचित है भागवतमें लिखा है, कि जिससमय राजा प्रियव्रत राज्यको छोडकर वनको चलेगये थे उस समय ब्रम्हाजीने उपदेश किया कि मनसहित चक्षुरादिक इन्द्रिय अपने शत्रु हैं तिनके जीतनेकी इच्छा करनेवाला पहले गृहस्थ आश्रममें रहकर जीतै, यही उपाय जीतनेका अच्छा है जिस प्रकार किलेका बैठनेवाला राजा अपने शत्रुको कि जिसकी सेना बाहर खडी है, जीत लेता है क्योंकि किलेवालेकी तोपका गोला शत्रुके मनुष्योपर पड़ता है और शत्रुका प्रकार उसके किलेकी सफीलमें लगता है इस रीतिसे जब बाहर वाला निर्बल होजाता है तब किले- वाला जहां चाहै वहां फिर सकता है और जो मूर्ख राजा किलेमें रहनेपरभी हारजाता है, सो मैदानको लडाई कैसे -जीतसकता है, सो तुमभी वैसेहीहो क्योंकि जिन इन्द्रिय रूपी शत्रुओंके भयसे गृहस्थीरूपी किलेको छोडकर - बनमें आये हो, तो तुमारे पीछे यहांभी लगेहुये हैं और जो उनको जीतलेवै तब घर और बन एकही है,गृहस्थीक' AC.GunratnasuriN Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. त्यागकरदेना ईश्वरकी इच्छाके विपरीतकाम करना है क्यों कि ईश्वरका प्रिय काम वही है, कि उसने सबके पीछे लगादिया है, उसका प्रतिपालन करना यही उसकी उपासना है और राज्यको छोडकर अलग बैठना तो लंगडेठूलोंका काम है, सो तुम चलकर राज्य करो क्योंकि ज्ञानमें किसीका त्याग वा ग्रहण नहीं है जो ईश्वरका निश्चित कार्य है उसका पालन करना अवश्य है, इस प्रकार समुझाय बुझाय रानी अपने पतिको ले आई योगवाशिष्टके निवारण प्रकरणके पूर्वार्द्धमें भी यह कथा लिखी है।। मदालसा. - योगवाशिष्टहीमें मदालसा रानीकी कथा इस प्रकार लिखी है, कि रानो मदालसाके पतिने कहा कि, हम सन्तान उत्पन्न नहीं करेंगे क्योंकि हमारे पुत्र कदाचित् अज्ञानीहये तो वे नर्कमें जायगे और उन समते हमको तुमकोभी नरक प्राप्त होगा, सो ऐसी अज्ञानतासे काम क्यों करें यह सुनकर मदालसाने जबाब दिया कि हे महाराज / ऐसा विचार आप न करे मेरी कुक्षिसे जो P.P.AC.Gunratnasuri.M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 स्त्रीचरित्र-पुत्र उत्पन्न होगा, सो वोभी आज्ञानी नहीं होगा मैं उसको ज्ञान उपदेश कर दूंगी, सो जब पुत्र उत्पन्न हुये उनको पालनेमें झुलाते समय, जो ज्ञानोपदेश मदालसाने किया वह यह है। / शुद्धोसी बुद्धोसी निरंजनोसि संसार मायापरी वर्जितोसि // संसार स्वप्नं त्यजमोह निद्रां मदालसा वाक्यमुवाच पुत्रम् // 41 // अर्थ-हे पुत्र! तू शुद्ध है, और ज्ञानी है, और संसाकी मायासे रहित है, यह संसार स्वम है, इसमें मोहरूपी निद्रा है, इसका परित्याग करो, // 41 // यहां एक दृष्टान्त है,। दृष्टान्त. एक दरिद्री मनुष्य लकडियोंका बोझा लेकर चला. और बोझेसे थककर प्यासा हुवा और वहीं वनमें कुवाँ _ ढूढने लगा, जब एक वृक्षके नीचे कुवेंको पाया तब P.P. .GunrathasuriN hak Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. उसमें से जल भरकर पिया और उसकी मनपर वृक्षको छायामें सो रहा, इतनेमें उसने एक स्वप्न देखा कि एक राजाकी बेटी महासुंदरी है, उसके साथ अपना विवाह हुवा है, उसको विदा कराय मानों अपने घर लाये है, उससे सुपुत्रमी उप्तन्न हुआ है, सो दरिद्री मनुष्य देखता है कि मानों वह पुत्र बीचमें सोता है, उसके इधर उधर एकही खाटपर स्त्री पुरुष दोनों सोये है, इतनेमें फिर क्या देखता है, कि स्त्रीने कहा, आप अलगको हट जाओ क्योंकि बीचमें लडका है, पिच न जाय, सो यह बात सुनते ही, लडकेको दबनके भयसे जो एक ओरको हटा तुरन्त कुयेंमें जाय गिरा और डूबकर मरगया, देखो राजाकी बेटीके साथ विवाह आदि होना, और लडकेका होना, तथा एक खाटपर सोना उसने देखा सो सब बात झूठी होगई और कुमें गिरकर डूब जाना सच होगया, इसीप्रकार यह संसार सब झूठा है इससे इस स्वामके स मान मनमें झूठा जानो, यही इसका त्याग है, ऐसे उप-देश करके मदालसाने अपने पुत्रोंको उपदेश करके ज्ञानी AC-Gahiratnasurnm Jun Gun Aaradnak Trust Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. बनादिया, विचार करना चाहिये कि रानी मदालसा कैसी विद्यावती और ज्ञानवती थी। सीता.. - श्रीसीताजीके विद्यावती होनेमें प्रमाण सुनो कि जब सीताजी लंकाकी अशोकवाटिकामें थीं तब एक स___मय सीताजीके समीप रावणं आया और यह वचन बोला कि। मू-भवित्री रम्भोरु त्रिदशवदन ग्लानिरधिका सतेरामः स्थाता न युधि पुरतो लक्ष्मण सखः // इयंयास्यत्युचैर्विपद मधुना वानरचमूर्लधिष्टेदंषष्टाक्षर पर विलोपात्पठ पुनः॥४२॥ .. इतिहनुमन्नाटके... अर्थ-हे रम्भोरु ! (सीते) त्रिदशों (देवताओं) के वदन (मुख) पर ग्लानि होगी अर्थात् मेरे साथ युद्ध होने में देवताओंके मुख सूख जायगे, और तुमारे पति P.P. Ac, Gunratnasuri M.S: Gun Aaradhak Trust Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. राम और उसके भ्राता लक्ष्मणभी मेरे सन्मुख युद्धमें नही टिकेंगे तथा यह जो वानरोंकी सेना है सोभी शीघ्रही विपत्तिको प्राप्त होगी यह वचन रावणका सुनकर सीताजीने उत्तर दिया कि हे लाघिष्ट, अर्थात् हे पतिनीच ! इस आपने पढे हुये लोकके प्रत्येक पदके सातवें अक्षरका लोप करके पढ // 42 // सो देखो, सीताजीने तीनों बातोंका जबाब एकही वचनमें ऐसा दिया कि रावणको चुप होना पड़ा, क्योंकि तीनों बातें जो कि रावणने रामचन्द्रकी निन्दा की कही थीं उनमें रावणहीकी निंदा हुई सो इसप्रकार कि श्लोकके पहले पदमें सातवां त्रि' अक्षर है तिसका लोप करनेसे दशवदनग्लानि' ऐसा शेष रहा सो दशवदननाम राव__शहीका है उसीको ग्लानि होगी, और दूसरे पदमें नि टोधका वाचक न अक्षर सातवां है उसके दूर करनेसे यह अर्थ आया कि रामचन्द्र और उनके भ्राता लक्ष्मण युद्धमें टिकेंगे और तू ही भागैगा या मारा जायगा, तथा तीसरे पदमें 'वि' अज्ञर सातवां है उसे दूर करनेसे P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र विपत्तिका अर्थ दूर होकर अच्छे पदका अर्थ आया अर्थात् वानरोंकी सेना तुझको अच्छे पदको जानेगी अब बिचार करना चाहिये कि ऐसे बड़े भारी पंडित रावणको एक बातमें सीताजीने निरुत्तर किया, ऐसा उत्तर क्या विना पढे दिया जासकाता हैं एवं जिस समय रावणने सीताजीसे कहा कि, मू-मुग्धे मैथिलि चंद्र सुंदर मुखि प्राण प्रयाणौषधि / प्राणान् रक्ष मृगाक्षि मन्म। थनादिप्राणेश्वरि त्राहिमाम् ॥रामश्चुम्बति ते मुखं च सुमुखे नैके न चाहं पुनश्चुम्बिष्यामि तवाननं वहुविधैर्मुञ्चाग्रहं मानिनि // 43 // अर्थ-हे मैथिलि ( सीते) हे चन्द्र समान सुन्दर मुखवाली! हे निकलतेहुये प्राणोंकी औषधि! तू मेरे प्राणों की रक्षा कर हे मृगनयनी ! हे मदनकी नदी हे जीवितेशे! तू मेरी रक्षा कर हे मानवती ! रामचन्द्र तो Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. तेरे मुखको एकही आपने सुन्दर मुखसे चुम्बन करते हैं, और मैं तेरे मुखका अपने दशमुखोंसे बहुतप्रकारके . चुम्बनों करके चुम्बन करूंगा इस प्रकार तू अग्रह अ.. र्थात् हठको छोड दे // 43 // रावणकी यह अनुचित बात सुनकर जानकीजीने उत्तर दिया कि / मू-विरम विरम रक्षः किं वृथा जल्पितेन स्टशति न हि मदीयं कंठसीमानमन्याः // रघुपति भुजदंडादुत्पलश्याम कांते .. दशमुख भवदीयो निष्कृपोवा कृपाणः॥४४॥ ... अर्थ-अरे राक्षस मेरे कण्ठकी सीमाको नील कमल मान कान्तिवाले रामचन्द्रजीके भुजदण्डोंके विना अथवा तेरी कठोर तलवारके विना और दूसरा स्पर्श नहीं कर सकता इस कारण तू शांत हो जाय, शांत हो जा, तू वृथा बकवादं करनेसे क्या प्रयोजन है // 44 // तुलसीकृत रामायणमें यही वचन है कि, P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र ..... चौपाई. श्यामसरोज दाससम सुन्दर। प्रभुभुज करि करसम दशकंधर // सो भुजकंठ कि तब असि घोरा। सुनु शठ अस प्रमाण प्रण मोरा // - पुत्रऔर कन्याकी समानता. मनुस्मृति (धर्मशास्त्र ) में पुत्र और कन्या बराबा मानने योग्य लिखे है, . - अध्याय 8 श्लोक 130 में देखोः मू०-यथैवात्मा तथा पुत्रः पुत्रेण दुः हिता समा॥ तस्यामात्मनि तिष्टन्त्यां कथ सन्यो धनं हरेत् // 45 // . अर्थ-आत्मा का स्थानी पुत्र है अर्थात् जो आत्मा है सो पुत्र है, और पुत्र के समान पुत्री है, अर्थात् उसीके अंगोसे उप्तन्न होनेके कारणा कन्याभी पुत्रके समानही P.P. Ac Gunrakasur M.S: Gun Aaradhak Trust Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. . है, इसीसे पिताके आत्मस्वरूप उस कन्याके विद्यमान होनेपर पुत्र रहित मरेहुये पिताका धन पुत्रिकासे भिन्न दूसरा कैसे लेवै // 45 // ... अब विचारना चाहिये कि, जब पुत्र और कन्या बराबर है तो जिसप्रकार पुत्रको पढाते है उसी प्रकार पुत्रीकोभी पढाना चाहिये / एवं पुत्र और पुत्रीके बराबर होनेका अन्यभी प्रमाण सुनो, कि बेटेका बेटा अर्थात् पोता जिसप्रकार परलोकमें उपकार करता है उसी प्रकार बेटी का बेटाभी उपकार करता है, यथोक्तं श्लोक 133 // ___मूल-पौत्रदौहित्रयोलोंके न विषोऽस्ति धर्मतः॥ जयोर्हिमातापितरौ सम्भूतौ तस्य देहतः // 46 // अर्थ-धर्मसे देखो तो इस संसारमें पोते और धेवतेमें कुछ भेद नहीं है, क्योंकि उन दोनों में एकका पिता और दूसरेकी माता एकहीके देहसे उप्तन्न है, सो इस कारणसेभी पुत्र और पुत्री एक समान हुये, तो पुत्रकेस: P.P.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रिचरित्र मान पुत्रीकोभी पढाना उचित है // 16 // तथा "वृहत्स्मृतिसारसंग्रह " नामक धर्मशास्त्रमें लिखा है कि, माता पिता जैसे पुत्रको पढावै वैसेही पुत्रीकोभी पढावे,॥ मू-गृहस्थः पालयेदारान् विद्यामभ्यासयेत्सुतान् / गोपायेत्स्वजनान्बन्धून एष धर्मः सनातनः॥४७॥ कन्याप्येवं पा. लनीय शिक्षणीय प्रयत्नतः // देया वरायः विद्वषे धनरत्नसमन्विता // 48 // . अर्थ-गृहस्थजन अपनी स्त्रियोंकी रक्षा करै, और पुत्रोंको विद्याका अभ्यास करावै, और अपने स्वजन बन्धुओंका पालन पोषण करै यही गृहस्थियोंका सनातन धर्म है, // 47 // इसीप्रकार पिता कन्या का भी पालन कर, और बड़े यत्नसे पुत्रकी तरह विद्याका अभ्यास करावे, और धन रत्न सहित उत्तम विद्वान् पुरुषके साथ उसका विवाह करै // 48 // P.P:Ac.'Gunratnasuri M.S... - Jun Gun Aaradhak Trust . . Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित तथाच // मू-अज्ञातपतिमर्यादामज्ञातपतिसेवनम् // नोहाहयेत्पिता बालामज्ञात धर्म शासनाम् // 49 // - अर्थ-कन्या जब तक पतिकी मर्यादाको न जाने और पतिकी सेवा को नहीं जाने तथा धर्मकी आज्ञाको नहीं -जाने, तबतक पिता उस कन्याका विवाह नहीं करै // 49 // अब विचारना चाहिये कि पतिकी मर्यादाको और पतिकीसेवा व धर्मशास्त्रकी आज्ञाको क्या पढे लिखे विना कन्या जान सकती है, / और भी विचारने योग्य है कि विवाह पद्धतिकी व्याख्या ब्राह्मण सर्वस्वमें ऋग्वेद और यजुर्वेदकी ऋचा है सो उसमें तीन मंत्र विवाहमें खीलोंसे हवन करनेके समय कन्या पढती है, उनसे कन्याका पढना अवश्य - पाया जाता है, / वे मंत्र ये है,। - अर्यम्णं देवं कन्याग्नि मयक्षत। सनो .P.P.AC. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 32 स्त्रीचरित्र अर्यमा देवः प्रेतो मुंचतु मापतेः स्वाहा॥३॥ .. अर्थ-अमिस्वरूप अर्यमादेव ( सूर्यदेव ) को यह कन्या पूजनी है, इस कारण कि वह अर्यमादेव मुझको पतिके पाससे मत छुटाओ अर्थात् दूर न करो, सदा प. तिकेसाथ रहू // 1 // दूसरा मंत्र यह हैं कि... इयंनार्युपतेलाजानविपातका / आयु. ष्मानस्तु मे पतिरेधन्ताज्ञायो मम स्वाहा 2 _ अर्थ यह नारी लाजों अनिमें (आवपंतिका )के कती हुई यह कहती है कि मेरा पति बड़ी आयुवाला हो, और मेरी ज्ञातिवालेभी बढे, // 2 // तीसरा मंत्र यह है कि. इमाल्लाजानावपाम्यग्नौ समृध्दिकरणं तव / मम तुभ्यं च संवननं तदग्निरनुमन्य ताभियं स्वाहा // 3 // P.P.AC. GuhratnasuriM.S..... Gun Aaradhak Trust Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितं. - अर्थ कन्या अपने पतिसे कहती है कि, हे पते, तुझारी वृद्धि के लिये और तुमको अपने वश करनेके लिये मैं अग्निमें इन खिलों का हवन करती हूं, इन दोनों मेरे मनोरथोंको आमि देवता सफल करो // 3 // - जब इन मंत्रोंको कन्या विवाहके समय कहती है तो कन्याका पढना विवाहसे पहले सिद्ध हुआ. औरभी देखो दश उपनिषद वेदका ब्रह्मभाग है सो बृहदारण्य उपनिषद्में याज्ञवल्क्य और उनकी स्त्री मैत्रेयीका ऐसा संवाद है कि, याज्ञवल्क्यजी अपनी स्त्री मैत्रेयिसे बोले हे मैत्रेयि ! इस गृहस्थाश्रमको छोडकर मेरी इच्छा सन्यास लेनेकी है इस कारण मैं तेरा और दूसरी स्त्री जो कात्यायनी है, दोनोंके बीच पृथक् पृथक् धनका विभाग करता हूं, जिससे कि तुम दोनोंमें विवाद न होय, यह सुन मैत्रेयोने कहा, हे भगवान! जो यह सब पृथिवी मेरेपास धनसे परिपूर्ण होय तो क्या मैं अमर होजाऊंगी, तब याज्ञवल्क्यजीने उत्तर दिया कि यह बात तो धनसे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. . . Jun Gun Aaradhak Trust Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्त्रीचरित्र. नहीं होसकती, जैसा कि धनवालोंका जीवन होता है। वैसाही तुम्हाराभी जीवन होगा, अमर होनेकी आशा तो धनसे नहीं है, यह सुन मैत्रेयी बोली, हे महात्मन् जिससे मैं अमर नहीं हूंगी तो उससे मेरा क्या प्रयोजन निकलेगा ? जो अमर होनेका उपाय आप जानते हो तो वही मुझसे कहिये, याज्ञवल्क्यजी बोले, हे प्रिये ! तुम पहलेही मुझको बहुत प्यारी थी. और अब तो बहुतही प्यारी वार्ता मुझसे पूछती हो, इससे मेरा चित्त तुमसे बहुतही प्रसन्न है, मेरे समीप आकर बैठो तुमसे अमर होनेका उपाय कहताहूं सावधान मनसे मेरे वचनोंको हृदयमें धारण करो, मैत्रेयीने कहा, आप कहिये में ध्यान पूर्वक श्रवण करती हूं याज्ञवल्यजी कहते हैं, हे मैत्रेयि! जो स्त्री अपने पतिमें प्रेम रखती है सो पतिके प्रयोजनसे नहीं केवल अपनेही प्रयोजनसे पतिमें प्रेम रखती है क्योंकि दरिद्री और मूर्ख पतिमें वैसा प्रेम नहीं करती जैसा कि कमाऊ और बुद्धिमान तथा निरोगपतिमें प्रेम रखती है और पुरुषभी स्त्रीमें अपनेही लिये प्रेम P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. करताहै, स्त्रीके लिये स्त्रीमें प्रेम नहीं करता ! एवं पुत्रों में पिता अपने आनन्दके लिये प्रेम करता है पुत्रोंके लिये पुत्रों में प्रेम नहीं करता क्योंकि आज्ञा भंग करनेवाले और दुष्ट पुत्रोंमें कोई प्रेम नहीं करता, इस कारण ये झूठे और क्षणभंगुर है, इन सबोंमें प्रयोजनकी मित्राई है, वास्तविक प्रेम तो आत्माहीमें है अतः वह सत्य हैं और अपनेमें सदैव प्रेम रखता है, जैसे पक्षी अपने बच्चोंको अपने पंखोंके नीचे दबाकर सोता हैं और पुष्ट करता है ऐसेही वह परमात्मा सर्वदा अपनी रक्षा करता है, इससे उसीमें प्रेम करो क्योंकि वह परमात्मा अवि- नाशी और सदैव तुम्हारा साथी है. - श्रुति. आत्मावारे दृष्टव्यः श्रोतव्यो मंतव्यो निदिध्यासितव्यश्चेति // अर्थ-हे मैत्रेयि ! वह परमात्माही सुननेके और विचारनेके और मनमें धारण करने, और हृदयमें साक्षात P.P. Ac. Gunratnasuri'M. Jun Gun Aaradhak Trust . Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - . स्त्रीचरित्र.. देखनके योग्य है; हे मैत्रेयि ! जो तुम अमर होना चाहती हो तो उसी परमात्माका श्रवण और विचार ध्यान और अपने हृदयमें दर्शन करो, इति / : वेद वेदांग स्मृति शास्त्रः पुराण आदिकोंसे स्त्रियोंका पढा होना सूचित होता है स्त्रियोंको पढना परमावश्यक है तथापि भारतवर्ष स्त्रियोंको पढानेकी प्रथा लुप्त होगई है, पुरुषका आधा अंग स्त्री है, स्त्रीका न पढाना ऐसा है। मानों आधा अंग सुशोभित है और आधा अंग दीन और मलीन है.... . , शकुन्तला........... महाकवि कालिदासकृत शकुन्तला नाटकमें कच मु. निकी कन्या शकुन्तलाने अनेक शास्त्र पढे और महाराज दुष्यन्तकी दी हुई अंगूठीमें जो नाम खुदा हुवा था, उसको पढ उसको अर्थको अपनी सहेली अनसूया और प्रियम्बदाको समझाया था....... .. अनसूया... ब्रह्मपुत्र महामुनि अत्रिजीकी स्त्री पतिव्रता अनसूयाने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 37 अनेक शास्त्र पढके विद्यावती हो लोगोंको अनेक शास्त्र पढाये.. - चित्ररेखा........ .. राजा बलिका ज्येष्ठ पुत्र बाणासुर था, उस बाणासुरके प्रधानमंत्री कूष्मांडकी बेटी चित्ररेखा थी जिसके समान शास्त्र ज्ञान और शिल्प विद्या तथा चित्र खींचनेंमें उस समयं कोई नहीं था, श्रीमद्भागवत दशमस्कन्धके अध्याय 63 में लिखा है कि ऊपाने जिससमय स्वप्नमें अनिरुद्धजीको देखा और व्याकुल हुई, उससमय अपनी सखी ऊषाकी स्वप्न व्यथा दूर करनेके लिये अनेक चित्र खींचकर चित्ररेखाने दिखलाये जब अनिरुद्धका चित्र खींचकर चित्ररेखाने दिखलाया उस समय ऊपाने कहा कि सखी, यही मेरे चित्तचोर है, रात मैंने इसी प्रियतमको स्वपमें देखा था, यह सुन चित्ररेखाने परमभक्त वैष्णवका वेष बनाय द्वारकापुरीसे अनिरुद्धजीको पलंगसमेत लाकर ऊपाके पास रखदिया, यह चरित्र देख ऊषा बहुत प्रसन्न हुई और चित्ररेखासे विनयपूर्वक कहने लगी कि P.P.AC. Guntatnasuri.MS.: Jun Gun Aaradhak. Trust Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र, सखी ! तुमने मेरेलिये बड़ा कष्ट पाया, इसका पलटा मैं तुम्है कभी नहीं दे सकती, चित्ररेखा बोली सखी! संसारमें सबसे बढकर सुख यही है कि जो दूसरेको सुख दीजै यह शरीर किसी कामका नहीं है इससे किसीका काम होसकै तो यही परम लाभ है इसमें 1) स्वार्थ परमार्थ दोनों होते हैं। लीलावती. लीलावतीको कोई भास्कराचार्यजीकी स्त्री कहते हैं कोई भास्कराचार्यजीकी गुरुपुत्री बतलाते हैं, लीलावती परमगुणवती थी, जिसके नामसे लीलावती नामक गणितग्रंथ ज्योतिषशास्त्रमें परमविख्यात है. .. मालती.. मालतीनेभी पाठशालामें रहकर अनेक विद्याओंमें विचारपूर्वक अभ्यास किया था मालतीके विद्यावती और गुणवती होनेका वृत्तांत मालती माधव नामक नाटकमें लिखा है. Jun-Gun Aaradhak Trust DuTPSuri Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. स्त्रीवद्धिप्रशंसाः। कोई कोई पुरुष यह कहते हैं, कि स्त्रियोंकी बुद्धि तुच्छ होती है, उनका अभ्यास शास्त्रमें नहीं होसकता, तहा नीतिशास्त्रमें लिखा है कि, दोहा. . पुरुषन ते दूनी क्षुधा, बुध्दि चौगुणी होय। मोह आठ साहस छ गुण, या विधि तिय सब कोय // 1 // - देखिये विना सिखाये पढाये केवल देखनेही मात्रसे अनेक वेल, वूटे और भाँति भाँतिके व्यंजन तथा चित्रआदि अनेक वस्तुयें बुद्धिवानीकी बनाती है कि, जो पुरुषोंको सिखानेपरभी कठिनतासे आती हैं, इससे नि- श्चय होता है कि स्त्रियोंको विद्यामें शीघ्र अभ्यार होजाता है. - कवित्त-घनाक्षरी। स्त्रीको स्वतंत्रता न उचित उचारी वेद P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र.. चालक पन माहिं पिता पूँछि कीजै कोउ काज / स्वामी पूंछ कीजै काम किंचित्त विवाह पाछै स्वामी न होय पुत्र पूछि सब साजै साज // पुत्रहू न होय पति पक्ष पूछि कीजै पति पक्ष न होय पितु पूछि राखे लाज। दोउ पक्ष रहित कदापि कोऊ काज होय सम्मति सदैव हित पूंछिपामाधीशराज // 1 // भावार्थ यह कि स्त्रीको स्वतंत्र होना कभी नहीं चाहिये तुलसीदासजीने रामायण में लिखा है कि चौपाई. महादृष्टि भइ फूटिकियारी। जिमि स्वतंत्र हुइ विगरै नारी॥: :: विना पढी हुई स्त्री मुर्खताके कारण स्वतंत्रतासे रहना उचित समझती है, स्त्रीको सर्वदा पराधीन रहना शास्त्रमें लिखा है, जैसा कि पूर्व कवित्तमें लिखा है, ... .. PAC. GunratnasuriM.S.... Jun Gun Aaradhak Trust Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. पूर्व समयमें सब राजालोग अपनी स्त्रियोंको साथ लेकर सभामें विराजमान होते थे, वही चाल. अबभी महाराष्ट्र द्राविड तैलंग आदि देशोंमें पाई जाती है परंतु गौड़ और भरतखंडके कुछ देशोंमें बहुत दिनोंसे यह चाल बंद होगई है, विना पदेहुये किसीकी क्रूरता नहीं जाती पढनेसे क्रूरता विनष्ट होजाती है, इस कारण विद्याका पढना पढाना परमावश्यक है, देखो मंडनकी स्त्री विद्याधरी शंकराचार्यके शास्त्रार्थमें मध्यस्थ थी।। ........ पतिव्रतामाहात्म्य.. श्रीमहाभारतमें पतिव्रतामाहात्म्य लिखा है उसको हम यहां संक्षेप रीतिसे भाषामें लिखते हैं माहाराजा युधिष्टिरजीने परम तेजस्वी मार्कण्डेयमुनिसे यह धर्मप्रश्न किया, हे भगवन् ! हम आपके मुखारविंदसे स्त्रियोंका उत्तम माहाल्य और सूक्ष्म धर्म तत्त्वपूर्वक सुनना चाहते हैं, इस जगतमें सूर्य, चन्द्रमा, वायु, पृथ्वी और अमि ये देवता प्रत्यक्ष देख पडते हैं, हे भृगुनन्दन, पिता, माता, भगवान् गुरु और देवताओंके रचे हुये पदार्थ जो .. .P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रः - दोख पडते हैं, ये सब जैसे माननीय हैं. वैसेही पक पतिवाली स्त्रियांभी माननीय हैं. हे महामुनि, आप हमसे पतिव्रता स्त्रियोंका माहात्म्य वर्णन कीजिये देखो पतिव्रता स्त्री अपने मन और इन्द्रियोंको रोककर पतिको देवताके समान मानकर ध्यान करती हैं हमको यह उनका कर्म बहुत कठिन जानपडता है, मनुष्यको माता पिताकी सेवा और स्त्रियोंको पतिकी सेवा करना उचित है, पतिव्रता स्त्री एक पतिकीही स्त्री होकर रहती है सत्य बोलती है, दश महीने तक अपनी कुक्षिमें गर्भ धारण करती है, फिर प्रसूतिके समयमें बडे प्राण संशयका तथा अतुल वेदनाको प्राप्त होती है. हे द्विजवर, अनन्तर बड़े कष्टसे पुत्रोंको उत्पन्नकर बडे स्नेहसे पालन करती है. यह सुनकर मार्कण्डेयमुनि बोले, हे राजन् , तुम्हारे इन प्रश्नोका उत्तर मैं कहता हूं, सावधान होकर सुना कोई मनुष्य माताको मानता है, कोई पिताको अधिक मानता है, परन्तु दोनोंको एक समानही मानना उचित हैं, क्योंकि जिसप्रकार माता बडे कष्टसे पुत्रको पालती ak P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. है उसीप्रकार पिताभी तब देवताओंकी पूजा और वन्दन, क्षमा, अनुष्ठान आदि अनेक उपायोंसे पुत्रका कल्याण चाहते रहते हैं, हे युधिष्टिर, एवं माता पिता दोनों यह पुत्र कैसा होगा ऐसी चिन्ता सदा करते हैं, तथा पुत्रके मंगलकी इच्छा करतेहुये मातापिता सर्वदा अपनी आशाको सफल होनेकी आकांक्षासे अपने मनको पुत्रहीमें लगाये रहते है, जो पुत्र मातापिताको आशाको सफल करता है, और जिसके ऊपर पिता माता सदैव प्रसन्न रहते हैं, उसीको धर्मका जाननेवाला समझना चाहिये, वही पुत्र इस जगतमें कीर्तिवाला और धर्मिष्ट कहा जाता है, तथा जो अपने मातापिताकी सेवा नहीं करता, वह यज्ञादि कर्म करताहुआभी कुछ फलको प्राप्त नहीं होता, एवं जो स्त्री अपने पतिकी सेवा करती है वह स्वर्गको जीत लेती है, हे युधिष्टिर यहां एक इतिहास सुनो, कोई एक कौशिक नामक तपस्वी ब्राह्मण था, वह अंगों सहित उपनिषद और वेदोंका अध्ययन करता था, एक दिन वह ब्राम्हण किसी वृक्ष की जडके ... P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र समीप बैठा वेद पाठ करता था, उसी वृक्षके ऊपर एक बगुली छिपके बैठी थी, उसने ब्राम्हणके ऊपर बीउका दी तब उस ब्राम्हणने महाकोषदृष्टिसे उस पक्षीको ओर देखा, तो वह बगुली प्राण रहित होकर वृक्षपरसे गिरपडी उस बगुलीको अचेत पडीहुई देखक ब्राम्हणने बहुत शोक किया कि, मैंने क्रोधके वश होकर यह अयोग्य काम करडाला, अनन्तर - वह विद्वान् ब्राह्मण वहांसे उठकर भिक्षाके निमित्त गांवमें गया. वहां कई एक पवित्र गृहस्थियोंके द्वारपर भ्रमण करते करते एक गृहस्थके द्वारपर गया, जिस घर पहलेभी कभी भिक्षा मिलीथी, वहां जाकर भिक्षाको याचना की. भीतरसे एक स्त्रीने उसको उत्तर दिया, हे ब्राह्मण ! खडे रहो, अनन्तर वह स्त्री पात्रोका शुद्ध करने लगी, इतनेहीमें उस स्त्रीका पति क्षुधास पीडित अकस्मात् बाहरसे आया, तब वह पतिव्रता स्त्री अपने पतिको देखकर पतिसेवामें लगगई उस ब्राह्मणको भिक्षा देना भूलगई, वह स्त्री अपने पति P.P. Ac. Gunratnasuri M.S Gun Aaradhak Thust'. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. कोही साक्षात् देवता मानती थी, सास, श्वसुर आदिकीभी यथोचित सेवा करती थी, और देवता, अतिथिकाभी यथाशक्ति सत्कार करती थी, सबके भोजन करने पश्चात् आप भोजन किया करती थी, और इन्द्रियोंको सर्व तो भावसे अपने वशमें रखती थी, जब सब कामसे निश्चित हुई, तब वह स्त्री भिक्षाके निमित्त द्वारपर स्थित हुये ब्राह्मणका स्मरण आजानेसे भिक्षा लेकर गई, और उसको देखकर बहुत लजित दुई, ब्राह्मणने उस स्त्रीको देखकर कहा कि, इतनी देर मुझको भिक्षा देनेके अर्थ क्यों की यह कह क्रोधदृष्टिसे देखने लगा, तब वह स्त्री ब्राम्हणसे बोली कि, मैं अपने पतिको सबसे बढकर देवता मानतीहूं, इस समय मेरा पति बाहरसे भूखा और थका आया था, उसकी सेवा करनेमें लगगई, इस कारण आपको भिक्षा देनेको न आसकी. ... - यह सुन ब्राम्हण बोला, तू अपने पतिको ब्राह्मणसेभी श्रेष्ठ मानती है, और गृहस्थधर्ममें रहकरभी P.P. Ac. Guhratnasuri M.S. Jun Gun, Aaradhak. Trust Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. ब्राम्हणोंका अपमान करती है, हे गर्ववाली, तू नहीं जानती कि ब्राह्मणोंको इन्द्रादिक देवताभी प्रणाम करते है, पृथिवीपर रहनेवाले मनुष्योंकी क्या गिनती है, क्या तूने वृद्ध लोगोंसे उपदेश नहीं पाया, अग्निवे समान ब्राह्मण अपने तेजसे इस पृथ्वीकोभी भस्म करसकते हैं, यह सुनकर वह स्त्री बोली, हे तपोधन मैं वह बगुली नही हूं, जिसको तुमने कोधदृष्टिसे मा दिया था, आप क्रोधको त्याग दो, कोषदृष्टिसे देखका तुम मेरा कुछ नहीं करसकोगे, ब्राह्मणलोग शान्त स्वभाववाले देवताके समान होते हैं. उनका अपमान मैं नहीं करती हूं, हे विप्र, तुम मेरा अपराध क्षम करो, मैं ब्राम्हणोंके माहात्म्यको भलीभांति जानती हूं, महातपस्वी ब्राह्मणोंकेही क्रोधसे समुद्र खार किया गया है, ब्राम्हणोंका क्रोधामि दंडकवनमें अबतक शान्त नहीं हुवा है, महात्मा ब्राह्मणोंके बडे 2 प्रभा सुननेमें आते हैं, हे द्विजवर, पतिकी सेवा करनाई स्त्रीका परमधर्म है, उसके फलको तुमने प्रत्यक्ष देखा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. कि तुम्हारा वगुलीका हत्यारूप कर्म हमने जान लिया हे ब्राम्हणोत्तम, यह क्रोध मनुष्योंके शरीरमें रहनेवाला शत्रु है, जो क्रोध और मोहको त्याग करता है, सत्य बोलता है, तथा गुरुको प्रसन्न रखता है, उसीको देवतालोक उत्तम ब्राम्हण मानते हैं, तथा जो हिंसा नहीं करता, जितेंद्रिय रहता, और पवित्र रहता कामको जीत लेता सब जीवोंको समान दृष्टिसें देखता, वेदोंको पढ दूसरोंको पढाता है, स्वयं यज्ञ करता, और दूसरोंको कराता है, और जो यथा शक्ति दानभी करता है, उसीको ब्राम्हण कहते हैं, हे ब्राम्हण धर्म बहुतही सूक्ष्म है, इसीसे यद्यपि तुम धर्मके जाननेवाले वेद पाठी और पवित्र रहनेवाले हो तथापि तुम धर्मको तत्त्वपूर्वक नहीं जानते हो, ऐसा मुझको जान पडता है, यदि तुम सचमुच धर्मको भलीभांति नहीं जानते हो तो मिथिला पुरीमें धर्मव्याधके पास जावो, वह अपने मातापिताकी सेवा करता हुआ, सत्यवादी और इन्द्रियोंको वशमें रखनेवाला है, उसके पास तुम जावो तुह्मारा कल्याण . P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 स्त्रीचरित्र... हावेगा. यह सुन वह ब्राम्हण वोला, हे शोभने, में तुझपर बहुत प्रसन्न हुवा, तेरा कल्याण हो. मैं अपना कार्य साधन करनेको तेरे कथनानुसार जाताहूं, यह कह मिथिलापुरीको धर्मव्याधके पास अपने घर होकर वह ब्राह्मण गया, वहां कसाई मंडीमें धर्मव्याधको मांस वेचते देखकर एकान्तमें खडा होगया, तब धर्मव्याध ब्राम्हण अभ्यागत समझ शीघ्र उसके पास आया, और बोला, आप ब्राम्हण हो मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिये, आपका कल्याण हो, जो आज्ञा हो वह मैं करनेको आपके सन्मुख उपस्थित हो, आपको पतिव्रता स्त्रीने यहां मेरे समीप भेजा है, सो वृत्तान्त में जानता हूं. यह सुनकर वह ब्राह्मण जैसे उस स्त्रीके वचनको सुः नकर विस्मित हुवाथा वैसेही धर्मव्याधके वचनको सुन कर विस्मय युक्त होगया, और उस. व्याधकोभी पतिव्रता स्त्रीके समान त्रिकालदर्शी जाना. व्याधने कहा, हे. ब्राम्हणदेवता ? यह स्थान आपके रहने योग्य नहीं है, कृपा करके आप मेरे घरपर चलिये, ब्राह्मणने कहा, P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. बहुत अच्छा, तब वह व्याध ब्राह्मणको अपने घर लिवा लेगया, और उस सुन्दर भवनमें उत्तम आसनपर बिठाय अर्घपाद्यादिसे यथोचित पूजन किया. अनन्तर जब वह ब्राम्हण सुखपूर्वक बैठा, तब उस व्याधसे बोला, हे व्याध , यह कर्म आपके योग्य नहीं है ऐसा - मुझे जान पडता है, आपके इस घोर कर्मको देख मुझे - बडा खेद होता है, यह सुनकर व्याध बोला. हे विप्र ? यह कुलोचित धर्म हमारे पिता, पितामहादिकोंका किया हुआ है, उसीमें मैं भी प्रवृत्त हूं, आप इसमें खेद न कीजिये, विधाताने जो कर्म पूर्वकालसे हमारे लिये रचा है उस कर्मको मैं करता हूं और बडे यत्नसे वृद्ध मातापिताकी सेवाभी करता हूं. मैं सत्य बोलता हूं, किसीके गुणोंमें दोष नहीं लगाता हूं. यथाशक्ति देवता, अतिथि, सेवकों दानभी करता हूं, और शेष अन्नसे अपनी जीविका करता हूं, किसीको दोष नहीं लगाता हूं. किसीकी निन्दा नहीं करता हूं, इस संसारमें खेती, गारेक्षा, वाणिज्य, दंड नीति, त्रयीविद्या; ये जीविकाके P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र, साधन हैं, सो सब वर्गों के मनुष्य अपने अपने वर्णानुसार - कर्म करके जीविका करतेहैं, शूद्रके सेवा, वैश्यके खेती, क्षत्रियको संग्राम; और ब्राह्मणको ब्रह्मचर्य, तप, मंत्र तथा सत्यवादी होना योग्य हैं, राजाके अपधर्मसे प्रजामें अनेक उपद्रव होते हैं, प्रजामें से कोई लूला, कोई लंगडा, कोई अंधा, कोई बहिरा,कोई अंगहीन होता है. राजाके धर्मवान् होनेसे प्रजाको सुख मिलताहै,निरन्तर प्रजा सुखी रहती है. हमारा राजा जनक बडा धर्मात्मा है, उसके राज्य में सदा धर्मकी वृद्धि होती है, अपने धर्ममें सदा रत रह प्रजा पर सदा अनुग्रह करता है, और दंडके योग्यपुरुषको दंड देता हैं, चाहे वह अपना कुटुम्बीही क्यों न हो. - गुप्त दूतों द्वारा राजा जनक अपनी प्रजाके धर्मको निरन्तर - देखता रहता है. इसीसे महाराजा जनकके राज्यमें चारों वर्गों के मनुष्य अपने अपने कर्ममें निरन्तर रत रहते हैं, यहां विपरीत कर्म करनेवाला कोईभी नहीं देखपडता है, यह महाराजा जनकके धर्मात्मा होनेहीके कारण सब कुछ आनन्द व धर्म दीख पडता है, जो राजा अधर्मी होता है P.P. Ac. Gunratnasu Guh Aaradhakrust Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. 51 उसके राज्यमें धर्मका और वर्णोका संकर होकर जिधर देखो उधर अधर्मही होने लगता है, जबतक दुर्भिक्ष (अकाल) पडता है, नीतिमें लिखा है, यथा राजा तथा प्रजा, यदि राजा धर्मात्मा होता है तो उसकी प्रजाभी धर्मात्मा होती है, और जो राजा अधर्मी होता है, तो उसको प्रजाभी अधर्मी होजाती है... / व्याध कहता हैं. हे द्विजवर ! अन्य जनों करके मारे. हुए जीवोंके मांसको मैं सदा बेचाकरता उनको कुछ मैं अपने हाथसे नहीं मारता हूं, और मांस नहीं खाता हूं दिनभर उपवास करके, रात्रिमें भोजन करता हूं, ऋतु कालमें ही स्त्रीगमन करता हूं इसीसे त्रिकालकी बातको जानता हूं, यदि इसीप्रकार आपभी धर्मपूर्वक वर्ताव करतेहुये अपने मातापिताकी सेवा करोगे तो आप त्रिकालदर्शी होजाओगे, धर्मपूर्वक बर्ताव करनेके लिये अंतःकरण शुद्धिकी परम आवश्यकता है, अपनी प्रशंसा न करनेवाला, दूसरेकी निन्दा न करनेवाला, गुणसम्पन्न ऐसा मनुष्य प्रायः जगत्भरमें नहीं दीख पडता.. P.P.AC. Gunratnastri.M.S. .Gun Aaradhak Trust . Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . स्त्रीचरित्र. मू-विकर्मणां तप्यमानः पापाद्विपरि मुच्यते। न तत्कुर्या पुनरिति द्वितीयात्परि - मुच्यते // 1 // पापान्यबुद्गहे पुराकृतानि -प्रारधर्मशीलो विहन्ति पश्चात् // धर्मोरा जन्नुदते पुरुषाणां यत्कुर्वते पापमिहप्रमा - दात् // 2 // - अर्थ-भूलसे पाप होजानेपर जो मनुष्य पीछेसे मनमें सन्ताप करे तो वह कियाहुआ पाप दूर होजाताहै अब मैं पाप नहीं करूंगा ऐसा निश्चय करनेवाला फिर दूसरे पापसे मुक्त होजाताहै, और पाप नहीं करताहै // 1 // मार्कण्डेयजी राजा युधिष्ठिरसे कहते है हे रा. जन् , धार्मिक मनुष्य अज्ञानसे जो हिंसा आदि पाप कर्मकरता है, उस पापको वह पश्चात्ताप करके नाश करता है, और जो पाप प्रमादसे किया जाता है, वह पाप उस मनुष्यका धर्म नष्ट करता है // 2 // मू-यज्ञो दानं तपो वेदाः सत्यं च द्विज P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Gun Aaladnak Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 53 सत्तम / पञ्चैतानि पवित्राणि शिष्टाचारेषु नित्यदा // 3 // अर्थ--धर्म व्याध कहता है हे द्विजोत्तम ! यज्ञ, दान, तप, वेद, सत्त्य, ये पांच कर्म पवित्र है सदा शिष्टाचारमें गिने जाते है, अर्थात् शिष्टाचारोंमें इनकी गणना हैं // 3 // सर्वतो भावसे शिष्टाचारमें प्रवृत्त रहनेवाला पुरुष जिस वृत्तिको करता है, वह सर्वदा सुखी रहता है. वे. दका सार सत्य हैं, सत्यका सार दम (इन्द्रियोंको विष योंसे रोकताह) दमका सार त्याग अर्थात् दान हैं, जिस मनुष्यका जैसा स्वभाव होता है, वह अपने स्वभावके / अनुसार वैसाही रहता है, जिसका मन वशमें नही है / वह पापात्मा, क्रोध, काम, आदि दोषोंको ग्रहण करलेता है, जो मनुष्य आस्तिक, वेदमार्गपर चलनेवाले, ब्राम्हणोंको माननेवाले और सदाचारसम्पन्न है, वेही स्वर्गवासी होते है. मू-अन्योहि नाश्नति कृतं हि कर्म P.P.AC.Gunratnasuri M.S.: Jun Gun Aaradhak Trust Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्त्रीचरित्र मनुष्य लोके मनुजस्य कश्चित् // यत्तेन कि चिंबिकृतं हि कर्म तदस्यते नास्ति कृतस्य नाशः॥४॥ ... अर्थ-इस मनुष्यलोकमें एकके कियेहुये कर्मका फल दूसरा कोई नहीं भोगता है, किन्तु जिसने जो कुछ कर्म किया है उसका फल वही भोगता है क्योंकि कर्मका नाश कभी नहीं होता है // 4 // इसप्रकार अनेक शुभ वचन धर्मसम्बन्धी सुनाका धर्म व्याध उस ब्राम्हणको अपने घरके भीतर लिवा ले गया जहां उसके वृद्ध माता, पिता प्रसन्नमन सुन्दा आसनपर बैठे थे, धर्म व्याधने जातेही उन दोनोंक प्रणाम किया, उन्होंने आशीर्वाद दिया और ब्राम्हणका देखकर प्रणामपूर्वक सत्कार किया, अनन्तर धर्मव्याधस ब्राह्मणसे कहा कि.. मू-पिता माता च भगवन्नेतौ मद्देवत म्परम् // यद्देवतेभ्यः कर्तव्यं तदेताभ्यां क Ac:Gunratnasure Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भाषाटीकासहित. 55 रोम्यहम् ॥५॥त्रयस्त्रिंशद्यथादेवाः सर्वे श-: ऋपुरोगमाः॥ सम्पूज्य सर्वलोकस्य तथा वृद्ध विमौमम् // 6 // . ___अर्थ- हे भगवन् ? ये मेरे पिता और माता हैं सो मेरे परमदेवता है,जो पूजन देवताओंके निमित्त योग्य है वही मैं इनकी करता हूं, // 5 // जिसप्रकार इन्द्रादिक तेंतीस देवता सबलोकोंको पूजनीय हैं उसीप्रकार ये वृद्ध माता पिता मुझे पूज्य हैं॥६॥ इन्हीं दोनौंको में अग्नि, यज्ञ, चारा वेद, और सब समझता हूं. मेरे प्राण, धन,स्त्री, पुत्र, मुहृद औरभी जो कुछ मेरे पास है, सो सब इन्हींके निमित्त है, इनकी पूजा मैं नित्य स्त्री पुत्रोंसहित करता हूं, अपनेही हाथसे इनको प्रतिदिन स्नान कराता, पादप्रक्षालन करता, और भोजन खिलाताहूं, इनका काम कैसाभी हो मैं उसको धर्म समझकर करताहूं, इनकी सेवा मैं आलस्य छोडकर करताहूं,ऐश्वर्यकी इच्छा करनेवाले मनुष्यके माननीय गुरु, पांच हैं. 1 पिता, 2 माता, 3 अनि, 4 आत्मा, गुरु, जो / P.P. Ac. Gunratnasyri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust.. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. कोई इन पाचौंकों भलीभांति मानता है, वही धर्मात्मा मानाजाता है, हे विप्र, आपसे, उस पतिव्रता सत्यशील स्त्रीने जो हमारे पास भेजा सो आपका संब वृत्तान्त ज्ञानदृष्टि से हमने देखलिया, यह सब प्रभाव इन मातापिताकी सेवारूपी तपहीका फल है,अब मैं आपके हितकी एक बात कहताहूं, सो सुनिये,आपने यह अनुचित कर्म किया है. कि जो अपने माता पिताका अपमान करके उनकी विना आज्ञालिये वेद पढनेके अर्थ घरसे चले आये हो, आपके शोकसे वे दोनों अन्धे होगये हैं। इस कारण अब आप शीघ्र अपने घर जाकर अपनी से वासे उनको प्रसन्न करो, आप तपस्वी महात्मा हो धर्मका उल्लघनकरना आपको उचित नहीं, विना मातापिताका प्रसन्न किये तुह्मारा सब कर्म करना वृथा है, इससे हे विप्र, तुम हमारा वचन मानकर अपने घर जाओ, और तन मनसे मातापिताकी सेवा करो, मैं तुमारे कल्याणाको बात कहताहूं; यह सुन वह ब्राम्हण उस धर्मव्याधका -- बहुता प्रशंसा करके अपने घर गया, और अपने माता .P.P.AC.GunratnasurrM.S.. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 57 भाषाटीकासहित. पिताकी सेवा तन मन धनसे करने लगा, यह आख्यान महाभारतमें सविस्तार है. मू० सुतं पतन्तं प्रसमीक्ष्य पावके न बोधयामास पतिं पतिव्रता // अभूत्तदानी व्रत भंग शंकया हुताशनश्चन्दनपङ्कशीतलः॥१॥ अर्थ-एक पतिव्रता स्त्रीका पति अपनी स्त्रीके घुटनेपर शिरधरे सो रहाथा, इतने में उसका बालक खेलता हुआ आग्निकुंडमें जाय गिरा, पतिव्रताने पतिकी नींद भंग होजानेके कारण अग्निमें बालकको गिरते हुये देख करकेभी पतिको नहीं जगाया, पतिव्रतभंग न होजाय इस आशंकासे अग्नि चन्दनकी कीचके समान शीतल होगई, ऐसा पतिव्रतधर्मका माहात्म्य है. .. भारत माता.... कुछ निद्रित और कुछ जागृतभाववाली भारत माताके पति भारतदुर्गाकी होली P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. . Gun Aaradhak Trust Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र होली. _भारतमें मची है होरी। ...इक और भाग अभाग एक दिशि होय रही झकझोरी / अपनी अपनी जय सब चाहत होंड पडी दुहुँ ओरी / इन्द सखि बहुत बटोरी ॥१॥धूर उडत सोड अबिर उडावत सबको नयन भरोरी। दीन दशा - असुवन पिचकारिन सब खिलार भिज यो री / भीजि रहे भूमिलटोरी // 2 // भइ पतझार तत्व कहुँ नाहीं सोइ वसन्त प्रगटोरी। पीरे मुखभड प्रजादीन व्है सोइ फूली सरसोरी / शिशिरको अन्त भयोरी // 3 // बौराने सब लोग न सूझत आम सोई वौरयोरी / कुहू कहत कोयल ताहीत महा अँधेर छयोरी / रूप नहि काहू ल M.P.P.AC.Guirathasuri vios. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. . 59 ख्योरी // 4 // हारयो भाग अभाग जीत लखि विजय निसान हयोरी / तव उछाह श्रीधनबुधि वलसब फगुआ माहि लयोरी। शेष कछु रहि न गयोरी ॥५॥खान पियन अरू लिखन पढनसों काम न कछु चलोरी / आलस छोडि एक मत हुइकै साची वृद्धि करोरी / समय नहिं नेक वचोरी॥६॥ आलसमें कछु काम न चलि है सब कछु तो विनशोरी। कित गयो धन बल कल विवेक अव कोरो नाम वचोरी / तऊ नहीं सुरत करोरी // 7 // कोकिल यहि विधि बहु वकि हास्यो काहू नाहीं सुनोरी। मेटी सकल कुमेटी थोथी पोथी पढत मरोरी / काज नाहं तनिक सरोरी // 8 // आलस दिन इमि खेलत वीते खेल नहीं निपटोरी। P.P.AC.Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . स्त्रोचरित्र. भयो पंक अतिरंकको तामै गजको जूथ फसोरी / न कोउविधि निकसिसकोरी॥९॥ कंकन बाँधौ करमें सवरे चूरी डारहु तोरी। एक मतो करि दृढ व्है सवरे आगेहि चरन धरोरी / मचावहु गहिरी होरी // 10 // अवलनसों जिन डरहु धाइ दृढ करिके कः रन गहोरी निपट निलज करिके झक झो रहु अरुन रंगमें वोरी। छबी लिन रंगन रंगोरी ॥११॥होरी सब ठावन लै राखी पूजन लै लै रोरी। घरके काठ डारि सब दीने गावत गीतन गोरी / झुमकामि रहोरी // 12 // फेर धुरहरी भई दूसरे दिन जब अगिन बुझोरी // सब कछु जरि गयो हाँ रीमें तब धूरहि धूर बचोरी नामयमघंट परोरी // 13 // फॅक्यो सब कछ भारतन P.P:AC.Gunratnasurr M.S: UN A nak Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. का हाथ न हाय रहोरी। तब रोअन मिस घाटो गाई भलीभई यह होरी। भलो त्यौहार भयोरी // 14 // __ भारतमाताके प्रति भारतलक्ष्मीका गीत.. मलार. लखौ किन भारतवासिनकी गति / मदिरा मत्तभयेसे सोवत व्है अचेत तजिसव मति ॥धन गरजै जल वरसै इनपर विपति परै किन आई। ए वज मारे तनिक न चौकत ऐसी जडता छाई // भयो घोर अँधियार चहूँ दिशितामहँ वदन छिपाये।निरलज्जपरे साइ आपन पौ जागतहून जगाये ॥कहा करें इतरहिके अव जिय तासों यहै विचारा। छोडि मूढ इन कह अचेत हम जलधिके पारा // 15 // ....... P.P.AC. Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र - भारतमाता सचेत होके अपने पुत्रको जगाती है. पृथ्वीराजजयचन्दकलह करियवन वुलायो। तिमिरलिंग चंगेज आदि बहु नरन कटायो॥ अल्लादीन औरंगजेब मिलि धर्म नशायो / विषय वासना दुसह महम्मदशह फैलायो॥ तबलौं सोये बहु वत्स तुम जागे नहिं कोऊ जतन / है. महाराज यडवर्ड अब जागहुः सुत भय छोडि मन // 16 // . तथा कह गये विक्रम भोजराम बलि कर्णा ___ युधिष्ठिर / चन्द्रगुप्त चाणक्य कहाँ नाशे करिके थिर // कहँ क्षत्री सब मरे विनशि सब गये कितै गिर / कहाँ राजको तान साज जेहि जागत हे चिर // कहँ दुर्ग सैन P.P: Ac. Gunratnasuri M Jun Gun Aaradtak Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. धन वल गयो धूरहि धूर दिखात जग / उठि अंजौं न मेरे वत्सगन रक्षहिं अपनो आर्य मग // 17 // दोहा. जा वाली जैमिनि गरग पातंजलि शुक देव / रहे हमारेहि अंकमें कहहिं सवै भुवदेव // 18 // याही मेरे अंकमें रहे कृष्ण मुनि व्यास // जिनके भारत मानसों भारत वदन प्रकास // 19 // याही मेरे अंकमें कपिल सूत कर्पास / याही मेरे अंकमें शाक्य सिंह सन्यास // 20 // याही मेरे अंकमें मनु भृगु आदिक होय / तव तो तिनको करत हो आदर जग सब कोय२१ की प्रार्थना-छन्द. 'तजि मूर्खता उन्नति करहिं निजदेशमें . P.R.AC.Gunratnasuri-M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्त्रीचरित्र शुभ मति रहै / समुचित विवाह प्रचारही कुल नारिगणआनंद लहै। फैले सुविद्यादेः शमै गृह कलह मिथ्यालस वहै। यह दासपन आधीनता तुम कृपाते छिनमें दहै 22 वीरता. . प्रसंगवश यहां एक भारतवीरकी वीरताका वर्णन करते हैं. चित्तौर मेवाडके अधिपति महाराणा उदयसिंह बादशाह अकबरके समयमें थे, उनके ज्येष्ठपुत्र महाराणा प्रतापसिंहजी विक्रम सम्वत् 1618 में गांव गोधूदेमें गद्दीपर बैठे थे परन्तु महाराणा प्रतापसिंहजीके पास कुछ विशेष राजसीठाठ व कोई दृढ किल्ला नहीं था, क्योंकि चित्तौरगढको अकबरने पहलेही अपने वशमें करलिया था, और उनके जाति, भाई, तथा सम्बधीगण अकबरके साथी हो रहे थे, मारवाड, बीकानेर, आमेर और वृंदी जो कि पहले प्रतापसिंहजीके साथी थे वे अकबरके पक्षपाती हुये यहां तककी प्रतापसिंहजीका संगा - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaraghak Trust Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. भाषाटीकासहित. छोटाभाई सक्ताभी उनको छोडकर बादशाहसे जा मिला, इसके बदलेमें उसको उसके पूर्वजोंकी राजधानी चित्तौरगढ दिया गया और राणाको पदवी दीगई. __ इतना होनेपरभी वीर प्रतापसिंह महाराणाका उत्साह __ और साहस बढताही रहा, अकेले निःसहाय प्रतापसिंह पचीस वर्ष तक ऐसे प्रबल शत्रुके साथ लडते रहे, अन्तमें. एक प्रकार सफल मनोरथभी हुये. __एक दिन उदयपुरके राज्यदरिमें बैठे महाराणा - प्रतापसिंहजी भीमाशा मंत्री और कृष्णसिंह आदि सरदार गण राज्यकी वर्तमान दशापर विचार कर रहे थे, इतनेमें कविराजाजी आय विराजे, और सबको इच्छा पाय प्रतापसिंहजीके पूर्व पुरुषोंकी कोर्तिका वर्णन क स्ने लगा. सूर्यवंश इक्ष्वाकु जगतमें कीरति छाई। प्रगटे पूरन ब्रह्म राम रावणहिं नशाई // तिनके लक सुत भयेशत्रुहति कीरतिथापी। UP.P. Ac. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. बापा तिनके वंश जासुभय पृथ्वी कॉपी // जन्में जंगल माहिं आय चित्तौरहि छीन्यो। मोरि वंश परमार मार मेवारहिं लीन्यो। हिन्दूपति हिन्दूकुल सूरज नाम धारिके। हिन्दू यशकी ध्वजा उडाई गगन फारिकै // न वयें भये खुमान पराक्रम जगमें छायो। काबुललौं करिविजय मुहम्मद कैद बनायो॥ समरसिंह भये समरसिंह भारत रखवारे। -पृथीराजसंग यवन जूझिसुरपुरी सिधारे // कर्म देवि पति राज्यपुत्रसह रक्षन कीनो। कुतुबुद्दिनहिं हराइ यवन मसिटीका दीनो॥ - करणसिंह तब यथासमय निजराज संभारयो तासुत रावल महपतिनहिं झालोरे मारयो॥ महपसिंह झालोर मारिनिजराजहि थाप्यो। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. रतन सेन या वंश आप संभ्रमर्हि वढायो। अलादीन के दांत तोडि निजधर्म वचायो॥ ग्यारह पुत्र कटाय वारहें अजय वचायो। ठानि जहर व्रतनारिधर्म कुलधर्म रखायो।।, अजयसिंह करिविजय केलवाडा वश कीनो मुंज अचानक अजय शीशमें घावजुदीनो। सोइ जोलावै मुंजशीश युवराज हमारो। तव पुत्रन प्रति यह आज्ञा महराज प्रचारो। निजपितु शत्रु हराइ मुंजशिर हम्मिर काटे। बैठे तब हम्मीर केलवाडाके पाटे॥ मुहम्मदशह करिकैद चितौरहिं फेरिवसायो। यवन दर्पकरिआर्यध्वजा आकाशउडायो। प्रवल पराक्रम खेतसिंह जवगादी पाया। यवन मारिअजमेर जीतिनिजराजमिलायो। जहाज पुर दक्षिणलौं जयकारि राज वढायो। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. स्त्रीचरित्र. यवन शीश पगधरि वैर अपनो पलटायो। लक्खो राणाशीश राजलक्ष्मी तब आई। लक्ष्मी चारो ओर मनहं छाई छितराई॥ किये पहाडी प्रान्त आप वस रत्नखानिसह। सोना चांदी रत्न अमोलक बडे महल मह॥ किले महल बहु बने राजश्रीचहदिशि राजे। फीके शत्रुहिं किये अटल शिरछत्र दिराजे॥ प्रबल पराक्रम साथ पौत्र कुंभा जब बैठे। शत्रु हृदय दलमले कूर कायर घर पैठे॥ कविकुलमुकुट कहाइ नामथिर जगमेंथापे। विजयकियो गुजरात यवनहियभयसोंकांपे। याही कुलरानी मीर जग कीरति छाई। गिरिधर लाल रिझाई बहुत विधिलाडलडाई। राणा सांगा कीरति जगमेंको नहिं जाने। जाके असिको तेज शत्रुजिय सहजहिं माने। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2SAL VAS भाषाटीकासहित. वावरको वावरो कियो रणस्वाद चखाई। कितेक राजारावल रावत शिरहिं नवाई / / रत्नसिंह मेवाड रत्न निःशंकसदाई। पुरके फाटक रातदिवस राखे खलवाई॥ निज भुजबलनहिं घुसनदियेयवनरजधानी। जिनके यशकी सदा जगतमें चली कहानी। विगत निशामये उदय भानुखललंपटलाजे। चहुंदिशिछायो प्रतापसिंह लखिगीदडमाजे। अबु सोचनकी कौन बात है शूरवीरगन / उठौ उठौकटिकसौयादकरिनिजपवित्रपना जिनके नायक खुदप्रतापतिनको का संशयः जिनकी टेढीभृकुटीलखिभाजत जगकेभय। जबलौ घटमें प्राण न तबलौ छुअन दीजै। यवन सैनमेवारहिं लखि लखि हाथनिमीजै। - कोउकाजज़ग कठिन नाहिं जो दृडव्रतधारो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. ताते हे नर व्याघ्र! वेगिरन घोष प्रचारो॥ -आगो पीछोत्यागि होहु सब एक प्रेममय। यह निश्चय जियधरौ धर्म जित जय तित - निश्चय॥ ... यह सुन प्रतापसिंह वचन..... जवलौं तनमें प्राणन तवलों टेकहि छोडौं। स्वाधीनता बचाइ दासता शृंखल तोडौँ // जो निजकुलमर्याद सहित जीवन तौ जीव न। नहिं ताते शतगुणित मरन रनमें जस पीवन // जो पै निजशरहि मारिके यह प. रतिज्ञा सखि हौं / तौ या सिंहासन पै बहरि पगधारन अभिलाषि हों। अन्तःपुरमें विराजमान महाराणा प्रतापसिंह कुछ * सोच विचार कर रहे हैं / कि.... " जबसे यहां मुसलमानोंका आगमन हुवा. तबसे सारा देश उजाड होगया, खेत ऊसर होरहे हैं, सारी श्रीजातीरही un Gun Aaradhak Truet P.P.AC.GunratnasuriM.S: Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितः है, पितृचरणने न जाने क्यों और किस जीवनके लाभसे जी तेजी चित्तौर छोडदिया और अपने शरीरमें प्राण रहते भी शत्रुओंको प्रवेश करनेका अवसर दिया, धन्य है वीवर, जयमल और पुत्रको कि जिन्होंने उस डूबती हुई मेवाडकी कीर्तिके कुछ तो ठहरने का ठिकाना किया आह -- कैसी वीरता और साहसके साथ प्रबल पराक्रमी शत्रुओंकी - गति रोध किया था, क्या उनकी अक्षय कीर्ति कभी लोप होसकती है, ऐसे पुरुष रत्न क्या हमै सहायक मिलेंगे, जो चार वोर ऐसे साहसी हमें मिलें, तो हम प्रतिज्ञा पूर्वक - मेवाडहिसे क्या सारे भारतसे इनको निकाल दें पर क्या हुआ, प्रतापके वेगको कौन रोक सकता है, यद्यपि इस समय राजस्थानके सब राजाओंने स्वार्थ वश होकर आत्मविस्मरण कर दिया है, इन विधर्मी शत्रुओंके साथ सम्बन्ध करिलिया है, यहां तक कि हमारेही छोटे भाईने अकबरसे मित्रता कर ली है, परंतु क्या इससे हम कभी हताश हो सकते है,कभी नहीं, यदि इन .P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. कुलांगारोंको अपना प्रताप न दिखाया तो मेरा नाम प्रतापसिंह नहीं, देखो हमारे वंशके मूलपुरुषोंने कैसे पराक्रप और साहसके कर्म किये हैं, भगवान श्रीरामचन्द्र जीने अपनेही बाहुबलसे वानर और भालुओंकी निमित्त मात्र सैन्य बनाकर रावण ऐसे प्रबल शत्रुका संहार किया था, वाप्पा रावलने खुरासान तक विदेशमें जाकर अपनी ध्वजा फहराई थो, खुमानने कावुलीयोंका सारा कट्टरपन भुला दिया था,यों ही बराबर एकसे एक वीर होतेही गये, क्या उनके पवित्र कुलमें जन्म धारण करके हम इस कुलको कलंकित करें, कभी नहीं, अकबर अपनेको बडा प्रतापी, बडा चतुर, बड़ा वीर मानता है, दक्षिणका राज्याधिकार करके उसे बडा गर्व हुवा है, राजपूतानाके कुलांगारों - को अपना साला सुसरा बनाकर बडा फूला है,अपना राज्य अटल समझता है, परन्तु प्रताप तेरा नाम तभी है, जब तु इस रावणसरीखे शत्रुका मुकुट अपने चरणतलमें मर्दन करे, कुछ चिन्ता नहीं, जो इसका दर्प चूर्ण न किया, तो संसारमें अपना मुंह न दिखाऊगां, इस प्रकार un Gun. Aarddhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri MS. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. महाराणा विचार कर रहे थे कि,इतनेमें महाराणीने कहा, आर्यपुत्रकी जय हो, क्या मैं सुन सकती हूं, कि आज ... आपकी चिन्ताका क्या कारण है, यह सुन महाराणाने उत्तर दिया, प्यारी, तुम्हारा आगमन अच्छा हुआ, हम तुमको बुलानेही को थे कि तुम आगई, अपनी चिन्ताको कारण यदि तुमसे न कहेंगे तो किस्से कहेंगे? इस समय हम यही सोच रहे थे कि इस कठिनाईके समयमें हमें क्या करना उचित है? क्या हमभी जयपुरको तरह अपनी प्राणसेभी प्यारी बेटोको यवनराजको भेंट करके अपना झंग साज वाज बढावे,और अपने वडोंको कोर्तिको मिट्टीमें मिलावें महाराणो बोली, महाराज ! यह कभी योग्य नहींहै, ऐसा विचार करनेसेभो प्रायश्चित्त लगता है। विचारी भोली भाली हिन्दुओंको लडको अपना भला बुरा क्या जानें?उनका तो सुख दुख सब मा बाप के हाथ है, जो वे किसी लोभमें पडकर वा प्राणके भयसे उनका सर्व नाश करते हैं, तो न केवल अपनी कुल मर्यादा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.. Jun.Gun Aaradhak Trust Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. को उलंघन करके संसारमें अपयशके भागी होते है। . परंच परमेश्वरके यहांभी उत्तरदाता होना पडता है, / तो स्त्री हूं,मेरो बुद्धि बहुत छोटी है,पर मेरी दोही इच्छा है। - या तो इन विजातीय शत्रुओंको मारकर महाराजके साथ - चित्तौर राज्य सिंहासनकी अधिकारिणी बनूं, अथवा वीरदर्पसे गिरेहुये महाराजके पवित्र शरीरको अपने गोदमें लेकर हंसते हंसते भारत रमणियोंका मुख उज्ज्वल करके पतिलोकमें आपसे मिलूं., : - यहसुन महाराणाने कहा, प्रिये, धन्य हो, प्रतापसिंकी - अर्धांगिनी होनेका अधिकार तुम्हारे अतिरिक्त किसको हैतुम निश्चय रक्खो जब तक इस शरीरमें प्राण है, कभी इन म्लेक्षोंकी आधीनता स्वीकार न करेंगे और हमने सुना है कि,मानसिंह दक्षिण विजय करके आते है,उदयः पुरमेंभी रहनेवाले हैं उनके आतिथ्यका भार मंत्रोका सोंपा है, क्योंकि हम तो उसम्लेक्ष प्राय हिन्दू कुल कल कका मुख नहीं देखना चाहते। - अनन्तर मानसिंह उदयपुर आये उनका अतिथि -- P.P.AC. Gunratnasuri. M.S. Jul Gun Aaradhak Trust Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 75 सत्कार भली भांति किया गया, परन्तु मानसिंहके मिल.. नेको महाराणाजी नहीं गये, तो मानसिंहने मंत्रीसे कहा, कि, हमारे पास महाराणाजीके न आनेका क्या कारण है यह सुन मंत्रीने कहा, महाराज महाराणाजोके शिरमें आज कुछ पीडा है इस कारण नहीं आसके उनके स्थानमें कुंवर अमरसिंह उपस्थित हैं, उनमें और इनमें कुछ भेद नहीं,शास्त्रमें लिखा है कि, आत्मा वैजायते पुत्रः' यह सुन मानसिंह बोले कि शिरमें पीडाका कारण हमने भलीभाति जान लिया, राणाजोने अपने घरमें आये हुये हमारा अपमान किया, याद रखना कि शिरपीडाकि औषधि लेकर हम बहुत शीघ्र फिर आवेंगे, तब दिखावेंगे कि मानसिंहका अपमान करना कैसा होता है, यह कह मानसिंह चलनेको उद्यत हुये इतनेही में महाराणा प्रतापसिंह आकर बोले, सुनो महाराज मानसिंह! जिन कुलकी मरजाद लोभ वश दूर वहाई। जीवन भय जिन खोय दई अपनी बडाई॥ EP.P.AC.Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . स्त्रीचरित्र जिन जगसुखहित करी जातिकीजगतहंसाई लखि जिनको मुख वीर सबै शिर रहे नवाई। -जाइशीशवरुधर्महित यह सिसौदियाथापहै अछा अब आप सुखसे पधारिये और अपने हिमायतीके साथ शोघही फिर हमारी अतिथिसेवा रणक्षेत्रमें स्वीकार कोजिये यही प्रार्थना है, यह सुन मानसिंहराणा कि और क्रोधपूर्वक देखते हुये चले गये, और दरवार अकबरमें सब हाल कहा तब अकबरने हुक्म दिया कि, आप मुहब्बतखांके साथ शाही लशकर लेजाकर उसको सजा दो, यह सुन महाराज. मानसिंह लशकर सहित. चढ गये और घोर युद्ध हुआ, परंतु प्रतापसिंहके साथ विशेष सेना नहीं थी, इस कारण उदयपुरको छोड दिया, यवनोंको वहांकी लूटमें एक कौडीभी हाथ न लगी, अकबरने यह हाल सुनकर * महाराणाकी बद्भुत प्रशंसा की... / P.AC. Gunratnasuri M.S. ... July Gun Aaradhak Trust Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. दोहा. साधुसराहै साधुता, जती जोखिता जान। रहिमन साचे सूरकी वैरिहुकरें बखान // 1 // - बीकानेरके राजा रायसिंहके भाई पृथ्वीराज महाराणा प्रतापसिंहजीकी ओरसे सहज होकर अकबर के दरबारमें रहा करते थे, और दरवारका समाचार महाराणाजीको लिखते रहते थे, इन्हीं पृथ्वीराजकी रानीने अकबरके दुःस्वभावको छुटाया था सो वृत्तान्त हम वीर रानोके नामसे आगे उत्तरखंडमें लिखेंगे. कुंडलिया. भूखे प्राण तजें भले केसरि खर नहिंखाय। चातक प्यासोही रहै विनास्वातिन अघाय।। विना स्वाति न अघाय हंस मोतीहीखावै। सती नारि पतिविनातनिक नहिं चित्तडुलावै त्यों प्रताप नहिं डिगे होंयसवही किनरूखे। - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S: Jun Gun Aaradhak Trust Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रः अरिसन्मुख नहिं नवै फिरैकिनवनवन खेर वरुदिनकर पश्चिमउऐ ग्रहपति पूर्व अथायें। सागर मर्यादातजै पंकजगगनलखायं // पंकज गगन लखायं केसरी खरवरुखावें। नभ नक्षत्र करमिलैं केदली फेरि फरावें // . जबलों तनमें प्राण प्राणमें वुद्धिरतिकभर। तजै नहठपरताप उऐ पश्चिम वरुदिनकर॥३. अकबरके दरिमें पृथ्वोराजका समय पाय बचन.. . महाराणा प्रतापसिंहकी ओरले सन्धिरूपी किम्बदन्तीको सुनकर पृथ्वीराजने दिल्लीसे महाराणाको पत्र लिखा उसको पढकर प्रतापसिंहका वचनपराधीन व्है कौन चहै जीवो जगमाहीं। को पहिरै दासत्व शंखला निज पग माहीं॥ इक दिनकी दासता अहै शतकोटि नरकसम | पलभरको स्वाधीनपनो स्वर्गहुते उत्तम॥४॥ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 79 तथा // छपाया // जबलौं तनमें प्राण न तवलौं मुखको मोडौं / जवलौं करमें शक्ति न तवलों शास्त्राहि छोडौं। जबलौं जिव्हा सरस दीन वच नाहिं उच्चारौं / जवलौं धडपर शीश झुकावन नाहि विचारौं // जबलौं अस्तित्व प्रतापको क्षत्रिय नाम न वोरिहौ / जबलौं न आर्यध्वज नम उडै तबलौं टेक न छोरि हौं // 5 // आयुः रक्षति मर्माणि आयुरन्नं प्रयच्छति / अर्जुनस्य प्रतिज्ञहे न दैन्यं न पलायनम् // 6 // अनन्तर अकबरने फिरभी शह वाजखांको शाही फौज = समेत उदयपुर भेजा, तब भीमाशा मंत्रोने लाखौं रुपयों का सम्मत्ति जो पूर्व समयकी एकत्रित थी सो महाराणा ने लंडकर विजय पाई, उधर नवाबखान खाना ( रहीम) . P.P.AC.'Gunratnasuri Juin Gun Aaradhak Trust Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. की सम्मतिसे अकबरने फिर कोई सेना कभी नहीं भेजी महाराणाने सुखपूर्वक बारह वर्ष पर्यन्त राज्यकिया और सम्वत् 1653 माघ शुदीमें प्राण त्याग करते समय महाराणाने अपने पुत्रको शिक्षा दो को, .. जबलौंजगमें मान तबहिं लौ प्राणधारियो। जबलौं तनमें प्राण न तबलौं धर्म छाडिये॥ जबलौं राखे धर्म तबहिं लौं कीरति पावै / / जबलौं कीरति लहै जन्म स्वारथ कहवावै हे वत्स! सदा वंशकी मर्यादा निर्वाहियो। या तुच्छ जगत सुखकारनै नहिं कुलनाम हंसाइयो // 7 // महाराणा प्रतापसिंहजीका जीवन चरित्र मुंशी देवी प्रसाद मुन्सिफ जोधपुरने भलीभाँति लिखा है. तथा कवि गणपतिराम राजारामने गुजराती प्रताप नाटक में भा महाराणा प्रतापसिंहजीका जीवन समाचार लिखा है, **P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gun.Aaradhak Trust: Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. हमने तो यहा केवल वीरता दर्शाने के लिये कुछ संकेत मात्र लिखा है. सती सम्बाद. __ एक पतिव्रता स्त्री अपने पतिके देहान्त हुये पीछे पतिके संग सती होनेके लिये जिस समय चिताकी परिक्रमा कर वितामें बैठो और सतीके वाजा बजने लगे, उस समय अहमदशाहने आकर सतीसे प्रश्न किया और सतीने यथोचित उत्तर दिया, उसको हम नोचे लिखते हैं.. दोहा. सती चढी सर जरनको, अहमद पूंछी गाथा जीता तनु क्यों जारती,इस मुरदेके साथ॥१॥ सतीका उत्तर–दोहा. सुनो पियारे शेखजी, जगमें प्यारे पीउ। पिउ हमारे चलि वसे, सो किस पर राखौं जिउ // 2 // बाज बजावत पिउ गये P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. : Jun Gun Aaradhak Trugte Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12. स्त्रीचरित्र. सजिके हमको लेन / आज बजावत हम चली, पियको बदलो देन // 3 // मावरिकी भाँवरि दई, अधिक दियो निजप्रान / जग आये लज्जा रही,रही बात जगआन // 4 // दोहा. . . .. स्त्री चरित्र पूर्वाई यह, भाग द्वितीय प्रमान / नारायणहितसों लिख्यो, पढि है ताहि सुजान // 5 // इति श्री स्त्रीचरित्र द्वितीय भाग पूर्वखण्ड समाप्तः / / अथ उत्तरखण्ड प्रारम्भः / .. दोहा... सकल सुमंगल मूल जग, श्रीगणपति मन लाय / नारायणहितसों लिखत, उत्तराई हर्षाय // 1 // वीर महारानी प्रगट, Ac:Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. ६३भरतखण्डमें जौन। शुभचरित्र नर नारि हित, लिखि समुझावों तीन // 2 // . ... वीररानी. वर्तमान समय भारत वर्षमें श्रीसीता, शकुन्तला, कुन्ती, द्रौपदी आदि महारानियोंका निर्मल चन्द्रमाके समान इस जगतमें प्रकाशित हो रहा है, इसका कारण यही जान पडता है कि, इन महारानियोंके अन्तःकरणमें विद्या और सत्संग तथा समयके प्रभावसे एक अद्भुत दैवीशक्ति वर्तमान थी कि, जिससे जगतभरमें उनकी प्रतिष्ठा हुई और उदाहरण रूप उनकी कोर्तिको उस समयके कवियोंने गान करके प्रगट किया, जिससे अन्य स्त्रियां इन महारानियोंके सुलक्षणोंको पढकर सुधर जावें, वीर रानीका चरित्र परम उदार है जिसको हम अति सक्षपसे आगे लिखते हैं, जिल्ला शिकारपुरमें रोहरी नामक स्थानसे पांचमोल पूर्वसिन्धके हिन्दुराजाओंका मुख्य Ac. Gunratnasuri M.S. Jur Gun Aaradhak Tru Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. स्थान आलोर नगर है, इसकी वस्ती सिन्ध नदीके पुरान | मार्गके किनारे थी, परन्तु सम्बत् 1719 तथा सन् 962 ! ईसवीमें भूकम्प होने और सिन्ध नदीके मार्ग बदलनेसे बहुत कुछ इसका विनाश होगया है, यहां आलमगीरकी एक मसजिद अब तक बनी है, और एक कन्दराके समीप कालीका देवीका मन्दिर बना है, जहां प्रतिवर्ष मेला होता है, यह आलोर नगर ऊपरी सिन्धकी प्राचीन राजधानी थी और नगर मुलतानसेभी यह नगर चढाबढा था, यहां प्रमखंशका साहिर नामक राजा धर्म और न्याय पूर्वक राज्य करता था, जिसका राज्य उत्तरमें काश्मीर, पश्चिममें मेहरान अर्थात् सिन्धनदी और दक्षिणमें समुद्र पर्यन्त फैला था, मुल्क फारससे धन और मालके लोभी यवनोंकी सेना चढ आई और धोखासे राजको मार कर सब कुछ लूट मारकर यवन लोग जब अपने देशको लोट गये, तब राजाका पुत्र रायशा गद्दीपर बैठा, इस वंशका राज्य खलीफा वलीदके समय तक था, तथा जब ईराकके हाकिम हिजाजने विक्रमीय सम्वत .AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust, Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 774 तथा सन् 717 ईसवी में धोखा देकर वहाँके राजा दाहिरको मारा, तब दाहिर राजको वीर रानी और पुत्र वधूने साहस करके अपने मानको रक्षा की, उसका कुछ वृत्तान्त महारानोकी वोरता मात्र प्रगट करनेक लिये हम यहां लिखते हैं.. ... जब दाहिरराज मारे गये और उनका पुत्र यवनोंकी अधिक सेनाको देखकर भाग गया और अपना दूत अपनो माताके समीप भेजा, तब उस दूत और महारानीकी जो बातचीत हुई, सो ध्यानपूर्वक सुनने के योग्य है. दूत-महाराणो जीको यह दास प्रणाम करता है, रानी-तुझारा कुशल हो, युद्धक्षेत्रमें राजकुमार तो कुशलसे है ? ' दूत-मैं युद्धक्षेत्रसे नहीं आता किन्तु राजकुर कुशलसे हैं. रानी-(कुछ उदिम होकर) युद्धक्षेत्रसे नहीं आते तो राजकुमारकी कुशल कैसे जाना ? .. दूत-राजकुमारने गुद्धक्षेत्रको परित्याग कर दिया है। T P.P.AC..Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र - रानी-(अधिक उद्विग्न होकर) क्यों, सेना एकत्र करनेको ? .. - दूत-नहीं, टिड्डियोंके दलके समान यवनसे नाके सन्मुख जय प्राप्त होनेकी आशा नहीं है.. रानी-(दृढ और गम्भीर स्वरसे) दूत ! तो क्या वह कायर युद्ध त्यागकर भाग गया ? तुम यही दारुण समाचार लेकर आये हो (खेदसे) हाय ! उसको मृत्युका समाचार क्यों न लाये ? दूत-महारानीजी ! ऐसी अमङ्गल बात न कहिये. रानी-युद्धक्षेत्रमें पुत्रकी मृत्यु इस समय मेरे पक्षमें मङ्गलकी बात है. कुछ अमङ्गल नहीं. .. दूत-राजकुमार उत्तरकी ओर गये हैं. रानी-क्यों दक्षिणका मार्ग क्या कंटकसे घिरा है. हा क्या पुरुष क्षत्रिय सन्तानको मृत्यु भय ? दूत-राजकुमारने आपके चरणोंमें प्रणाम करके यही अनुमती दी है कि, आप लोग मान रक्षाके लिये P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. एकत्रित होकर किसी एकान्त स्थानका आश्रय स्वीकार करें वे निरापद स्थान ढूंढनेके लिये आगे गये हैं. रानी-अच्छी बात है, वह कायर निरापद स्थानका आश्रय करै, हम लोग उस अन्यायसे युद्ध करनेवाले चोर और नरघातक यवनको समुचित दण्ड देकर शीग्रही उसका अनुगमन करेंगी.. . द्वत-जिस यवन सेनापतिके हाथसे वीरके शरी दाहिरराज मारे गये, जिसके भयसे आपके वीर बताचारी - पुत्रने पलायन किया, तो क्या आप स्त्री होकर ? - रानी-(दूतकी बातको रोककर) बस, रहने दो, क्षत्रिय दूतके मुखसे ऐसी अमर्यादकी बात ? क्या यह क्षत्रियोचित बाक्य है ? धीरस्यापि शिरच्छेदे वीरत्वं - नव गच्छति' शिरच्छेदन होनेपरभी धीर जनकी वीरता नहीं जाती है, क्षत्रियकन्या क्या युद्ध में असमर्थ हैं. सिंहनी क्या शृगालके भयसे पलायन करेंगी ? दूत-आप यवन सेनाकी संख्या, उन लोगोंका Ac: Gunratnasuri M.S. .. Jun Gun Aaradhak Trust Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. साहस, उत्साह और यवन सेनापतिका पराक्रम देख पाती तो ऐसा नहीं कहती. रानी-तुम यवन सेनाका आडम्बर देखकर भयभीत तृणवत तुच्छ समझते हैं, शत्रुकी असंख्य सेनामें वह / अकेले अचल रहते हैं, का पुरुषोंकीनाई मृत्युका भय कदापि नहीं करते. दूत-महारानीजी, मेरे विलम्ब करनेसे राजकुमार उदिम होंगे, उनका आदेश लेकर मैं यहां आया हूं. और आपकी अनुमतिके लिये खडा हूं.. रानी-दूत, तुम उस क्षत्रियाधमसे कहना कि, दाहिर राजका पुत्र ऐसा का पुरुष, मैं अब ऐसे नराधम पुत्रका मुख नहीं देखना चाहती, यदि यवनोंके निःश्वा स स्पर्शसे उसका तेज सम्पूर्ण विलुप्त न होगया हो, तो कह अपने रक्तसे इस महा पापका प्राय करै, मैं स्वामी हन्ताको उचित शिक्षा देकर क्षत्रिय कुलका यह महा कलंकका धोउंगी, फिर महा पुरुषकी अनुगामिनी होऊंगी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Gun-Aaradhak-Trust Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. दूत-यदि आपका यही दृढ़ संकल्प हो तो में राजकुमारसे जाकर कहूं. कि वे शीघ्र फिर आई. रानी इस राज्यमें भीरूओंके लिये स्थान नहीं है पुत्रके लियेभी क्षत्रिय कन्या इस नियमको भंग नहीं -करेगी. दूत- तो वधू माताभी नहीं जायगी ? रानी—यह बात उसीसे पूछो.. दूत-वे कहां हैं ? . रानी हम उसके अभी बुलवाती हैं. यह कह पुत्र वधूको दासीके हाथ बुलवा भेजा, पुत्रवधूने आकर रानी को प्रणाम किया रानीने आशीर्वाद देकर कहा कि, - यह दूत तुमको ले जानेके लिये आया है, यदि इच्छा हो तो जाओ.. ... वधू-कहां जाना होगा वचा युद्ध क्षेत्रमें ? आहत भार पीडित सेनाकी सेवामें नियुक्त होना क्षत्रिय कन्याका परम सौभाग्य है. P.P. Ac Gunratnasuri M.S Gun Aaradhak Trust Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - .. स्त्रीचत्रि. - रानी-युद्धक्षेत्रमें किसकी अनुगामिनो होवोगो? वहां तुम्हारा कौन है ? रणबिमुखका अनुसरण करो.. वधू-रणविमुख कौन है ? आपके पुत्र ? - रानो-मेरा पुत्र तो जीवित नहीं है. वधू- ( चकित होकर ) तो क्या वे युद्धमें निहत .: रानी--नहीं तुमारा स्वामी रण विमुख है. . वधू-मैं रणविमुखकी पत्नी हूं ! आप गुरुजन हो- कर किस अपराधसे मेरा तिरस्कार करती हैं. .: रानी—यह तिरस्कार नहीं यथार्थ बात है. वधू-यदि यह तिरस्कार नहीं तो क्या यह भी यथार्थ है कि आपका पुत्र रण विमुख है और मैं आपको पुत्र वधू हूं. रानी-जो रणविमुख हैं, वह मेरा पुत्र नहीं - वधू-जो रणविमुख है, वह मेरा भो पति नहीं है. क्ष त्रिय कन्या रणविमुखभोरुको पति भावसे ग्रहण नहीं करती. .P.P.AC. Gunratnasuri.M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भाषाटीकासहित. 91 रानी-तब क्या तुमनेभी हमारेही समान उस क्षत्रिय कुलागारको परित्याग किया ? . वधू-( गम्भीर स्वरसे ) हां किया. रानी-धन्य तुमारी जननी जो तुझे गर्भ में धारण _करके पवित्र हुई है. ऐसे नराधम पुत्रकी अपेक्षा तुमारे समान वीर कन्या लाभ करनेसे वंश पवित्र होता क्षत्री नाममें यह कलंक कभी न लगता पुत्री, मेरे इस दारुण / दुःख क्षोभके समय यही एक मात्र प्रवोध हैं कि तू मेरे गृहको लक्ष्मी है अब यह दूत तुमारे ही आदेशकी - अपेक्षा कर रहा है, उससे जो कुछ कहना हो सो कह कर विदा करो.. वधू-( दूतकी ओर मुखकरके ) दूत, तुम उस - रणभीरु पुरुषसे यह कहना कि स्वदेशकी स्वाधीनता पतृकुल के गौरव और पतिव्रताओंके मानसे अपना जावन यदि आधिक मूल्यवान समझ रक्खा है तो वह सिह ताडित शृगालकीनाई प्राण लेकर जहां इच्छा हो पलायन करे, मेरे लिये उसको सोचना न पडेगा, क्ष P.P.AC.Gunratnasuri M.S., Jun Gun Aaradhak Trust: Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '. स्त्रीचरित्र.. त्रिय कन्या पलायन करके प्राण और सम्भ्रम रक्षा करना नहीं चाहती प्राण देकर आत्मभानको रक्षा करती है, में स्वर्गीय महात्मा दाहिर राजकी पुत्र वधू हूं, रणविमुख की कोई नहीं यह कहते हुये कंठ रंध गया आं. सुवोंसे नेत्र पूर्ण होगये. दारकी ओरको हटकर पुत्र वधू मौन होगई. दूत--(रानीसे )-तब क्या यह दास बिदा हो ! रानी--( रुंधे हुये कण्ठसे ) अच्छा. दूत-तो इस मृत्त्यका प्रणाम स्वीकार हो यह कह दूत चला गया. रानी अवेतन होकर भूमिपर गिर पड़ी पुत्र वधूके भी अवेतन होनेसे गिरकर चोट लगी रुधिर प्रवाह होने लगा.. .. अनन्तर चैतन्य पीछे मंत्री और महारानीमें जो बात चीत हुई. सो नीचे लिखते हैं.... . रानी-मंत्री वर मुझको इस समय अधिक विचार करनेकी आवश्यकता नहीं जो उपस्थित है उसीपर हमा रा. ध्यान है, मैं देखती हूं कि मंगलकी कोई आशा - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 93 नहीं. विधाताके विमुख और दैवके प्रतिकूल हुये विना किसकी ऐसी दशा होती है ! हा ! जिस ऐरावत हाथीने अनेक वार महाघोर युद्धमें स्वर्गवासी महाराजको अटल भावसे अपनी पीठपर धारण किया, सैंकडो बाण लगनेसे अंग क्षत होनेपरभी जो एक पद रणमें पोछे न हटा, वही ऐरावत एक साधारण बाण लगनेसे रणसे भडक कर भागता हुआ एक वेरहो नदीमें जा डूबा, फिर जिससे नाक देशकी स्वाधीन रक्षाही व्रत था. नि. ज जीवनसे भी जिसे स्वाधीनता अधिक प्रिय थी महा महा विपदमें भी जो सेना स्थिर और निःशङ्कित रही आज वही सेना रणसे भाग गई. स्वर्गवासी महाराजको इतनाभी समय न मिला कि रुधिर भरे वस्त्रोंसे अश्वारोहण कर घर तो चले आते हाय. महाराज निहत. हुये क्या कोई वीर क्षत्री महागजके असावधान होनेपर शस्त्र पला सकता था. यह धोके बाज यवनही का काम था. कि असावधान महाराज पर अस्त्र चलाय शाल्मली वृक्ष एक क्षुद्र प्राणीके नखघातसे छिन्न होगया, विधाताके P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र वामहुये विना क्या यह कभी सम्भव था, महाराजने जिस बालककी रण कुशलता देख जयसिंह नाम रखा. वही कुमार जयसिंह रणमें पीठ देकर कायरोकोनाई भागगया, यह सब अदृष्टका फल और दैवका कोप नहीं तो क्या है. स्मरण करनेसे हृदय फटा जाता है, परन्तु इस समय क्या करना चाहिये वह अपना विचार प्रगट करोः... - मंत्री०- मेरे विचारमें युद्ध करना योग्य जान पडता है. रानी०-मेरे विचारमें, इस कहनेकी क्या आवश्यकता है यहां युद्धका विरोधी कौन है ? कौन ऐसा का पुरूष है जो अबभी युद्ध की अवश्यकता स्वीकार न करे,मंत्रिवर यदि ऐसा का पुरुष कोई हो तो कह दो कि सिन्धुदेशम . उसके लिये स्थान नहीं हैं, वह शीघ्रही राज्य परित्याग करै, यदि इस समय एकव्यक्तिभी मेरी सहायता न करें, तोभी मैं अकेलीही यवनोंके विरुद्ध युद्ध क्षेत्रमें प्रवेश करूंगी यह बात किसी प्रकार अन्यथा न होगी. मंत्री०- इस राज्यमें ऐसा कौन अज्ञ है जो आपका P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 95 वीरतामें सन्देह करै, और आपकी सहायता न करै, यहां कोईभी ऐसा नहीं, जो युद्धका विरोधी हो.. रानी-तो फिर तुमारे वाक्य का क्या तात्पर्य है, मंत्री०--यवनसेनापतिने सन्धि करनेके अभिप्रायसे - दूतको भेजा है. रानी०-- (विस्मित होकर ) रणमें विजयी होकरसन्धिके प्रस्तावका क्या तात्पर्य है, चतुरताही इन लघुचित यवनोंका भूषण है, यह प्रस्तावभी चतुरतासे भिन्न नहीं. मंत्री-चतुरता नहीं भी हो सकती. यवन लोग कुछ दिग्विजयकी आशासे इस देशमें नहीं आये राज्यस्थापन करना इनका अभिप्राय नहीं है ये सब लटेरू है भारतका ऐश्वर्य हरण करनाही इनका मुख्य अभिलाष है.. रानी-तथापि सन्धिका प्रस्ताव क्यों. = मत्री-यद्यपि यवन सेनापतिने जयलाभ किया, तथापि क्षत्रियोंका पराक्रम स्मरण करके उसने समझ लिया होगा कि हमारा मार्ग अभी निष्कण्टक नहीं हुवा. P.P.AC, Gunratnasuri M.S. Jun: Gun Aaradhak Trust Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्ररानी--तो मैं सन्धि करके उसका मार्ग कभी निष्कण्टक करनेवाली नहीं हा म्लोक्ष यवनके साथ सन्धि ? लुटेरू चोरोंके साथ सन्धि नारी जातिको मर्यादा नाश करनेवाले असुरोंके साथ सन्धि इस प्राणके रहते यह बात कभी न होगी, मंत्री, प्रथम तो ..! समस्त वीर पुरुषोंके पास निमंत्रण भेजदो, फिर दूतको लेकर शीघ्र आजओ मैं उससे बात कर लूंगी. - मंत्री॰—जो आज्ञा, आपकी आज्ञाके अनुसार काम करके शोध आता हूं, यह कह मंत्रीने रानीकी आज्ञाके अनुसार राज्यके वीर पुरुषोंको निमंत्रण भेजा और दूतको साथ लेकर आये. -- रानी-(एलचीकी और देखकर) तुमारे सेनापतिने है, कि शिकस्तोपर जुल्म किया जाय, जब कि दाहर - राजा मारे गये और आपके फर्जन्द भाग गये, ता P.P. Ac. Gunratnasuri M. Jun Gur;Aaradhak Tru Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. आपको लाजिम है कि, आप शाहन्शाहकी इतायत, कुबल करें. .. रानी-हमको जो कर्तव्य है वह हम स्वयं विचार कर लोगी, यवन सेनापति उसके लिये चिन्ता करनेको कुछ आवश्यकता नहीं है, क्षत्रिय नारी कुछ युद्धमें आशक्त नहीं है. दूत-लेकिन हमारे सिपहसालार आपसे जंग नहीं किया चाहते, औरतों के साथ जंग करनेमें क्या नामवरी है ? जिस काममें फतेह या नीहासिल होने परभी वद -नामी है, उसमें कौन अक्लमन्द शख्स हाथ डालेगा. रानी-यदि यवन सेनापति स्त्रीसे युद्ध नहीं किया चाहते तो उन्हें उचित है कि इस देशको _परित्याग कर दें. दूत-हां वे इसपर राजी हैं, मगर पेश्तर आपको -दो शर्त मंजूर करनी होगी. - रानी-क्या शर्ते ? दूत-अव्वल तो आपको जंगका खर्च और इरसाल P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीचरित्र खिराज देना होगा, शहनशाह वसराकी मातहती मंजूर करनी होगी.. ... रानी–क्षत्रिय नारी दूसरेके अनुग्रहसे राज्य और स्वाधीनताका भोग नहीं चाहतो वह मूल्य देकर वा शत्रुके हाथमें होकर देशका उद्धार नहीं करती है, वह तीक्ष्ण अस्त्रकी सहायातासे जन्मभूमिकी रक्षा करती हैं. दूत-गोकि यह शर्त अपने नामंजूर की ताहम् अगर दूसरे शर्तकी पावन्दी आप अख्त्यार करेंगी तो भी हमारे सिपह सालार साहवकी मिहानी आप पर रह सकती हैं, मुसल्मानोंका हमला इस मुल्कपर फकत दौलत हासिल करनेकी ख्वाहिससे नहीं है, बल्कि दीने सादिककी तरक्की उनकी खास गर्ज है हमारे सिपह सालार साहवको स्वाहिश है कि आप हम लोगोंके पाक मजहवको कुबूल करें काफिरोंपर रहम करना मुसल्मानोंके मजहवमें वईद है. रानी-परन्तु आर्यसन्तान न तो शस्त्रके बलसे P.P.AC. Gunratiasur Jun.Gun Aaradhak Trust Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटाकासाहत. धर्मका प्रचार करते और न शस्त्रके भयसे कभी धर्म * परित्याग करते हैं, वे प्राण देकर धर्मकी रक्षा करते हैं, तो मुझे लाचार होकर हुजूर आलीका आखिरी हुक्म सुनाना पड़ेगा... “रानी-सुनाइये, क्षत्रिय नारी इन तुच्छ बातोंसे कदापि भय नहीं करती. एलचीदूत-हुजूर सिपह सालार साहबका यह हुक्म है कि, आप किसी शर्त पर राजी न हों तो हम फौरन् इस आलोर शहर बारिद होंगे इस महलको नेस्त व नाबूद कर डालेंगे शैतानी हिन्दू मजहबको पस्तकर तमाम जूतों और वुतखानोंको शिकस्त कर उन्हें पैरोंसे कुचल डालेंगे और हिन्दुओंकी तमाम खूब सूरतना जनीनोंको गिर फार कर हजरत खलीफा साहब दाम इकवालहूकी खिदमतमें रवाना करदेंगे. ... रानी–दूत, निस्सन्देह आपके सेनापतिने अपने योग्य बात कही, वे स्त्रियोंका ऐसाही सत्कार करते हैं / P.P. Ac. Gunratnasuri M:S. "Gun Aaradhak Trust Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. परन्तु यह सामर्थ्य उनकी न हुई कि, आज क्षत्रिय . . . इसी क्षण उनका शिर देहसे भिन्न कर दिया जाता, - किन्तु दूतको मारना उचित नहीं है, इसी कारण तुमारे ये वचन सह लिये गये (क्रोधसे) वस अब तू उस नारी जातिके अपमानकारीसे कह दे कि वह युद्धके लिये तैयार हो रहे, यह सुन वह दूत गर्वके साथ कुछ कहता हुवा चला गया, अनन्तर वीर महारानीने युद्धक्षेत्रमें जानेको पूर्ण प्रबंध किया और सेनाके साथ युद्धक्षेत्रमें जाकर युद्ध किया और शत्रु सेनाको मारकर भगा दिया, एक बाण रानीके पांवमें आकर लगा, उसको निकाल कर रानीने फेंक दिया, भागी हुई यवन सेना जब फिर एकत्रित हुई और युद्ध करनेको प्रस्तुत हुई तब वीर महारानीकी ओरसे रसदकी कमी होगई थी, कुछ प्रबन्ध न हो सकता था, तो भी वीर क्षत्रियोंने महा घोर युद्ध किया, एक एकने अनेक अनेक यवनोंका शिरच्छदेन करके समर भामिमें प्राण परित्याग किया, P.P.AC.GunratnasuriM.S. Gun Aaradhak Trust Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भाषाटीकासहित. क्या स्त्री क्यापुरुष,क्या बालकसबने अपना अपना पराकमदिखाया जब महारानीने देखा कि कोईभो वीर क्षत्रिय, शेष न रहा, तब अपनी मान रक्षाके लिये पुत्र वध सहित अमिमें प्रवेश किया, साथही अन्य वीरपुरुषोंको नारियोंनेभी (जो उस समय शेष रहगई थीं ) कूद कर अनिमें प्रवेश कर गई. इति / नीलदेवी. ___महारानी नीलदेवी पंजाब प्रान्तके राजा सूरजदेवकी धर्मपत्नी थी, दिल्लीके बादशाहके सिपहसालार अब्दुल शरीफखां सूरने रात्रिके सोते हुये महाराज सूरजदेवको बांध लिया था और लोहेके पिंजरेमें बन्द करदिया था, और जिस समय महाराज कहा गया कि तुम मुसल्मान होजाओ उस समय महाराजानेपिंजड़ेमसे उसके ऊपर थूक दिया और कहा कि रे दुष्ट,पिंजडेमें बन्द करके तू हमसे 5 ऐसी बात कहता है, थूक है तुझपर और तेरे मतपर यह सुनकर बहुतसे यवनोंने पिंजडे में महाराजपर शस्त्र फेंके आरबहुत विगडे महाराजने सोचा कि इन लोगोंके हाथसे .P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. . Gun Aaradhak Trus Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. इस बन्धमें मरना अच्छा नहीं, यह विचार बडे बलसे लोहेके पिंजडेका डंडा खींचकर उखाड़ लिया और पिंजडेमेंसे निकल कर उसी डंडेसे सत्ताईस यवनोंको अनन्तर महारानो नीलदेवीने और राज कुमार सोमदेवने जिस प्रकार अपने वीर पिताका बदला लिया, उसका संक्षिप्त वृत्तांत हम लिखते हैं, महाराज सूरजदेवकी बहादुरी नीचे गजलसे साबित होती है, जो सिपहसालार अब्दुलशरीफखां सूरने अपने लोगोंसे होशियार करनेके समय कहा है. गजल इस राजपूतसे रहो हुशियार खबरदार। गफलत न जराभी हो खबरदार खबर दार। ईमाँकी कसम दुश्मनने जानी है हमारा। काफिर है यह पंजाबका सरदार खबरदार॥ अजदर है भभूका है चहन्नुम है अबला है। P.P.AC. Gunratnasuri.M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 103 बिजली है गजब इसकी है तलवार खबरदार दरबारमें वह तेगे शरर वार न चमके // घर वारसे वाहरसेभी हर वार खबरदार। इस दुश्मने ईमां को है धोखमें फसाना॥ लडनानमुकाबिल कभी जिनहार खबरदार। फिर जिस समय महाराज सूरजदेव एक लोहेके पिंजडे मूर्छित थे, उस समय एक देवताने सामने खडे होकर यह गान किया था. लावनी. सब भाँति दैव प्रतिकूल होय एहि नाशा / अब तजहु वीरवर भारतकी सब आशा॥ अब सुख सूरजको उदय नहीं इत व्है है। सो दिन फिर इत अब सपनेहूं नहिं ऐहै / स्वाधीन पनो बल धीरज सबही न शैहै। मगल मय भारत भुवि मशान व्है जैहै // / P.P.AC.GunratnasuriM.S. :.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . LA . 34 स्त्रीचरित्र. * दुखही दुख करि है चारो ओर प्रकाशा। अब तजहु वीरवर भारतकी सब आशा // 1 // इत कलह विरोध सबनके हियधर कार है। मूरखताको तम चारिहु ओर पसारि है। वीरता एकता ममता दूरसे धरि है। तजि उद्यम सबही दास वृत्ति अनुसरि है // व्है जै हैं चारौ वर्ण शूद्र पनि दासा / अब तजहु वीरवर भारतकी सब आसा॥२॥ व्है हैं इतके सब भूत पिशाच उपासी। कोउ बनिजै हैं आपुहि स्वयं प्रकासी॥ नशिजै हैं सिगरे सत्यधर्म अविनासी। निज हरिसों व्है हैं विमुख भरत मुवि वासी // तजि सुपथ सबहिं जन कार कुपथविलासा। अब तजहु वीरवर भारतकी सब नासा // 3 // अपनी वस्तुन कहं लखि हैं सबहि पराई। P.P:AC.GunratnasuriM.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 105 निज चाल छोडि गहि हैं औरनकी धाई॥ -तुरकन हित कार हैं हिन्दू संग लडाई। यवननके चरणहि रहि है शीश नवाई // / अब तजहु वीरवर भारतकी सब आसा॥४॥ रहे हमहुं कबहुं स्वाधीन आर्य बल धारी। हरि विमुख धर्म बिन धन बलहीन दुजारी। आलसी मन्द तन क्षीण क्षधित संसारी॥ सुजसों सहि हैं शिर यवन पादुका त्रासा। अब तजहु वीरवर भारतकी सब आसा॥५॥ यह गाकर देवताने प्रस्थान किया. - सूरजदेव-(शिर उठाकर) इस समय इसमेरे शव समान शरीर पर विष और अमृत किसने एक साथही वरसाया निस्सन्देह मौलवी वेषधारी पंडित विष्णुशर्माजी .P. Ac: Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 स्त्रीचरित्रः होंगे, नहीं तो ऐसे कठिन पहरेमें और कौन आसकता है, विना ब्राह्मण देवताके और ऐसा मधुर स्वर किसका हो सकता है, अब तजहु वोर वर भारतकी सब आशा, ए यह ब्रह्मवाक्य क्या सच मुच सिद्ध होगा,क्या अब क्षत्रिय राजकुमारोंकोभी दास्यवृत्ति करनी पड़ेगी ? हाय ! क्या मरते मरतेभी हमको यह वज्रशब्द सुनना पडा, हा ! हम यह सुनकर क्यों नहीं मरे, कि आर्यकुलकी जय हुई और यवन सब भारतवर्षसे निकाल दिये गये... और क्या कहा ? सुखसों सहि हैं शिर यवन पादुका त्रासा, क्या अब यहां यही दिन आयेंगे, क्या भारतजननी अब एकभी वीरपुत्र न प्रसव करेगी ? यह कहता ढुवा राजा मूच्छित हो गया, अनन्तर जिसप्रकार राजाकी मृत्यु हुई, सो लिख चुके है. महाराजकी मृत्यु होनेके अनन्तर राजकुमार सोमदेवने अनेक क्षत्रिय वीरोंको एकत्र कर युद्ध क्षेत्रमें जाकर यवनोंसे युद्ध करनेका विचार किया... और युद्ध करनेको चलने लगे, उसी समय महाराना .. . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1.7 भाषाटीकासहित. नीलदेवीने आकर कहा, पुत्रकी जय हो क्षत्रिय कुलकी जय हो बेटा हमारी एक बात सुनलो, तब यात्रा करो. .' सोमदेव-(प्रणाम करके ) माता, जो आज्ञा हो. नीलदेवी-पुत्र, यह तुम भलीभाँति जानते हो कि, यवनसेना बहुत बडो है, और यह भी तुम जान चुके हो कि, जिस दिन महाराज पकडे गये, उसी दिन बहुतसे राजपूत निराश होकर अपने घरको चले गये, इससे मेरी बुद्धिमें यह बात आती है कि, इनसे एकही वार सन्मुख युद्ध न करके कौशलसे युद्ध किया जाय तो - अच्छी बात है.' 2. सोमदेव-(कुछ क्रोध करके ) तो क्या हम लोगोंको यह सामर्थ्य नहीं है जो युद्धमें यवनोंको जीत .. - सब क्षत्री- क्यों नहीं ? नीलदेवी-(शान्त भावसे ) पुत्र, तुह्मारी सर्वदा जय है, हमारे आशीर्वादसे तुह्मार कहीं पराजय नहीं है, किन्तु माताकी आज्ञा माननीभी तो तुमको योग्य है. सब क्षत्री-अवश्य अवश्य P.P. Ac. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रः सोमदेव-( हाथ जोडकर ) माताजी, जो आना होगी उसके अनुसार करूंगा... - नीलदेवी-अच्छा सुनो (कुमारको अपने पास बुलाकर ) कानमें अपना विचार प्रगट कर दिया. सोमदेव०-जो आज्ञा. .. राजकुमार सोमदेव क्षत्रियों सहित अपनी माता नी. लदेवीकी आज्ञाके अनुसार जाकर मार्ग प्रतिक्षा करने लगे और महारानी नोलदेवीने चार समाजियोंको साथ ले. गायकीके वेषसे यवन सेनापतिके डेरेको प्रस्थान किया, गायकीके वहां पहुंचने पर सिपहसालारको खबर दीगई, गायकोने जाकर गाना सुना था,सो सुनकर और गायकोके रूपको देखकर सिपहसालारजी अपने आपमें न रहे, शरावका प्याला उठाकर गायकीको देने लगे और अपने समीप बुलाकर आपने हाथसे बलात्कर मद्य पिलाना चाहा, तब गायकी बनीहुई नीलदेवीने चोटीसे कटार निकालकर सिपहसालारको मारा और चारौ समाजा बाजा फेंककर शस्त्र निकाल मुसाहिवोंको मारने लग P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 . - _ भाषाटीकासहित. नीलदेवीने अमीरको मारते समय कहा, ले चाण्डाल महाराजके वधका बदला ले मेरी यही इच्छा थी कि, इस चाण्डालको मैं अपने हाथसे मारूं, इसी कारण मैंने कुमारको युद्ध करनसे रोका सो मेरी इच्छा पूरी हुई अब मैं सुख पूर्वक सती हूंगी, यह कह महारानी नीलदे- वीने ताली बजाई, राजकुमार सोमदेव राजपूतों सहित शस्त्र खींचे हुये तम्बूमें घुसकर यवनोंको मारने लगे, जिस प्रकार कि सान खेती काटता है उसी प्रकार राजकुमार आदि वीरोंने सहस्रों यवनोंको काट डाला, सिपहसालारके मारे जानेसे यवनोंके पैर उखड गये, लडेसो काट डाले गये, शेष अपना प्राण लेकर / भागगये, क्षत्रिय लोग, भारतवर्षकी जय, आर्यकुल का जय, महाराज सूर्य देवकी जय, महारानी नीलदेवी Baa जय, राजकुमार सोमदवकी जय शद उच्चारण रन लगे, अपने स्वामीका इस प्रकार बदला लेनेबाली एसी महारानी नीलदेवी आदि बीर रानियों इस जगतमें - . . P.P.AC. Gurratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र धन्य हैं कि जिनका नाम सहस्त्रों वर्ष पर्यन्त विद्यमान रहेगा, इति // संयोगता. (पद्मिनी). मू-कान्यकुब्जे नृपश्चैको राजन् राठूर वंशजः। जयचन्द्रस्समाख्यातो भूभुः जां शिरसो मणिः॥१॥पञ्च पञ्च सहस्राणि यस्य द्वार्षु चतुर्षु च // उद्यतास्त्राणि तिष्ठन्ति सैन्यान्येव महर्निशम् // 2 // यः स्याज्ञा वर्तिनो भूपा नानोपायनपाणयः / नित्यमायान्तियान्तिस्य विनयावनता नृप // 3 // नरी नृत्त्यन्तियद्गृहे सिद्धयोह्यणिमादयः।वरीवर्तिसवै नित्यं लोकपालस मो भुवि // 4 // दानी मानी धनाध्यक्षा जयचन्द्रः स एव हि // चक्रवर्ती महच्चका चक्रयुद्ध परायणः॥५॥ यस्य हारि महा Jun Gun Aaradhak Trust unratnasuri M.S. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 111 राज सभेरी मंगल स्वनः // सम्बभूव महीपाल मानिनोऽस्य दिवानिशम् // 6 // // अर्थ-कन्नौज नगरमें एक राठूर वंशमें उत्पन्न क्षत्रिय भूषण सजा जयचन्द्र हुये // 1 // जिनके नगरमें चारों फाटकों पर पांच पांच हजार सेना दिनरात शस्त्रोंको उठाये खडी रहती थी, // 2 // तथा जिन राजा जयचन्दके आज्ञानुवर्ती राजा लोग नाना प्रकारको भेट हाथमें लिये हुये नित्य प्रति आते जाते थे, और - विनय पूर्वक राजालोग महाराजा जयचन्दकी आज्ञाको _ मानते थे॥ 3 // तथा जिनके घरमें अणिमादिक सिद्धी नृत्य कर रही थी, ऐसे राजा जयचन्द्र लोकपाल समान पृथ्वीमें विराजमान थे॥४॥ और वह महाराज जयचन्द्र दानी, मानी,धनाध्यक्ष, चक्रवर्ती तथा चक्रयुद्धमें निपुण 1 // 5 // जिन महाराजके द्वारपर नित्य नौबत व नगाडा आदि मंगल दायक बाजे बजा कहते थे, ऐसे राजमान्य महाराजा जयचन्द्र हुये // 6 // P.P.AC. Gunratnasuri MS. Gun Aaradhak Trust Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 113 स्त्रीचरित्र. मूतन्महीपतनया तिमनोज्ञा पद्मिनीतिविदिता भुवि नाम्ना // पद्मपत्र ल. लितातनु यष्टिः पूर्णचन्द्र मुखकान्ति ललामा // 7 // याऽनङ्ग खेल न महाकुच कुम्कुमाढ्या बरापैक लंबित कपोल मुखप्रभासा // रत्नप्रभैक विधि निर्मित हारजाल शोभाढ्य रोज बिदिता मदनोद्भवाङ्गी // 8 // सा पद्मिनी पद्मदलायताक्षी कृशोदरी पद्मकरेव बाला॥ मनोहरन्ती मिषता कटाक्ष शरैविभिन्न हृदयं लुठन्ती // 9 // - अर्थ-तथा उन महाराज जयचन्द्रजीकी आति मनोहरा कन्या पृथिवीमें विदित पद्मिनी नामा,कमलपत्रके समान अंगवाली, सुन्दर स्वरूपवाली, पूर्णचन्द्रमाके समान मुखकी कान्ति जिसकी // 7 // जो कामदेवक क्रीडा योग्य गेंदरूपी कुच कुस्कुम तिन करके युक्त था, Jun Gun Aaradhak Trust ..P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ inition भाषाटीकासहित. 113 और छटी हुई लट कपोलपर झूल रही थी, व रत्नोंके द्वार समूहकी शोभासे युक्त सरोज जिसके तथा जिसको / देखतेही कामदेवकी उत्पत्ति होती थी, तथा वह पद्मिनी कमलपत्रायत नयनी, कृशोदरी(पतली कमरखाली)मानो दूसरी लक्ष्मी हो और देखनेवालोंके मनको हरनेवालो, अपने बाणरूपी कटाक्षोंसे हृदयको जर्जरीभूत कर लूटती थी.. :: पद्मिनी (संयोगता ) के रूपकी प्रशंसा सुनकर महाराज पृथ्वीराजने एक कर्णाटकी नामा दासी कन्नौजको संयोगताके पास उसको मोहितकर अपने वशमें लानेके निमित्त भेज दो थी जिस समय वह कर्णाटकी कन्नौजमे आई तो उसने महाराज जयचंद्रको समीप आय यह कहा कि,मैं महाराज पृथ्वीराजको दासी हूं मुझको विना अपराध पृथ्वीराजने दिल्लोसे निकाल दिया अब मैं आपके शरण आई हूं सिवाय आपके और. किसकी शरण जाऊँ, यह सुनकर महाराज जयचन्द्रजीने उसको सयोगता(पद्मिनी) की सेवामें भेज दिया वह दासी कर्णा P.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. टकी किसीकी लज्जा नहीं करतीथी जब कोई पूंछता कित किसीकी लजा क्यों नहीं करती है? तब वह यही उत्तर देती थी कि मैं विना पृथ्वीराज नरदेहके दूसरे किसकी लजा करूँ ? एक दिन संयोगतानेभी कर्णाटकीसे पूंछा कि इसका क्या कारणहै तू किसीकी लज्जा नहीं करती, उसने कहा कि, हे सुशोभने! मैं विना महाराज पृथ्वीराजके नरदेह अन्य किसकी लजा करूं ? महा• राज पृथ्वीराजके समान शूर वीर व स्वरूपवान दूसरे किसीको मैं नहीं देखती इस प्रकार अवसर आय कर्णाटकीने महाराज पृथ्वीराजकी बहुत प्रशंसा की, जिससे संयोगताका चित्त मोहित होगया संयोगताने स्वयम्वरमें महाराज पृथ्वीराजके कंठमें जयमाला पहिराई थी, जिसका वृत्तान्त संक्षेप रीतिसे हम आगे लिखते हैं, चन्द्र कवि अथवा चन्द्रभाटने अपने ग्रंथ ( पृथ्वीराजरासा ) के कन्नौज खंडमें संयोगताका स्वयम्वर उत्तमता पूर्वक वर्णन किया है उसीमें सारांश निकालकर सरल भापामें लिखना हमने यहां विचार है, सो इस प्रकार कि, Ac. GunratnasuriM.S... Gun Aaradhak Trust Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / भाषाटीकासहित. महाराज जयचन्द्र क्षत्रियोंमें राठूर वंशीय थे, कन्नौजमें यह निर्भय राज्य करते थे और महाराज पृथ्वीराज क्षत्रियोंमें चौहान वंशीय थे दिल्लीमें यह निर्भय राज्य करते थे, इन दोनोंका राज्य बहुत बडा था, दिल्लीके महाराज अनंगपाल तोमर वंशीयकी दो. कन्याओं से एकके पुत्र महाराजा जयचन्द्र थे, दूसरीके पुत्र महाराज पृथ्वीराज थे, किसी कारणसे महाराज अनंगपालने पृथ्वीराजको अपनी गद्दी सौंप दी थी, उस कारणके यहां पर लिखनेकी आवश्यकता नहीं है, पृथ्वीराजका अनंपालकी गद्दीपर बैठना जयचन्द्रको अच्छा नहीं लगा, इसीसे जयचन्द्र और पृथ्वीराजमें अनवन होगई थी, जब पृथ्वीराजने बड़ी धूमधामके अश्वमेध यज्ञ किया, तो इर्षा देषके कारण जयचन्द्रने अधिकतर यश प्राप्त हानेकी इच्छासे राजसूय यज्ञकी तैयारी की, जयचन्द्र और पृथ्वीराज ये दोनों मौसेरी भाई थे, इन दोनोंने परस्पर वैरभाव करके अपना अपना राज्य नाश कर: ला, तभीसे इस पवित्र देशमें यवनलोगोंने - - P.P.AC: Gunratnasuri Jun Gun Aaradhak Trust. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रआकर अपना अधिकार जमाया, और इस देशकी सारी राजलक्ष्मी हर ले गये, यवनोंका अन्यायसे नष्ट -- होकर यह देश अभी तक नहीं सुधरा, महाराज जय चन्द्रके राजसूय यज्ञमें भारत वर्षके सब राजा महाराजा सुशोभित थे, केवल चित्तौरके सोमसी राजा और दिल्लोके राजा पृथ्वीराज,ये दोनों ईर्षा द्वेषके कारण नहीं आये यज्ञमें सब काम काज प्रायः राजा व राजकुल .. बालोंके हाथसेही होता है इस कारण जयचन्द्रने अन्य 'राजाओंकी दृष्टि सोमरसी और पृथ्वीराजको तुच्छ जाचनेकी इच्छासे सोमरसीका एक सुवर्णचित्र बनवाकर पात्र धोनेके स्थानमें खडा करवा दिया, दूसरा पृथीराजका एक सुवर्ण चित्र ड्योढोपर खडा करा दिया, यज्ञ समाप्त होनेके उपरान्त महाराज जय चन्द्रने राजकुमारी संयोगताका स्वयम्बर करनेका विचार किया, यज्ञमंडपमें जिस समय संयोगता अपने हाथमें जयमाल लेकर आई और वहां सब राजाओंकी ओर एक दृष्टि उठाकर देखा, तो ऊन राजाओमें पृथ्वा' -P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Charat भाषाटीकासहित.. 117 राज कहीं नहीं दीख पडै, संयोगताने महाराजा पृथ्वीराजकी प्रशंसा सुनकर अपने मनमें विचार लिया था कि, हमारे पति होनेके योग्य महाराज पृथ्वीराजही हैं, यदि महाराज पृथ्वीराजके संग विवाह न हुवा, तो मैं विवाह नहीं करूंगी संयोगता यह विचार करही रही थी कि इतनेमें उसकी दृष्टि महाराज पृथ्वीराजकी सुवर्णमूर्ति पर पडी तुरन्त जयमाल उस मूर्ति के गलेमें डाल दी और अपने पिता जयचन्द्रकी अप्रसन्नता और द्वेषका कुछ विचार न किया,तब उस सभाके बीच जितने राजा लोग बैठे थे, अपना अपना मन मारकर रह गये, यह समाचार जब महाराज पृथ्वीराजको पहुंचा, तो विचार किया कि अब मौन रहना ठीक नहीं है किसी उपायसे अपनी प्यारीको कन्नौजसे दिल्ली हाना चाहिये, यह विचार कविचन्दसे सम्मति की सम्मति करके कविचन्दके साथ सेवक वेषसे कन्नौजकी राजसभामें जाना निश्चय हुवा. - तब चुने हुये सरदार और कुछ सेना साथ लेकर PPPMSParirati P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun-Gun Aaradhak Trust Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राग पीलू. स्त्रीचरित्र.. महाराज पृथ्वीराज कविचन्दके साथ हुये, कन्नौज पहुंचकर वाहर डेरा डालदिये गये और कविचन्दका आना प्रगट किया गया, पृथ्वीराजको अपना सेवक बनाय कविचन्दजी महाराज जयचंद्रकी सभामें पधारे और आशीर्वाद दिया. Swapp - राजत पूरणशशि जयचंद। , चतुर चकोर विलोकतही जिहिं होत हृदय . सानन्द / जग शोभा वर्धक नक्षत्रपति सोहत अति स्वच्छन्द रवि प्रचण्डता, रहित हर्षप्रद अनुपम आनंद कन्द / शुक्लपक्ष ज्यों बढ़ अमित द्युति कबहुं परै मतिमन्द // बार बार यह देत मुआशिष वरदाई कविचन्द // 1 // ॐ.. इस रागमें कविचन्दने चतुराईसे पृथ्वीराजको रवि P.P.AC.GunratnasuriN Gun Aaradhak Trust Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - / भाषाटीकासहित... बनाया है और जयचन्दको चन्द्रमा कहकर नक्षत्रपति, मंतिमन्द आदि शब्द जान बूझकर कहे हैं. - यह सुनकर जयचन्द्रने कवि चन्द्रको बैठनेके लिये संकेत किया, तब कविचन्द्र बैठ गये और पृथ्वीराजसे बक वेपसे कविचन्द्रके पीछे खडे रहे अनन्त महाराज जयचन्द और कविचन्द्रमें बात चीत हुई. - जयचन्द्र-( कुछ रुखावटसे ) कविराज, तुमारे यहां - कुशल है.. कविचन्द्र-हां महाराज, हमारे यहांकी कुशलमें क्या दोहा. राजनीति चतुरङ्गबल,धर्म बुध्दि बल पाय। करै नवेद विरुध्द रुचि,क्यौं न कुशल दरशाय // 2 // इस दोहेमें कविचन्द्रने जयचन्द्रके वेद विरुद्ध यज्ञ करने पर आक्षेप किया है, और ध्वनिसे अशुभ सूचित किया है, तदनन्तर कुछ बात करके जयचन्द बोले info Sadirayanendra Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. कविराज, तुम संजय सरीखे बुद्धिवान् पृथ्वीराजके दरबारमें थे. फिर उन्होंने विना करण हमारे भाई को मारकर हमारे यज्ञमें क्यों विघ्न किया?दिल्लीपति अनङ्गपाल हमारी सेवा करते थे, और हमभी उनकी मर्यादा को बढाते थे, अनङ्गपालने हमारी आज्ञा विना, पृथिवीराजको दत्तक पुत्र बनाया, तब केवल उनकी सेवाका स्मरण करके हमने उन्हें क्षमा किया, आज अस्सी लाख सेना हमारी आज्ञामें है, सब हिन्दू मुसल्मान हमारे आतंकसे थर थर कांपते हैं, फिर पृथिवीराजने जान बूझकर सिंहकी पूछ दबानेका कैसे साहस किया ? यह सुनकर चन्द्रकविने उत्तर दिया कि, राजाधिराज पृथिवीराजको सिंहको पूछ दबानेका अभ्यास तो जन्मसे है परन्तु वे आपको सपुच्छ नहीं समझते थे, यदि आप परस्परके. उपकारहीको सेवा समझते हैं. तो महाराज पृथिवीराजने आपको सेवामें क्या कसर की, जब आप दक्षिण देश पर चढकर गये पीछेसे शहाबुद्दीन गोरा कन्नौजपर चढ आया था, यदि उस समय राजाधिराज Jun Gun Aaradhak Trus P.P. Ac. Gunratnasufi M.S.. Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. पथिवीराजने अपने नामपर विचार करके यदि आपकी रक्षा न की होती, तो आपको दक्षिण ( यमलोक ) सिधारनेके सिवाय कौनसा मार्ग था ? जब आप ऐश्वर्य मदमत्त होकर धर्मकी मर्याद तोडने लगे, 'अश्वमेधं गवालम्वं सन्यासं पल पैतृकम् / देवरेण सुतोत्पत्ति कलौ पंच विवर्जयेत्' // 1 // इस महावाक्यके विपरीत कलिवर्जित यज्ञ आरभ्म कर दिया तब राजाधिराज पृथिवीराजने अपने सरल स्वभावसे केवल एक वार धनुष की टंकोर करके आपको सचेत कर दिया,तो क्या अनुचित किया, यह सुनकर जयचंदने कहा, क्या तुम इतनाभी नहीं जानते कि युगराजासे हुवा करता है, कलियुग / कसा ? काल राजाका कारण नहीं, राजा कालका कारण है, महाभारतमें लिखा है. कालो वा कारणं राज्ञो राजा वा काल कारणम् / इति ते संशयो माभूद्राजा कालस्य कारणम् // 1 // , , , . . . ra ndarthfayde / R.P.AC.GunratmasaM.S Gun Aaradhak Trust Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . स्त्रीचरित्र, 125 है. इससे ज्ञात हुवा कि तुमारा बल वाणीमें है, जैसा शास्त्रमें नहीं पाया जाता, अच्छा अब यह बताओ कि, इतने मुकुटबन्ध राजा इस समय हमारी सभामें बैठे है इनमें पृथिवीराज किसकी अनुहार है, . जयचन्द्रकी यह बात सुनकर कविचंद्रने इसे शब्द कहते समय बहु वार अपने पिछे खडे हुये पृथिवीराज कि ओर अंगुली करके यहा कहा, छप्पय. 'ऐसो राज ट्रथिराज जिसो गोकुलमें मोहनइसो राज पृथिराज जिसो भारतमें अर्जुन। इसो राज पृथिराज जिसो अभिमानीरावना इसो राज पृथिराज राम रावण सन्तापन।वर्ष तीस से अधिक है तेजपुंज अनुपम वदन / इमि जपै चन्द्र वरदाय वर पृथिराज अनुहार इन // 1 // - यह सुन जयचन्दने करवी राजकी ओर देखकर मनमें . .P.P.AC.GuaratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradnak Trust Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. 123 कहा कि जब में इस सेवककी और देखता हूं, तो इसके / मुख पर मुझको राजतेजकी झलक प्रत्यक्ष दिखाई देती तथा चन्द्रकवि, अनुपन वदन, कहकर पृथिवीराजको | इसको अनुहार बतलता है, मेरे अपमान सूचक वचन सुनकर इसका मुखलाल होगया, होठ फडक उठे, क्रोधयुक्त सांपकी नाई फुकारने लगा, टेढी. भ्रकुटीसे युगान्तक रुद्रके तीसरे नयन खुलने कासा भाव दिखाई | देने लगा, ये लक्षण साधारण मनुष्यके नहीं हो सकते यह पृथ्वीराजही जान पडताहै इसके पकडनेकायहअवसर बहुत अच्छा है, परन्तु जो यह पृथ्वीराज न निकला, तो इसके पकडनेसे बडी हंसी होगी, लोग कहेंगे पृथ्वीराज तो पकड मिलता नहीं, उसके बदले नौकरोंको पकडकर मन सन्तोष करते हैं, यह विचारकर कर्णाटकी | काबुलानेका निश्चय किया कि, जो वह इस समय सभामें आवेगी और इसको देखकर लाज करेगी ता. विदित होजायगा कि यही पृथ्वीराज है, यद्यपि .P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Gun Aaradhak Trust Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 स्त्रीचरित्र कर्णाटकी पृथ्वीराजसे अलग होकर यहां रहती है तथापि उसीको पुरुष समझकर लाज करती है, यह सोच प्रतिहारीको भेजकर कर्णाटकीको सभामें बुलाया, कर्णाटकीको आता देखकर चन्द्रकविने आपने मनमें विचार किया कि इस समय महा धर्म संकट आपडा, जो यह कर्णाटकी शिर ढाक कर महाराज पृथ्वोराजकी लाज करैगी तो जयजन्द्र महाराज पृथ्वीराजको इसी समय पहिचान लेगा, और अभी उपद्रव होने लगेगा इससे क्या उपाय करना चाहिये कि कर्णाटकी लाज न करै, यह विचार कर चन्द्रकविने कर्णाटकीको सुनाकर तुरन्त यह दोहा पढा. ....... दोहा. - कर्णाटक कौशलमयी, तज संकोच दरसार / यह कुशल सब होयगी, कहुनिज दृत्ति विचार // 1 // . चन्द्रकविके दोहेका तात्पर्य समझकर कर्णाटकीने P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. . . . Jun Gun Aaradhak Trust . Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -rrr / भाषाटीकासहित. 125 तत्काळ अपना ढकाहुवा मस्तक उघाड दिया, और बन्दकविको प्रणाम किया और यह रेखता कहा. रेखता. सुनये कृपाल चित दै सुनिये कथा हमारी। छूटा स्वदेश जबसे तबसे कलेश भारी। निजगोलसों मृगी ज्यों विछ्रै करम कि मारी // शशिमैं मृगाङ्क लखिके कैसे जि। यै विचारी। अतिशक तृषार्ति होवे लूकी लपट प्रजारी शशिमें सुधा निरखिके चाहे. नक्यौं दुखारी ? दितियाकि चन्द्रकी छवि यासों विशेष प्यारी दोनौं कि दृष्टि तापर मिलजाय एक वारी। चलनेमें चन्दसों बढ - कौन शीघ्रचारी? जल्दी संदेश देके हरि ये विपत हमारी॥सुनये कृपाल चित दै दुखकी कथा हमारी // 2 // ..P.P.AC..Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust. Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 स्त्रीचरित्र जयचन्द्र कर्णाटकीसे कहने लगे कि. तू तो पृथ्वीराजके सिवाय किसीको पुरुष नहीं समझती थी फिर इस समय शिर क्यों ढका, क्या तुझको पृथिवीराज कहीं दिखाई दिया ? यह सुन कर्णाटकाने उत्तर दिया कि, पृथीवी और चन्द्रका दृढ सम्बन्ध समझकर मेंने इतती मर्याद को जो प्रत्यक्ष पृथ्वीराजको देख लेती तो शिर ढककर क्यों उघाती ? जयचन्द्रने कहा, क्या तू चन्द्रके सेवकको पहिचान ती है. कर्णाटकीने उत्तर दिया हां महाराज ! इनका इनका नाम कुछ भूप अथवा भूपतीसे मिलता हुवासा है, यह सुन जयचन्द्रने अपने मनमें कहां क्या करें ठीक निश्चय होता और सन्देह नहीं मिटता, अच्छा चन्द्र तो ठहरे हीगा, इनके डेरेमें गुप्त दूत भेजकर सब भेद जान लेंगे, यह विचारकर अपने सेनापति रावण' का बुलाय कहा कि, इन चन्दको ले जाकर आरामस विश्रामसे दो और महमानीका सब सामान पहंचाआ P.P.AC. GunratnasurtM . Jun Gun Aaradhak Trust Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 127 इनको किसी प्रकारका परिश्रम न हो, सुन रावणने E कहा, जो आज्ञा महाराज, यह कह उठ खडा हुवा,मंत्री ने चन्दको पान देकर पृथ्वीराज सहित वहांसे बिदा किया, चन्द आशीर्वाद देकर चला. .. दोहा. जय जय चंदसदा, रहैही विध आनंद। - कुमुद विकाश प्रकाश लख, होय कमल -द्युति मन्द // 3 // वहांसे आकर कविचन्द अपने डेरेमें विराजमान हुये. जब चन्द अपमे डेरेमें पहुँच गये, तब भेद लेनके लिये जयचन्द अपने मंत्री समेत चन्दुके डेरेमें आये, - उस समय महाराज पृथ्वीराज कविचन्द्र और गोबिन्दराय आदि सरदारोंसे कुछ सामयिक बात चीत कर रहे थे, एक सेवकने आकर कहा कि, महाराज जयचन्द आये है और कविचन्दसे मिला चाहते हैं, यह सुन चन्द्रक वन अत्यन्त सत्कारसे जयचन्दको बुलाय पलंग पर - विगया और आय नीचे बैठे. . .P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. . ____Jun Gun Aaradhak Trust... Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 स्त्रीचरित्र. - जयचन्द बोले-एकाएक वादल प्रगट होनसें च_न्दको कुछ मलिनता तो नहीं हुई ? - चन्द्रने उत्तर दिया--महाराज ! बादलसे चन्दको - मलिनता होतो कुछ हानि नहीं, परन्तु बादलको जल वृष्टिसे प्यासे पपिहराको प्यास अवश्य बुझनी चाहिये. जयचन्द बोले सोरठा. मिलत कर्म अनुसार, बहुत पपिहरन स्वाति जल। बहुत न उपल प्रहार होत एकही जलदसों॥४॥ जयचन्दके मंत्रीनेभो यह दोहा कहा-- रत्नबिन्दु वर्षे नृपति, सुरपति सम सर्वत्र / हातमागे सूखे रहैं, शिरदरिद्रको छत्र // 5 // ... यह सुन कविचन्द्रने कहा कि भगवान्की इच्छा योंही है तो बस, पृथ्वीराजसे कहा, महाराज जयच न्दको पान दो. * P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. . पृथ्वीराजने मनमें विचार किया कि हथेलीमें रख| कर सेवकोंकी भान्ति पान देना ठीक नहीं यह सोच दाताओंकी तरह पांच अंगुलियोंसे पकडकर पान देना चाहा, जयचन्द लेनेमें हिच कि चाहे. - तब चन्दने कहा- .. तुलसीयं विप्र हस्तेषु विभूति वरयोगिनाम् / ताम्बूलं चंदरागेषु त्रयोदान सुआदरम् // 5 // Saptai D . short - पान देते समय पृथ्वीराजने एक झटका मारा जिससे जयचन्द गिरते गिरते सम्हल सके, अनन्तर मंत्रीको पान दिया, तब जयचन्दने अपने मनमें विचार किया कि अब इसके पृथ्वीराज होनेमें कुछ सन्देह नहीं रहा जातेही अपनी सेना भेजकर इसके डेरेको अभी घेरे लेताहूं, यह सोच जयचन्द मंत्री समेत उठ खडे हुये, चन्दनेभी खडे होकर आशीवार्दात्मक वचन कहा. ... 9 .AC.Gunratnasuri M.S... Gun Gun Aaradhak Trust Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. दोहा. निजजनके हित करन हित, देहु सुबुद्धि दयाल। जड सुधरै फूलै फलैं, सब विध होय निहाल // 6 // मंत्री समेत जयचंद चले गये, जयचन्दके सेनापति रावणने तीन लाख सेनासे चन्दके डेरेको घेर लिया यह सुनकर महाराज पृथ्वीराज, कविचन्द, कन्ह, लङ्गरीराय आदिकोंने सचेत होकर युद्ध करनेका प्रवन्ध किया और युद्ध प्रारंभ हुआ केहर कंठीर और आतताईका घोर सुग्राम हुआ. राग सिंदूरा. युद्ध अवनि वीर ठवनि, धावत बलशाली। कं कर धर कृपाण फं फं फेरत सुजान चंचल चपला समान चमक है निराली / गं गं गहि लेत बान खं खं खेंचत कमान दं दं दं देत तान लागत जनु व्या P.P. AC: Gunratnasuri M.S. . .. Jun Gun Aaradhak Trust , Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H thor / int er mir __ भाषाटीकासहित. .. 131 ली। पं पं पग फिरत जाय वं वं बी चलाय, सं सं सं सन् सनाय धावत जनु काली।रं रं रण करत यहां,तं तं तत्काल वहां एक छन अनेक ठौर दीखत रणवाली। युद्ध अवनि वीर ठवनि धावत बलशाली // 7 // केहकंठोरकी बाण वर्षासे व्याकुल होकर आतताईने उसका. धनुष्य काटडाला तब केहर कंठीरने म्यानसे खड्ग निकालकर आताताईको घायल किया और पटे वाजीके हाथ फेरता हुवा बीचमें तत्काल पृथ्वीराजके पास पहुंचकर महाराजके गलेमें कबन्द डाल सीटोसे अपनी सेनाको पृथ्वीराजकी सेना पर धावा करनेकी आज्ञा दा, अनन्तर गर्जकर आतताईसे कहा, रे पृथिवीराजके भासद्ध सामन्त इस समय अपना पराक्रम दिखाकर अपनी सनाकी रक्षा कर और अपने राजाको बन्धनसे छुडा.. उसी समय संयोगता कपडासे अपना मुख छिपाये Staterinlinetm20ederate PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. बीर रूपसे आकर प्रगट हुई तत्काल अपने तीरसे पृथिवीराजके कबन्द काटकर बन्धनसे छुटा दिया, यह देख केहरकंठीरने चिडकर पृथीवीराज पर बर्थी चलाई, पृथिवीराजने अपने तीरसे बीचहीमें उस वर्टीको काट गिराया, फिर पृथिवीराजने केहरकंठीरके ऊपर बाण छोडा, जिसको केहरकंठीरने पैतरा बदलके बचाया, तदनन्तर वीररूप संयोगतासे युद्ध होने लगा. .. आतताईने सावधान होकर केहरकंठीरको जा घेरा, तब संयोगता वीररूप छिपाय अदृष्ट होगई, युद्ध होते होते केहरकंठीरके बाणसे आतताई और आतताईके बाणसे केहरकंठीर एक साथ भूमिपर गिरगये, - तब केहरकंठीर को सेनाके पांव उखडते देखकर जयचन्दकी ओरसे काशिराज आगे बढा, महाराज पृथिवीराजकी ओरसे कन्ह अपने सूर सामन्तोंको साथ ले आगे बढे, और युद्ध होने लगा। - लडत सब वीर विनोद भरे / P.P: Ac. Gunratnasuri M:S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Hoaeaasasian r asountain भाषाटीकासहित. पिचकारिनसे चलत तमंचा लालहि लाल करे / गोला चलत कुम्कुमा मानो लाल गुलाल भरे / जल सीकरसे तीर चतुर्दिश अगणित उमंग परे। भये रुधिरमें सकल तरातर मज्जा भेद भरे / बर्थी तेग त्रिशूल भुशुंडी जो जिहिं हाथ परे।मार मार कह मारत बहु विध तनकी सुध विसरे। धुआं धार अंधियार चहूं दिशि गरदावाद भरे। मच्यो घोर घम सान कोन कित काहुन जान परे // 8 // -- कविचन्द कहने लगे, देखो नख्याघ्र कन्हकी बाणवर्षासे क्षण भरमें धरती आकाश ढक गये, मनुष्य, हाथी, घोडा आदिके घायल और मृतक शरीरोंका ढेर लगगया, रुधिरकी नदी वह निकलो, जिसमें वीरोंके छिन्न भिन्न अंग वहने लगे और किनारों पर हंस, सारस GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134 स्त्रीचरित्र. चक्रवाकके स्थानमें चील्ह, कौये, गिद्ध आदिकका जम घट होगया, चारों ओर हाहाकार हो रहा है, वाकी सेना आपने आप खेत छोड भागी जाती है, . नाराच छन्द. अनेक पागको तर्जें भ6 दशा निहारकै। अनेक वस्त्रहीन शस्त्र भूमि माहिं डारकै॥ अनेक अंग भंग संग साथको विसारकै। अनेक भाग जाय लोक लाजको निवारकै॥ अनेक पादुका विहाय धाय गात मारकै। अनेक जी बचाय जाय घास सीसधारक। अनेक साधु वेष साज जात वस्त्र फारकै। अनेक हाय मार मार प्राण देत हारकै // 9 // - जयचन्दकी सेना भागगई, कन्हकी विजय हुई, परन्तु फिर युद्ध आरंभ हुवा, उस युद्ध में केवल हाहुली राय, चन्दवरदायी और रामगुरू पुरोहित बचे, और गो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Sun Gun Aardhak Trust Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . Durar भाषाटीकासहित. 135 यन्दराय गहलौत, चण्डपुण्डीर, हमीरहडा, कनक वडगूजर, अल्हन कुमार परिहार, लाखनसी वधेला, तथा कन्ह आदि सब वीर काम आये, इनमेंसे प्रत्येकने चढ़ वढकर वीरता दिखाई, परन्तु नर व्याघ्र 'कन्हां' को छटा इन सबसे निराली थी, कन्हके घोडे और (छगन ) सहीस तकका कबन्ध लडा, मंकणक ऋषिके नृत्य समान उनके युद्ध समय सब पृथिवी और आकाशादि नाचतेसे दिखाई दिये, इस युद्धके समाप्त होने उपरान्त कर्णाटकीको सम्मतिसे महाराज पृथिवीराजने संयोगताको अपने साथ लेकर दिल्ली जानेका विचार किया, परन्तु छिपकर जाना उचित न जानकर कविचन्दको सुधि दनके लिये जयचन्दके समीप भेजा. वहां जयचन्द अपनी सभामें बैठे मंत्री और सेनापति रावणके संग वार्ता लापकर रहे थे. जयचन्द-(मंत्रीसे) जिस प्रकार गज जलके लोभसे ... दल. दलमें आ फंसता है, चुगेके लोभसे पक्षी जालमें आ फंसता है और वालूको जल समझकर कुरङ्ग मृग emain Caratnasuri Gun Aaradhak Trust Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्त्रीचरित्र. तृष्णामें भटकता है, उसी प्रकार पृथिवीराज इस समय आपही आप आगया, अवश्य इसको दंड देना चाहिये हमारी सेना शीघ्र तैयार करो, रावण-महाराज, कलके युद्ध में पृथिवीराजके बहुतसे प्रसिद्ध वीर मारे गये... मंत्री-(धीरसे) अपनीभी बहुतसी सेना काम आई. - जयचन्द-कुछ चिन्ता नहीं, अभी हमारी सेना बहुत है और इसी दिनके लिये सेना रक्खी जाती है, हमको केहर कंठीरके मारे जानेका बडा खेद है, - कवित.. धावहु चतुरंगिनि लै वेग बलशाली जन थिवी ते नाम पृथिराजको मिटाय दो। गावहु सिंदूर अरु शंकरादि ऊंचे स्वर तोपनकी मार मार भूमि उलटाय दो। लाबहु मम शस्त्र मैं चलि हौं तुह्मारे संग श P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / भाषाटीकासहित 137 त्रुको सुयश आज धूरिमें मिलाय दो। दाबहु स्वसेन सों रिपुनको भली प्रकार दिल्लिहि उजार बीच धारमें वहाय दो॥१०॥ - यह बात हो रही थी कि एक सेवकने आकार कहा, महाराज महलमें राजकुमारी संयोगता नहीं, है, यह सुन मंत्रीको भेज कर जयचन्दने निश्चय किया, तो ज्ञात हुवा कि निस्सन्देह संयोगता महलमें नहीं, है जयचन्दको यह जानकर महा शोक हुवा, इतनेमें चन्दके आनेकी सुधि प्रतिहारीने आकारदी. जयचन्द-(प्रतिहारीसे ) चन्दको आने दो. चन्द-(आकर) दोहा. श्रीगोविंद प्रतापते, सुख भोगें जयचंद। चितकी सब चिंता मिटै,रहैं सदा सानंद॥११ जयचन्द-चन्द कहो क्या कोई नवीन समाचार है: चन्द-महाराज ! राजकुमारी संयोगता सब प्रकार Jun Gun Aaradhak Trust Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 138 . स्त्रीचरित्र प्रसन्न है और राजाधिराज पृथिवीराज संयोगता संयुक्त दिल्ली जानेके लिये आपसे अनुमति चाहते हैं. - जयचन्द-आह ! क्या संयोगता पृथिवीराजके पास है ? हमने यज्ञ किया, जिसमें घृतके बदले रुधिरकी आहुति दीगई, चन्द-आप इतने दुःखित क्यों होते हैं राजाधिराज पृथिवीराज आपके पुराने व्यवहारी है. और ईश्वरने उनको सब प्रकार राजनन्दिनीके सम्बन्ध योग्य बनाया है, कन्या तो परिणाममें किसी न किसीको देनेही पडती है परन्तु ये कैसा अच्छा हुआ, कि राजकुमारीने जिसको स्वर्ण प्रतिमाके गलेमें वरमाल पहराई थी, उसीके संग सम्बन्ध होगया. - जयचन्द-चन्द ! तुम क्यों जले पर नोंन छिडकते हो ? माता पिताकी सम्मति विना सम्बन्ध होनेकी यह कौनसी रीति है ? और इस विषयमें हमारे लिये कसा लजा प्रतीत होती है ? चंद-स्वयम्वरमें माता पितासे अनुमति लेकर वर P.P. Ac: Gunratnasuri M.S.. Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. . 139 माल पहिरानेकी रीति कहीं नहीं सुनी गई, फिर इसमें आपकी लज्जाका कौन हेतु रहा ? * जयचंद--कुछ हो; इस विषयमें पृथिवीराजकी ओरसे | हमारा ऐसा अपमान हुवा है कि, हम इसका बदला लिये विना किसी प्रकार नहीं रहेंगे, जो चंद्रादि ग्रह पश्चिमके : / बदले पूर्व दिग्गमन करेंगे तो भी यह सम्बंध न होगा. चंद-जैसे चन्द्रादि ग्रहोंके पूर्व दिग्गमनमें संदेह - नहीं, तैसेही अब इस सम्बन्धमें कुछ सन्देह नहीं रहा, आप क्रोध किस पर करते हैं ? राजाधिराज पृथिवीराज - क्या अब आपसे पृथक् हैं ? आप अपनी आत्मासे ब.दला लेनेका विचार करते हों भले ही लें परन्तु इसका - पछतावा आपको पीछेसे अवश्य होगा. सुभद्राहरणसे पाछे कृष्ण बलरामसे अर्जुनका सम्बन्ध अंगीकार किया, तो कैसा शुभ परिणाम हुआ ? और ऊपा अनिरुद्धके गान्धर्व विवाह हुये पीछे बाणसुरने प्रतिवाद किया वा कसा दुःख पाया ? परस्परके विवादमें किसीको सुख नहीं मिलता. Ac. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust. Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. - जयचन्द-यह सब सत्य है, परन्तु संसारमें जिसकी बात न रही उसका क्या रहा ? .. ___ चन्द-आप धीर्यसे विचार करें कि कुरुक्षेत्रमें अग रह दिन युद्ध हुआ और उसमें अठारह अक्षोहिणी सेना दोनों ओरकी मारी गई, पांडवोंने सौ भाई दुर्योधन आदिके सिवाय भीष्म, पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण आदि महावीरोंको रण शाई करके विजय लक्ष्मी पाई और छत्तीस बर्ष राज्य किया, परन्तु उस छत्तीस वर्ष महाराज युधिष्ठिरको क्षणभरके लियेभी मनःसंतोष नहीं हुआ, वह बारम्बार ठंराठी श्वास लेकर यही कहते रहे, कि जिनके लालन पालनके लिये मनुष्य राजलक्ष्मी चाहताहै, उनका विनाश करके अब मैं क्या सुख भोग करूंगा ? . जयचन्द-ईश्वरेच्छा बडी प्रबल है; उसकी इच्छाम किसीको कुछ कहनेकी सामर्थ्य नहीं.. ___चन्द-निस्सन्देह वायुके सन्मुख ध्वजा कौन उडा सकता है ? जो मनुष्य ईश्वरेच्छा पहिचानकर उसके अ. P.P.ActGunratnasuri M.S.. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 141 नुसार वर्तता है, वही संसारमें कृतकार्य होता है और / उसीको सदा यश मिलता है. | जयचंद-ईश्वरकी अघटित घटना है, उसकी इच्छामें किसीका बल नहीं चलता, अब मैं इस विषयमें | कुछ प्रतिवाद नहीं करना चाहता, तुम मंत्री समेत जाकर उनको सत्कारसे लिवा लाओ हम उनकी इच्छाको पूर्ण करेंगे, यह सुन चंद मंत्री दोनों गये और पृथिवीराजको सत्कार पूर्वक लिवा लाये, महाराज पृथिवीराजके आनेपर जयचंदने आदर सहित विठाकर संयोगताको भी बुलवाया, और महाराज पृथिवीराजसे कहा कि, हमने ईर्षा वश अब तक आपसे सदा विरोध रक्खा, मजुप्यके मनमें इश्वरने ईर्षा इस लिये उत्पन्न की है कि, वह उचित रीतिसे उन्नति करके दूसरेके समान हो. परंतु इषाके हेतु अनेक सज्जन दूसरोंके हाथसे अकारण दुःख सहते हैं महाभारतके घोर युद्धका कारण केवल दुर्योधन की ईर्षा थी, पर अब इसका प्रतिशोध करनेके लिये हम / एक ऐसा अलौकिक रत्न आपको समर्पण करते हैं . P.P.AC. Gunratnasurj M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -142 स्त्रीचरित्र. जिससे निस्संदेह आपके चित्तको महान् सुख होगा यह कह संयोगताका हाथ पृथिवीराजके हाथमें दे दिया और मधुर भाषणसे प्रसन्न किया, पृथिवी राजनेभी महाराज जयचंदको उचित उत्तर देकर प्रसन्न किया, तदनंतर परस्पर प्रसन्नतापूर्वक महाराज पृथिवीराज दिल्ली पहुंचे; पृथिवीराज चव्हाण और पृथिवीराज ए सबका आशय लेकर अन्य इतिहास वेत्ताओंनेभो इसी प्रकार लि. रखा है, परंतु आल्हा गानेवाले लोग यह गाया करते हैं कि, कन्नौजसे दिल्ली तक मार्गमें युद्ध होता गया, कोई दिन युद्ध होता रहा, अन्तको महारज पृथिवीराज संयो गताको लेकर दिल्ली पहुंचे, यह संग्राम विक्रमीय सम्बत - 1921 के लगभग हुआ था, संयोगताके साथ विहार __ करते हुये महाराज पृथिवीराजको राजकाजकी कुछ सुधि बुधि न रही; जो शहाबुद्दीन महम्मद गोरी कई , वार हारकर चला गया था, वह अपनी फौज लेकर फिर चढ आया तो एक राजदूतने आकर कहा कि,महाराज यव न सेना चढ आई है,आप सावधान होजाय,यह सुनकरस .P.P. Ac. Gunratnasuri-M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M | गताने महाराज पृथिवीराजसे कहा, स्वामिन् ! शीघ्र उ ठिये, अब भोगविलासका समय नहीं रहा, आप क्षत्री / हैं अस्त्र शस्त्र संभालकर संग्रामकी तैयारी कीजिये, यदि संग्राममें आप शरीर त्यागभी देंगे तो मैं आपके संग / स्वर्ग चलूंगी, आप क्षत्रिय धर्मको भलीभाँति जानते हैं, यह सुन महाराज पृथिवीराजने युद्धकी तैयारी की, परंतु शोककी बात यह थी कि, कन्नौजके संग्राममें - पृथिवीराजके बडे बडे सुभट समाप्त हो चुके थे, इस का- रण महाराजने अपने सब मेली राजाओंको बुलाकर सभा की, उसमें यह सम्मति ठहरी कि केगर नदीके तट - पर जहां यवनोंकी सेना उतरी है, वही चलकर यवनोंका पराक्रम देखें. यह सम्मति होकर महाराज पृथिवीराज संयोगतासे मिलने गये, महा प्रीतिके कारण दोनोंको बोलनेका सामर्थ्य न रही, रानी महाराजको इकटक देखती ही रह गई, प्यारीके हाथले सुवर्णके कटोरेमेंसे कुछ जलपान करके सनामें डंकेका शब्द सुनकर महाराज चल दिये, घोर P.P..AC.Gunratnasuri M.S.. Jan Gun Aaradhak Trust Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रोचरित्र. संग्राम हुआ, धोखा देकर महाराज पृथिवीराज पकडलिये गये, और मारे गये, यह सुन संयोगताने सती होनेका निश्चय करके अपने स्वामीका शिर मांगा, तब उस दुरात्मा यवनाधीशने संयोगता पर मोहित होकर बहुत कुछ समझाया बुझाया, कि तुम व्यर्थ अपने इस कोमल शरीरको अग्निमें भस्म करना चाहती हो; संयोगताने बादशाहको ऐसे जवाब दिये कि, जिससे उसको विश्वास होगया कि यह रानी किसी प्रकार नहीं मानेगी, अन्तको महाराजका शिर उसको देदिया, तब सबके देखते देखते पतिका शिर गोदमें लेकर संयोगता सती होगई, सुवर्णके कटोरेमें जल पीकर जितना जल महाराज छोड गये थे, उस दिनसे सती होने पर्यन्त उतनाही जल पीकर संयोगताने अपना प्राण धारण किया था, कविचन्दने अपने ग्रन्थका एक खंड इसी रानीके तप और शारीरक कष्ट सहनेके वर्णनमें लिखा है, रानी * संयोगताके समयके महलोंके चिन्ह पुरानी दिल्लोके खड . हरोंमें अब तक मिलते हैं, रानीके रंगमहलका खण्ड P.P: Ac. Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - भाषाटीकासहित. 145 हर अब तक पथिकोका संयोगताका स्मरण कराता है, यह संयोगताका वृत्तान्त हमने यहां संक्षेपसे लिखा है, आगे कूर्मदेवीका हाल लिखते हैं. कूर्मदेवी. यह कूर्मदेवी चित्तारै गढके राना सोमरसीकी रानी और पट्टनकी राजकुमारी थी, महाराज पृथिवीराजके सहायक राना सोमरसीभी केगरके संग्राममें काम आये, रानाको पतिव्रता रानी कूर्मदेवीने अपने पुत्रके समर्थ होने पर्यन्त राजकाजको वडीबुद्धिवानीके साथ सम्हाला, इसी रानीने कुतुबुद्दीनशाहको अम्बरके समीप पराजय करके घायल किया था. जब पुत्र समर्थवान् होगया, तब उसको राजकाज सौंपकर आप भगवद्भजन करती हुई पतिलोकको सिधारी, आगे पद्मावतीका हाल हम लिखते है, . - पद्मावती पद्मावतीका चरित्र पद्मावती नामवाली कई पुस्तकोंमें / लिखा है, इसके रूप गुणको प्रशंसा प्रायः कवियोंने .AC. Gunratnasuri.M.S: Jun Gun Aaradhak Trust Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. गाई है, यह सिंहलद्दीपके राजा हमीरसिंह चौहा नकी राजकुमारी थी, जो राजा हमीरसिंह विक्रमीय सम्वत् 1400 के लगभग हुआ है, पद्मावतीका विवाह लखमसिंहके चचा भीमासिंहसे हुवा था, रानी पद्मावतीका निवासमान्दिर अति रमणीय है जो अब तक एक सुहावने सरोबरके तट पर विद्यमान है, विक्रमीय सम्वत् 132 में दिल्लीके बादशाह आलाउद्दीनने इस परमरूपवती पद्मावती के हेतु चित्तौरगढ पर चढाई को थी, अलाउद्दीनने जब कोई उपाय अपने मनोरथ पूर्णहोनेका न देखा, तब रानासे प्रार्थना पूर्वक कह ला भेजा, कि यदि आप मुझे अपनी रानीके दर्शन मात्र कर दीजिये, तो मैं सन्तोष करके दिल्लीको लौट जाऊं उस समय में अधिक परदा करनेको रीति नहीं थी, इस कारण राजाने शीशेकी ओटसे अपनी रानीके दर्शन करा देनेमें कुछ अप्रतिष्ठा नहीं समझी, इसीसे बादशाहका प्रार्थनाको स्वीकार करलिया, बादशाह क्षत्रियोका . सत्यता पर भरोसा करके अपने थोडेसे साथियों सहित . .P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Gun Aaradhak,Trust. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. 147 गढके भीतर चलागया, रानी के देखकर बादशाहका मन चंचल होगया, परन्तु ऊपरसे निष्कपट भाव दर्शा कर रानासे कहा, की आप लोगोंको जो कष्ट हमने दिया सो क्षमा करना, हमारी आपको अब आगेको सर्वदा प्रीति बढती रहेगी, रानाने अपने सरल स्वभावानुसार विचार किया कि, बादशाह हमारे साथ अकेलाही हमारे किलेमें चला आया, हमको भी इसकी वातपर विश्वास करना चाहिये, क्योंकि जिस प्रकार कोई अपना विश्वास करै उसी प्रकार उसकाभी विश्वास क्यों न किया जाय, यह विचार कर बादशाहको पहुंचाने के लिये किलेके बाहर रानाजी चले आये, बादशाहने रानाको बातोंमें लगाकर अपनी सेना तक पहुंचाया और तुरंत वहीं वंधवाकर कहा कि जब तक तुम अपनी रानीको नहीं दोगे तब तक हम तुमको नहीं छोडेंगे, यहां पर विचार करना चाहिये कि यवन बादशाह कितने छली और कपटी थे, क्षत्रियोंके सन्मुख वीरता दिखा कर किसी यवन बादशाहने विजय नहीं, L SO.. PP.AC.Gunratnasuri M.S: Gun Aaradhak Trust Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 248 स्त्रीचरित्र. पाईं, यदि भारतवर्षों परस्पर विरोध भाव न होता तो यवन लोग कभीभी इस भरतखंडमें राज्य नहीं कर पाते, __अपने स्वामीका छलमे कैद होजाना सुनकर रानी पद्मावतीने अपने भाई और चचाको बुलाकर पूछा कि - अब क्या उपाय किया जाय जिससे हमारी प्रतिष्ठामेंभो बट्टा न लगै और रानाजी बंधनसे छूटकर आ जावै. यह पूंछने पर उनकी यह राय ठहरी कि, बादशाहके पास जानेका बहाना करके रानाको छुटानेका उपाय किया जाय, यह सुन रानीने बादशाहको कहला भेजा कि आप पहर अपनी सेना उठवा लें, मैं अपनी सब सहेलियोंसहित आपके पास आती हूं, बादशाहने इस बातको मान लिया और प्रसन्न होकर अपनी फौजमें आज्ञा कर दी कि रानी पद्मावती आती है, कोई सिपाही किसी डोलीको उघाडकर न देखै, रानीने सातसो डोली में छे क्षत्री कहार रूपसे एक एक वीर धीर क्षत्रियको बिठाकर बादशाहके लशकरमें चले, एक बहुत बडे तम्बूक भीतर डोलियां उतारी गई रानीने वहां पहुंचकर बादशा: P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 149 हको कहला भेजा कि रानासे एक घंटे तक अन्तिमभेंट कर लेने पर अपाके पास आऊंगी, बादशाहने बहुत प्रसन्न होकर रानीकी बातको स्वीकार किया, और आधघंटे तक रानासे भेंट करनेकी आज्ञा दी, उधर रानी पद्मावती रानासे मिली, उधर बादशाह फूले नहीं समाते थे कि ऐसी खूब सूरत औरत हाथ आई, इसी ध्यानमें बादशाह विचार कर रहा था कि, कब आध घंटा गुजर जाय और रानी हमारे सामने आवै, यहा दूसरा गुलखिला, दुष्ट यवनराजकी आशा भंग हो गई, रानी और राना अति शीघ्रगामी घोडों पर चढकर चित्तौरको भाग आये और उन सात सौ रण कर्कश क्षत्रियोंने वीररूप धारण कर बादशाहके लश्करको मार भगा दिया और ऐसी घबराहट फैला दी कि, हाहाकार मचगया, बादशाह अपना सा मुंह लेकर दिल्ली लौट गया और रात दिन इसी चिंतामें रहा करता था कि ' किसी प्रकार चित्तौर गढको फतहा करूं विक्रमी सम्वत् / 1360 में बादशाहने अपनी सेना सम्हालकर फिर AC a ina A - Jun Gun Aaradhak Trust Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. चित्तौर गढ पर थावा किया, इस वार बादशाहके बहुत कुछ कहनेसे यवन सिपाहियोंने प्राणोंका मोह छोडकर युद्ध करना प्रारंभ किया, क्षत्रियोंने जब देखा कि टीडी दलके समान इस यवन महासेनासे निस्तार पाना कठिन है, कुत्तेकी मौत मरना अच्छा नहीं, अब इसीमें भलाई है कि अपनी प्रतिष्ठा बचानेका उपाय करके रणक्षेत्रमें जाकर लड मेरे, यह विचार कर क्षत्रियोंने किलाके भीतर वाली गुफामें अग्नि प्रचंड करके अपनी स्त्रियोंको बुलाय यह वचन कहा कि तुम सबको अपनी प्रतिष्ठा बचानेके लिये अग्निमें प्रवेश करनेके सिवाय दूसरा उपाय नहीं हैं, हम सब तुमको स्वर्गमें आकर मिलेंगे, यह सुन सब क्षत्रियाणी जो वहां थो रानी पद्मावती समेत अमिमें प्रवेश कर गईं, क्षत्रियों ने उनका एक एक वस्त्र अपने शरीर पर धारण कर केसरिया वागे पहिनकर किलेका फाटक खोल दिया, और सबक सब शत्रुओंसे लडकर कट मरे, बादशाह प्रसन्न हा, पद्मावतीसे मिलनेकी आशासे किलेके भीतर आया P.P.AC.Gunratnasuri M.SE Jun Gun Aaraanan Trust Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - -- - भाषाटीकासहित. और पद्मावतीके शरीरको भस्म होते देखकर हाय ! कह कर रह गया, क्रोधमें आकर बादशाहने किलेमें बजे वचाये लोगोंको भेड और बकरियोंकी तरह कटवा डाला और जो घर किलेमें बने थे सबको तुडवा डाला, परन्तु पद्मिनीके ध्यानमें मग्न होकर उसका आदर यहां तक किया कि, जिसमें रानी निवास करती थी, उस रंगमहलको छोड दिया, इस प्रकार रानी पद्मावती भस्म होगई, जिसका वृत्तांत प्रायः राजपूतानेकी कविताओं और राग व गीतोंमें प्रसिद्ध है, जिस गुफामें रानी पद्मावती जल गई थी, वहां अबभी बहुधा लोग - तीर्थ मानकर आते हैं, और रानी पद्मावतीका नाम स्मरण करके बहुत मान करते हैं, इति / अब आगे मीराबाईका चरित्र लिखते हैं. - मीराबाई. मीराकी कथा नाभादासने अपने भक्त मालामें लिखी / है, परंतु ऐसी रीतिसे भक्तमालमें लिखा है कि जिसको Point 2 Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 152 स्त्रीचरित्र. प्रायः मनुष्य असत्त्य समझते हैं, जिस समाचारमें अ. सत्यता प्रतीत नहीं होती, वह समाचार यह है कि, मीराबाई मिरताके राठोरकी कन्या थी, जो मारवाड देशमें सबसे उच्च वंश माना जाता है, चित्तौरके महा राज कुंभकी रानी पीराबाई श्रीकृष्ण भगवान्के चरि-त्रोंको परमपवित्र मानकर पढा करती थी, और श्रीकृष्णकी भक्तिमें लवलीन रहा करती थी, वंगदेशके महा कवि जयदेवजी उस समयमें प्रसिद्ध थे कि जि-नका बनाया गीत गोविन्दकाब्य परम विख्यात है, मीराबाई और उसके पति रानाको गीतगोविन्दका' व्यके पढनेमें बहुत रुचि थी. मीराबाईके बनाये हुये -सैकडों भजन वैष्णवमन्दिरोंमें गाये जाते हैं, मीराबाईकी कविता जयदेवजीसे कुछ कम नहीं है, मीराबाईको संसारके विषयोंसे वैराग्य था, मीराबाईने श्रीकृष्णसम्बन्धी अनेक तीर्थोके दर्शन मीराबाईने किये थे, इति / आगे ताराबाईका वृत्तांत संक्षेप रीतिसे लिखते हैं. P.P.AC.Gunratnasuri-M.S. Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. तारावाई. मीराबाई और ताराबाईके समयमें कुछही अंतर है | सोलहवीं शताब्दी (विक्रमीय) के आरंभमें ताराबाई प्रगट हुई थी, विजनौरके राय सूरसेनकी पुत्री ताराबाई थी, राजपूतानेमें सूरसेन एक छोटेसे राज्यका राजा | था, लैला अफगानने सूरसेनसे राज छीन लिया, केवल - विजनौर राजाके आधीन रहा, अपने पिताको राज्य। हीन होनेसे दुःखित और मलिन देखकर ताराबाईने स्त्रियोंका ऐसा व्यवहार छोडकर घोडेकी सवारी और धनुविद्या इस अभिप्रायसे सीखने लगी कि, अपने पिताका - राज जो अफगानोंने लेलिया है, उसको छीन लूं: कुमही कालमें ताराबाई धनुषविद्यामें परम प्रवीण होगई शीघ्रगामी घोडेको दौडते हुये पर सवार हुई. ताराबाई एसो फुर्तीसे बाण मारती थी कि, निशाना कभी नहीं कती थी, ताराबाईने एक वार अफगानों पर चढाई का, अपने पिताके संग ताराबाईभी एक काठियावाड GunmathasuriMI Jun Gun Aaradhak Trust Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154 स्त्रीचरित्र, घोडे पर चढकर गई. परंतु शत्रुओंकी सेना बहुत थो इस कारण ताराबाईके पिताका बल पौरुष कुछ काम नहीं आया, राना रायमलके तीसरे पुत्र जयमलने ताराबाईके साथ विवाह करनेकी इच्छासे सन्देश भेजा, परंतु उसने कह ला भेजा कि मेरा पति वही होगा, जो मेरे पिताके राज्यको अफगानोंसे छोन सकैगा; यह सुनकर जयमालने प्रतिज्ञा की कि, मैं तेरे पिताके राज्यको छीन दूंगा, परंतु आजसे तू मेरी स्त्री हो चुको, यह कह वंशमर्यादको छोडकर भेट करना चाहा, यह समचार - सुनकर राजाने जयभलका शिर काटडाला, तब जयमा लके भाई पृथिवीराजने प्रतिज्ञा की कि, मैं अफगानोंसे राज्य छीनकर राजाको दूंगा, तब ताराबाईको पा सकूँगा, यह सुनकर ताराबाईने स्वीकार किया, राजानेभी पृथिवीराजकी बातको मानलिया, पृथिवीराजने अफगा नोंपर चढाई करनेके लिये मुहर्रम महीना नियत किया, क्योंकि मुहर्रममें अफगानलोग ताजियोंके बनाने आर निकालने में लग जाते हैं. उसी नियत ममय पर पृथिर Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. 155 वीराज पाच सौ चुने हुये ज्वान लेकर अफगानों पर चढ गये, जब वे सब चौकमें ताजिया निकाल रहे थे, उसी समय पृथिवीराज एक वीरको संग लिये अस्त्रशस्त्रकसे शीघ्रतापूर्वक चले उनको जाते देख ताराबाईभी अपने स्वामीके साथ पुरुष वेषसे चली, पृथिवीराजने अपनी सेनाको बाहर छोड दिया और आप ताराबाई व वीरसमेत ताजियोंकी भीडमें घुसकर अफगान सर- दारके महलके नीचे तक पहुंचे, सरदारने जैसेही इन तीनोंको देखा तो वहांसे उतरकर किसीसे पूछने लगा कि ये तीनों परदेशी सिपाही कहांसे आये हैं ? यह कहनेही पाया था कि पृथिवीराजके भाले और ताराबाईके वाणने उसको वहीं गिरा दिया, फिर वह न उठा, सरदाके मारे जानेकी खबरभी लोगोंमें न फैकाने पाई थी कि वे तीनों बातकी बातमें नगरके फाटक पर पहुंच गये, वहां एह हाथी मार्ग रोके गडा था, उसको ताराभाइन अपनी प्रचण्ड खगके प्रहारसे भगा दिया. सो इस प्रकार कि ताराबाईने बल करके अपना खड्ग घुमा AC.GunratnasuriM.S un Aaradhak Trust Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 156 . स्त्रीचरित्र. कर हाथीके शुण्डमें मारा, तुरंत शुण्ड कटकर गिरगई हाथी प्राण बचाकर भागा, तीनों वीर वहांसे साफ निकलकर अपने साथियोंमें आय मिले, और सब फौजको लेकर धावा मारा सरदारके मारे जानेसे अफगान सिपाहियोंका उत्साह भंग होगया था, सब अपना अपना प्राण बचाकर भागगये, और जो शहरमें रहगये वे सब राजपूतोंके हाथसे मारे गये, इस प्रकार पृथिवीराजने अपने श्वसुरके राज्यको अफगानोंसे छीन लिया, चौदह. वर्षकी अवस्थासे तेईस वर्षकी अवस्था पर्यंत पृथिवीराजने अनेक कान बहादुरीके किये, पृथिवीराजके सालेने एक निरादरका बदला लेनेकेलिये मलावारस्थानके समीप मिष्टान्नमें विष मिलाकर दिया, आदरपूर्वक देने के कारण सालेके मिष्टान्नको पृथिवीराजने भोजन कर लिया, जब मायादेवीके मन्दिरके निकट पहुंचे तब विष चढन लगा, तुरंत पृथिवीराजने जान लिया कि छलसे हमार प्राण लिये गये, यह समझकर तुरंत अपनी रानीका कह ला भेजा कि शीघ्र आकर हमसे मिलो, हमाग Pharma P.P.AC..Gunratnasuri M.S.... . Gun Xaradhakrus Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Maina - - - भाषाटीकासहित. काल आ पहुंचा, सुधि पाकर रानी तारागई किलेसे | उतरने तक नहीं पाई कि पृथिवीराजका प्राण निकल | गया, तब अपने स्वामीके मृतक शरीरको गोदमें लेकर . तारागई सती होगई, राजस्थानमें ताराबाई और पृथिवीराजके नामको बडी प्रतिष्ठाके साथ लोग अब तक स्मरण करते हैं, इति. आगे रानी रूपमतीका वृत्तांत लिखते हैं. ... रूपमती. रूपमतीके माता पिताका हाल ठीक ठीक नहीं जान पडा, कि यह किसकी कन्या थी, यह कविता करने और गाने बजानेमें बहुत निपुण थी, उज्जैनसे पूर्वोत्तर (वायव्य) कोण 55 मील काली नदीके तट एक सारंगपुर नामक नगरमें उत्पन्न हुई थी. राजा वाज बहादुर जो अफगान मालवेमें स्वतंत्रता पूर्वक राज्य करते थे उनको भी आखेट और गाने बजानेका बडा व्यसन था, इसीसे | रूपमती पर बाजबहादुर मोहित हो गये, और उसको - अपनी मुरव्य बेगम बना लिया, उन दोनों में परस्पर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. 158 इतना स्नेह प्रेम बढा कि बाजबहादुर राजकाजसे अचेत होकर रात दिन उसीके संग भोग विलासमें रहने लगे, बाजवहादुरने अपनी प्रियाके निवास करनेको जो रंगमहल बनवाया था, उसको खंडरूप चिन्ह आज तक वहां मौजूद हैं, उन दोनोंके अगाध प्रेममें अकबर बादशाहकी राजतृष्णाने दैवी गधा डाल दो,विक्रमीय सम्वत् 1647 में अकबरने आदमखांको मालवा विजय करनेके लिये भेजा जब आदमखां दिल्लीसे सेना लेकर मालवे पर चढ आया, तव वाजबहादुरने शारंगपुरमें सेना इकट्ठी की, परंतु वाजबहादुरके सिपाही युद्धसमय तलवारका मुंह देखकर भाग गये, तो वाजबहादुरभी निराश होगया और खेत छोडकर चला आया, आदमखांने विना परिश्रमही हाथी, घोडे और खजाना तथा महलको अपने आधीन कर लिया, आदमखांने रूपमती के रूप और गुणकी प्रशंसा सुन रख्खी थी इस कारण चाहता था कि रूपमती हमारे हाथ लगे, परंतु आदम खांकी यह अभिलाषा पूरी न हुई, रूपमतीने विना वाज Ac. Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 159 बहादुरके अपना शरीर त्याग कर दिया, सच्ची वात तो | यह है कि सच्चा प्रेमी विना अपने प्रियतरके कैसे जी. वित रह सकता है ? रूपमतीके बनाये हुये राग मालवे में बहुत प्रीतिके साथ गाये जाते हैं प्रायः रहसलधारी और गाने बजानेवाले इन रागोंको कंठस्थ कर लेते हैं, रूपमतीकी कविता ठेठ - मालवी हिन्दी है, जो प्रेमरससे भरी हुई है, इति. - अब आगे दुर्गावतीका वृत्तांत लिखते हैं. दुर्गावती. रानी रूपमतीके ही समयमें दुर्गावती विख्यात हुई थी, दुर्गावती बुंदेल खंडके प्राचीन राजधानी महोवाके चन्देल राजाकी पुत्री थी, और गुढ मंडलेके गोंड राजाकी रानी थी, गोंडोंका राज अब अंग्रेजी अमल्दारी के सूवे नर्बदा और सागरमें मिला हुआ चन्देल राजको अपने उच्च वंशका बडा अभिमान है, गोंडोंकी जाति चन्देलसे बहुत छोटी है, जब गोंड राजाने चन्दे BAC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak toast Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 160 - स्त्रीचरित्रल राजकी लडकीके साथ विवाह करनेका संदेशा भेजा तो चन्देलराजाने कह ला भेजा कि यदि गोंड"राजा हमारी राजकुमारीके साथ चलने के निमित्त पचास सहस्र सेना जो आसकै तो मह उसको अ. पनी कन्या देना अंगीकार करेंगे यह सुनकर गोडराजाने सहजमें इतनी सेना इकट्ठी कर अपने साथ ली. और चन्दलराजकी कन्याको विवाह लिया यह गढ जबलपुरसे पांच मील दक्षिण दिशामें नर्बदासे दक्षिण तट पर बसा हुआ है, जो अंग्रेज बंबई होकर विलायत जाते हैं, वे इसी स्थानपर नर्वदा पार होते हैं, यहां पांच सीढीका सुन्दर घाट पत्थरका बना हुवा है, जिसमें थोडी थोडी दूर पर छोटे छोटे मन्दिर बने हुये हैं, तीन सौ वर्षके लगभग हुये कि गढमंडल का राज्य सौ मील चौडाई और तीन सौ मील लम्बाइम था, देशमें सब प्रकारका सुख वर्तमान था, इस राज्यम सत्तर हजार ऐसे गांव और नखर थे, जो किसी समयम परदेशियोंके आधीन नहीं हुये, तिस पीछे जब मरहला Jun-Gun Aaradhak Trust P.P.AC..Gunratnasuri M.S. Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / _ भाषाटीकासहित. * . 1610 का बल वढगयाथा तब मरहठोंने उस राज्यको नष्ट कर डाला था. - दुर्गावतीके विवाहके समय गढ महलेके राजाका ऐश्वर्य और राज बहुत बढा हुआ था. बडी प्रतिष्ठाके साथ रानी दुर्गावती उस देशमें राज करनेके लिये बिदा हुई, जहां उसका ऐसा दिव्य सुयश फैला हुवा है, जैसा यश वहां आज तक किसो राजकुलवाले नहीं फैला. इस राज्यके वन और उपजाऊ धरतीकी प्रशंसा सुनकर विक्रमीय सम्वत् 1621 में अकबरका एक सरदार फौज लेकर चढ आया, उस समय राजाका स्वर्गवास होगया था, और रानी दुर्गावती राजकाज सह्मालेथी. क्योंकि दुर्गावतीका पुत्र असमर्थ बालक था, रानी सात हजार सवार पन्द्रह सौ हाथी उपौर बहुतसे प्यादों को सेना लेकर मुसलमानोंके साथ युद्ध करनेको निकली, रानी भीलोहे की जाती पहिरे, वीं भाला लिये, धनुषवाण हाथमें लिये अपनी सेनाके बीचमें मो जूद थी, महाराणीको समरभूमिमें उपस्थित देखकर उस; Ac. Gunratnasuri M. - Jun Gun Aaradhak Trust : Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162. स्त्रोचरित्र. के सिपाहीजी खोलकर युद्ध करने लगे, दो वार यव नोंको अपने पराक्रमसे हटादिया, यवनोंके छे सौ सवार रणभूमिमें कटकर गिरगये, महारानीने विचार किया की शत्रुओंको अब हरा दिया है, रातको लढाई करके - इन्है भगा देवै, परन्तु सेनापतियोंका साहस नहीं हुवा की जो महारानीकी इच्छाके अनुसार शत्रुका पराजय कर, सके आसिफरखां इस हारसे लजित होकर तीसरी वार तोपखाने लेके चढा. रानीने पहाडके एक छोटेसे मा के मुह पर मोरचे गाडे, मुसलमान लोक दूसरे मार्गसे मैदानमें उतर आये महा रानीकी सेना युद्ध करनेका उपस्थित थी रानीके पुत्र ने दो वार ऐसी बहादुरास युद्ध किया कि मुसलमानोंके पांव उखड गये, तीसर घावेमें राजपुत्र घायल हो गया, बहुत रुधिर वहने के कारण मूर्छा आने लगी, जीवनकी आशा न रही, तव महारानीने आज्ञा दी कि कुवरको तम्बूमें ले जाआ, कायरोंको यह बड़ा अवसर भागनेका मिलगया, केवल -- तीन सौ सिपाही रानीको सेनामें रह गये, तोभी राना P.P.AC..GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust . Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A dStin भाषाटीकासहित.. 163 दुर्गावती रणसे नहीं हटो एक तीक्ष्णवाण महारानीकी - आंखमें लगा, रानीने शीघ्र उस बाणको पकडकर खीं चलिया, एक टुकडा लोहेका नेत्रमे रहगया, इतनेमें दूसरा तीर कंठमें आकर लगा, उसेभी खींचकर रानीने निकाल डाला हरंतु पीडा होने और रूधिर वहनेके कारण आंखके नीचे अंधेरा आने लगा, मूछा खाकर हाथीके हौदे पर ठिरने लगी, उस समय एक सरदारने कहा, महारानी! आज्ञा हो तो आपको रणसे बाहर ले - चलूरानीने उत्तर दिया कि थोडेसे जीवनकी आशासे रणसे विमुख होना हमको उचित नहीं है, यह कह रानीने कहा कि यदि तुम सच्चे स्वामिभक्त हो तो शीघ्र वा मारकर हमारे प्राण हर लो, यह सुनकर उस सरदारने फिर कहा कि मेरी सम्मती यही है कि आपको किसी सुरक्षित स्थान पर ले चलूं, रानीने जब देखा कि, सरदारका चित्त हमारे मारनेपर दुःखी होताहै और अश्रुपात करता है, तब रानीने शत्रुओंसे अपनेको धीराजान कर - मनमें विचार किया कि ऐसा न हो शत्रुलोग हमको Ac.Gunratnasuri M.S. Jur Gun Aaradhak Trust Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164 स्त्रीचरित्र. पकड लेवें, यह विचारकर अपनी छातीमें वर्ची मार ली. और प्राण परित्याग करदिया, शूर वीर लोग अपनी प्रतिष्ठाको अपने प्राणोंसेभी अधिक समझते हैं, जब महारानीने प्राण त्याग दिया तब सेनापति आदिकोंने अपनी स्वामिनीके मृतक शरीरके ऊपर युद्ध करके शत्रुओंके हाथसे कटकर प्राण त्याग किये और पीठ नहीं दिखाई, महारानी दुर्गावतीकी समाधि अबतक पर्वतोंके वोचमें बनीहुई है, जहां संग्राम हुआ था वहां दो खंभे पत्थरके खडे हुये हैं अर्धरात्रि समय भयंकर शब्दभी वहां कभी कभी सुन पडता है, जो पथिक वहां होकर निकलते हैं, वे विल्लौरी पत्थरके चमकीले टुकडे जो वहां बहुत पडे हैं,उनमें से एक दो टुकडे उठाकर महारानीकी समाधि पर चढाते हैं, और महारानीको स्मरण करते हैं, चांदवीवी. . महारानी दुर्गावतीकी देखा देखी अहमद नगर को चांदवीवीने भी मुंह पर पर्दा डाल, नंगी तलवार हाथम लेकर अपनी सेना सहित शत्रुओंके सन्मुख गई, आर .... pp.AC.GunratnasuriM.S. . un Cum Aaradhak Trus Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 165 मुगली फौजके साथ वडी बहादुरीसे मुकाबिला किया, | महारानी दुर्गावतीके तीन वर्ष पीछे की यह बात है, कि मुगलोंने अहमद नगरको घेर लिया, तब चांदवीवीने युद्ध करके अपनी प्रतिष्ठाको बचाया; दक्षिणमें आज तक उसको नामकी प्रतिष्ठा है, अब आगे जोधावाईका वृत्तान्त संक्षेप गीतसे लिखते हैं.... " जोधाबाई. जोधागई जोधपुरके राजा मालदेवकी बेटी और उदयसिंहकी बहन थी भाईने उसका व्याह अकबरशाहके साथ करदिया था, इस रिश्तासे केवळ वैरही नहीं मिटा, वरन जोधपुरका राज्यभी बहुत बडगया यह सम्बन्ध विक्रमीय सम्वत् 1626 में हुआ था, जोधाबाई अति_ रूपवती और गुणवती होनेके कारण अकबर की प्रधान बेगम थी, अकबर उसका बहुत सत्कार करते थे, कुछ मास बीत जाने पर जोधाबाई अपने पतिके संग - अभीउद्दीन चिस्तीकी समाधिके दर्शन करनेको पैदल गई अकबरशाहने यह यात्रा सन्तानके हेतु की थी, P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. जोधाबाई और बादशाह दोनों तीन कोस पैदल चलते और बरा बर सडक पर दरियों ओर गलीचोंका फर्श विछाया जाता था, जिससे वेगमसाहबके कोमल चरणोंमें कंकड व तृण आदि न चुमैं, परदा करनेके लिये सडकके दोनों ओर कनाते खडीकर दी जाती . थीं, जब समाधि तक दो पहुंचे और प्रार्थना की तो उसी रात्रि स्वप्न हुआ कि, फतेह सीकरमें चला जा. वहां एक साधु रहता है वह तेरी सेवासे प्रसन्न होकर तुझको सन्तान होनेका वर प्रदान करे. इस स्वप्नके अनुसार अकबर फतेहपर सीकरीमें गया वहां पहुंचकर शेखसलीम नाम साधुकी सेवा करने लगा. उसने प्रसन होकर जोधाबाईसे कहा कि तेरे उदरसे एक तेजस्वी पुत्र प्रगट होगा, और ईश्वरकी कपासे बहुत काल तक जीवित रहेगा, परमात्माके अनुग्रह रानी गर्भवती होगई, पुत्रोत्पन्न होने पर्यंत वहीं साधुकी कुटीके समीप रही, जब राजकुमार जन्म हुआ, तो उसका नाम साधु के नामपर मिर्जासलीम रक्खा गया, जो जहांगीर P.P. Ac. Gunrafnasuri M.S." Jun Gun Aaradhak Trust Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. - 167 बादशाह नामसे प्रसिद्ध हुआ. जो कुछ सुख चैन आ। र्यावर्त निवासियोंको अकबरके राज्यमें प्राप्त हुआ, वह जोधाबाईके उदार चित्त, यथा, धर्म और शीलताके ही प्रभावसे हुआ बादशाह और उसके मुख्य मंत्रियोंके सब प्रबंध और कामों में उस प्रतापवती रानीके चित्तकी वृत्ति झलकती थी, जब अहमदनगर फतेह होजाने उपरांत सम्वत् 1657 विक्रमीयमें जोधाबाईका परलोक होगया, तो अकबरने आज्ञा दी कि. सव समीपवर्ती मुखिया लोग दाढी मूछ और शिरके बाल मुडावें, और शोकचिन्ह धारण करें इस आज्ञाके अनुसार सक्ने ऐसा ही कि, जोधाबाईके चिर स्मरणार्थ अकवरने उसके स्थान पर एक सुंदर समाधि वनवाई थी, जहां गोरोंका पर हुआ करता है; आगरेमें उस परेट स्थानके खाली करनेके अर्थ सरकारने उसको मुरंग लगा कर उडवा दिया, साथही समाधि उडगई. पीछेसे सरकारने जाना कि यहां जोधाबाईकी समाधि थी तो सरकारने बहुत पश्चात्ताप किया. अकबर बादशाहको राजा मेवाडकी . P.P.AC. Gunratnasuri M.S..... jun Gun Aaradhak Trust Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168 स्त्रीचरित्र. वेटी (पृथिवी राजकी स्त्री) नेभी अपनी वीरतासे शिक्षा दी थी, जिस्का वृत्तांत हम वीर नारी नामसे आगे प्रगट करते हैं. इति.... .. पीरनारी. वीकानेरके महाराज रायसिंहके भाई पृथ्वीराजकी रानी जिसको हमने यहां वीरनारी नामसे लिखा है, वीरनारीने अकबरको जिस प्रकारसे शिक्षा दी सो वृत्तान्त आगे लिखाजाताहै. पृथ्वीराज राजा अकबरके दरबारमें एक सरदार था, और महाराणा प्रतापसिंहका परम मित्र था, जिस प्रकार राजपूत शूर वीर और साहसी होते हैं उसी प्रकार राजपूत बालामेंभी वीरस्वभाववाली होती हैं, इसीके उपलक्ष्यमें यहां वीरनारीका चरित्र लिखा गया है, सो इसप्रकार कि बादशाह अकबरने अपने निवास मंदिरके नीचे ‘सानमेकी ओर एक जनाना मीना बाजार लगवाया, जि. * समें दिल्ली नगरकी प्रतिष्टित स्त्रियांभी सौदा खरीदनेक ___ लिये आया करती, अकबरने अपनी दोचार दृतियाका CUPal P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 169 - भाषाटीकासहित. बाजारमें छोड रक्खा था कि जो कोई सुन्दरी बाजारमें आवै, उसमें से जो आसकै हमारे पास लाया करो इस प्रकार अनेक सुन्दरियों के लती त्वको अकबरने भंग करदिया, धीरे धीरे अकवरके इस दुश्चरित्रकी खबर सबको पहुंचगई परंतु किसीकी क्या मजाल थी जो कुछ कह सकता, एक दिन पृथिवी राजकी रानी अकवरको शिक्षा देनेकी इच्छासे मीना बाजारमें पहुंची, अकबर जो चिककी ओटसे बाजारमें आई हुई स्त्रीको / देख लेता था, पृथ्वीराजकी स्त्रीको बाजारमें आया दे! खकर उसके मनोहर रूप पर मोहित होगया और वि चार करने लगा कि यह सुन्दरी आज हाथ आवै तो / अहो भाग्य है, इतनेमें एक वृद्धा स्त्री उस रानीके पास आकर बातचीत करने लगी. वृद्धा-बेटी, तुम किसी वडे घरानेकी जान पडती - हो, यदि तुमको बाजारकी सेर करना है तो आओ हम तुमको सैर करा दें, क्योंकि यह बाजार बहुत वडा है, तुम नाहक भटकती फिरोगी..' Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust 02 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 170 स्त्रीचरित्र. . रानी-आप कौन हैं ? वृद्धा-मैं इस शहरकी रहनेवाली हूं, कोई नंगी लुची नहीं हूं, किसी प्रकारसे डरो मत, मैं तुमसे कुछ - सवाल नहीं करूंगी. गनी-(मनमें)जान पडता है कि इसी दूतीके द्वारा अकबर अपनी प्रणित इच्छाको पूर्ण करता है, यदि परमात्माकी कृपा है तो आज अकबरको भलीभांति शिक्षा दूंगी. - वृद्धा-(मटककर) बेटो! तुप्म किस सोच विचार में पडी हो ? मैं तुमको ऐसी सैर कराऊंगी कि तुम खुश हो जाओगी. .रानी-कुछ सोच नहीं है, तुमारी भलमनसतके विचारमें होगई कि इस समय तुमने मुझ पर बड़ा कृपा की. - वृद्धा-यह आपकी मेहरबानी है मैं किसीका दिल नहीं हूं यह कह रानीको सैर कराती हुई वादशाही महलके P.P.Ac: Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust .. Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. | एक अंधेरे रास्तेसे लेगई, रानीके साथकी सखियां | छूटगई, वृद्धा उस रानीके साथ लिये अकबरके सुसजित कमराके समीप पहुंचगई, जहां अकबर उत्कष्टित भावसे इधर उधर घूमता वाहरकी ओर देखता हुआ विचार कर रहथा कि हाय ! मैं इतना बडा शाहन्शाह | मेरे यहां दुनियांके ऐशो इशरतके सब सामान मुझे हैं, मगर मेरे दिलको एक दमभी रहत नहीं. शबो रोज फिक्र, लहज वलहज तरबुदात रोज नई ख्वाहिशै, रोज नये हौसिले हाय ! इन गुलवदनोंकी चाहने तो मुझको पागलही बना दिया है यहां वावला सा घूम रहा हूँ मगर अब तक सिवाय हसरतके कुछ हाथ न आया इतनेमें रानीके पैरकी आहट सुनकर कहा, जान पडता है कि वीनसीरन हमारे गुले मुरादको लिये आ रही हैं, द्वार खुलगया वृद्धारानीका हाथ पकड खींचती हुई भीतर लाई और बोली. - वृद्धा-उम्रो दौलतकी खैर तरकिए जाहो हशमत .. मुरादें भरपूर लौंडी दुआगो अवरुखसतकी तलवगार P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust, Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 172 स्त्रीचरित्र.. है रानीको छोडकर वृद्धा चली गई, तब रानीके पास आकर. अकबर-प्यारी ! इधर आओ जरा आराम फर्माओ किस सोचमें हो, देखो यह वह शाहन्शाहे देहली सिजकी निगाकी कोर दुनियाके बादशाह देखते रहते - हैं, आज तुमारे कदमोंकी गुलामी की ख्वाहिश करता हाजिर है. " रानी-(मुंह फेरकर रूखे स्वरसे बोली) देख अकबर तू बहुत बडे सिंहासन पर बैठा है ऐसे दुष्कर्मोंसे इस राज्य सिंहासनको कलुषित न कर और मुझे अभी मेरे घर पहुंच दे. :: अकबर-(रानीका हाथ पकडना चाहा तब रानी हाथ झटककर हटगई ) अकबर बोला ऐ जाने जा इस नीम जां को अब न सताओ, तुमारे इस जां निसारन तुमारी नाजनी अदापर फिदा होकर एक कवित्त तस नीफ किया है उसे जरा सुन लो. .P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 173 सवैया. / 'शाह अकब्बर बालकि वाह अचिन्त गही चल भीतर भौने / सुन्दरि द्वारहि दृष्टि लगायके भागिवेकी भ्रम पावत गौने // चौकत सो सब ओर विलोकत संक सकोच रही सुख मौने / यों छवि नैन छबीले के छाजत मानो विछोह परे मृग छौने' // 1 // - रानी-(क्रोधसे ) रे नराधम दिल्लीपति कुलांगार मैं राजपूत वाला हूं मेरा अंग स्पर्श न करना नहीं तो अभी तुझे तेरे अपराधका दंड दूंगी. अकबर-(हाथ जोडकर) नहीं नहीं खफा होनेकी बात नहीं हैं, देखो यह नौ लखाहार यह वेशकीमत चम्पाकली यह वेवहा मोतियोंका सतलडा ये सब एकसे एक उमदा जवाहिरात सब तुह्मारी नजर हैं और यह दिल्लीका बादशाह हमेशाके लिये तुम्हारा गुलाम है P.P.AC..Gunratnasuri M. Jun Gun Aaradhak Trust. Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174 स्त्रीचरित्र. आज अपनी जरासी मेहरवानगीकी निगाहसे इस बादशाहतको विला कीमत खरीद सकती हो. - रानी (लाल लाल आई कर निर्लजभावसे बोली) क्यों रे नर पिशाच ? तू मेरी बात न सुनेगा ? क्या तेरा कालही तेरे शिर पर नाच रहा है ? क्या आज मुझीको नरपति हत्यासे अपना हाथ अपवित्र करना होगा, सुन मैं तेरी सब दुष्टता सुन चुकी हूं और आज तेरे हाथसे निर्वाध राजपूत बालाओंके सतीत्व रक्षार्थ मैं तैयार होकर आई हूं तुझसे फिरभी यही कहती हूं कि अपनी इस नीचताके कामको छोड और अपने कर्तव्यको देख यह सुनकर अकबरनने रानीकी बात पर कुछभी ध्यान न दिया और रानीका हाथ फिर पकडना चाहा, तब रानीने झपटकर झट. अकबरको पकडकर. धरतीपर पटकदिया, और फुर्तीसे छपाये हुये कटारको कमरसे निकाल अकबरकी छाती पर बैठ हां कती हुई बोली, .. रे नराधम ! जो तू मानताही नहीं, तो आज तेरा यहा निफ्टीरा कीये देती हूं, और तेरे बोझसे पृथ्वीको हलका / Ac. Gunratnasuri.M.S. GueAaradhat Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. 175 करती हूं, यह कह कटारको अकबरके गलेके पास ले गई. / अकबर-(आर्तस्वरसे) तोबा तोबा में हाथ जोडता हूं, मुझे मत मारना, खुदाके लिये मेरी एक बात सुनलो. - रानी-कह, क्या कहता है ? अकबर-मैं अपने गुना होके लिये सख्त नादिम हुआ, मेरा कुसूर माफ करो, मेरी जांवख्दी करो, मैं खुदाकी - कसम खाकर कहता हूं मुझे मेरी उम्रना तजुर्वा कार और दुनियावी यारोंने धोखा दिया में अब तक इस पाकदामनी, इस बहादुरी इस नेक चलनीको कभी रवावमेंभी न सोच सकाथा. मेरे ख्यालमें औरतोंका | रकीकदिल तमाके फन्देमें फांसना आसन था, वह पर्दा आज दूर हुआ, मुझे वख्शिये लिल्लाह मुझे वखशिये, अब कभी किसीके साथ ऐसी गुनाह सरजद न होगी. रानी-मुझे तेरी बातका विश्वास कैसे हो ? हाय - जिन राजपूत वीरोंकी सहायतासे आज तुझे यह प्रताप P.P.AC.GumratnasuriM.S. Gun Aaradhak Trust Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 176 स्त्रीचरित्र. हुआ है, रे कुलांगार उन्हीकी बहू बेटियों पर हाथ डालते तुझे लाज नहीं आती धिक्कार है तुझको ! - अकबर-आप मुझ नापाक गुनह गारको जितन धिकार दें वजा है, मगर याद रक्खें यह हुमायुका वेटा __ अकबर जब कि खुदाय पाकके नाम पर आज अहद - करता है अगर कभी फिर उससे यह गुनाह हुआ, तो इस दुनिया में मुंह न दिखायगा, अब मुझे ज्यादा न शर्मायें, और मेरी जां वरशी करैः - रानी–देख तू वडा वादशाह है, मेरे स्वामीने तेरा नमक खाया है, इस कारण आज तुझे छोडे देती हूं परन्तु समझ रख, तेरा राज्य केवल राजपूतोंको वाहूवलसे है, यदि आज पीछे कभी तेरी यह हरकत सुननेमें आयेगी तो सारे राजपूतानेमें तेरे इस भेदको खोल दूंगी, और एक दिनमें राजप्त मात्रको तेरा वैरी वनाऊंगी, यह कहकर वीर नारीने अकबरको छोडदिया.. अकबर-(रानीके पैरों पर गिरकर ) मैं आपके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Juh Gun Aaradhak' Trust Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 177 इहसानसे कभी सुवुकदोष नहीं हो सकता, आपने न सिर्फ आज मेरी जां वरशी की, बक्ति मुझे बहुत बड़े गुनाहसे बचाया, मेरे ऊपर जैसे इतना करम हुआ, यहभी वादा फर्माया जायर कि यह भेद किसीसे जाहिर न किया जायगा और मेरी गुनाह मुआफ फर्माई जाय. रानी-मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि, यह भेद किसीसे न प्रकाश करूंगी. परंतु मैं गुनाह मुआफ करनेवाली कौन ? उस करुणामय जगत्पिताकी सच्चे जीसे क्षमा प्रार्थना कर वही तुझे क्षमा करेगा. यह सुन घुटनेके वल वैठकर अकवर क्षमा प्रार्थना करने लगा और रानी कटार लिये अलग खडी होगई. - अकबर तोबा करता है. -. हहा मैं गुमराह जिन्दगी भर इलाही तोबा इलाही तोबा / चला न नेकी हाय रहपर इलाही तोबा इलाही तोबा // दी इस लिये मुझको बादशाही कि तेरे वन्दों 12.A Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 स्त्रीचरित्र. को पहुंचे राहत / बले किया मैंने जुल्म इनपर इलाही तोबा इलाही तोवा // रहा लगा नफस पर्वरीमें न दिल दिया दाद गुस्तरीमें / पडे मेरी अक्ल पर ये पत्थर इलाही तोबा इलाही तोबा. // वहाना जासिम कुशीका करके किये बहुत मुल्क फतह हमने / वले किये जोर उनपः वदतर इलाही तोबा इलाही तोबा // भला हो इस हूर पारसाका उठाया आंखोंसे जिसने प-रदा / है जिस्त ए माल मेरे एक सर इलाही तोबा इलाही तोबा // हुआ है दा मन गुनाह यों तर किगर निचुड जाय - वह जमीं पर / तो इब जाऊं मैं उसमें ता सर इलाही तोबा इलाही तोबा // फकत P.P.Ac. Gujaratnasuri M.S: jun Gun Aaradhak Trust... Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भाषाटीकासहित. 179 तेरे वखशिशो करमका है एक भरोसा मुझे तोबा ताबा // - इस प्रकार अकबर क्षमा प्राथां कर चुका तब वीर नारो अपने घरको चली गई, अकबर एक कमरामें एकांत | वैठकर सोच विचार करने लगा. हाय ! मैं इतने दिनों तक किसतारीकी में था, इतनी उम्र किस गुनह गारीमें विताई, इलाही इस अपने वन्दे पर करम कर. अब इस दिले वेचैनको सब अदाकर... खुदा या “एवज न कर मेरे जुर्मों वेहदका। इलाही तुझको गुफूरुल रहीम कहते हैं / कही कहें न उदू देखकर मुझे मुहताज। यह उनके वंदे हैं जिनको करीम कहते हैं / _आहा ! दर हकीकत उसके बराबर कौन करीम है, अपने वन्देको गुमराह देखकर आज इस पाकदामन औरतके जरियेसे कैसी नसीहत दी उफ वलाकी तेजी ग,जवको दिलेरी कैसा खुदाई नूर था ? क्या यह वाकिआ P.P.AC.Gunratnasuri M.S.... Jun Gun Aaralihak Trust Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रकभी भूलनेका है ? हर्गिज नहीं, अगर मेरी यह हर्कत इसी तरह जारी रहती, और यह खबर बहादुर गज पूतोंके कान तक पहुंचीती, जरूर था कि हमारी सल्तनत पर जावाल आता आहा ! उस जनोवधारोकी हर्गाहमें किस जुवासे शुक्रया अदा करूं ? उसकी वेहद शफकतका किस मुहसे क्या करूं ? आहा ! कैसे मुसीवतके वक्तमें इस नाचीजकी पैदा यश हुई, ओफ ! उस संगदिल चचाकी सक्खि क्या कभी भूल सकती है, उस वक्त खुदाय पाकने कैसी मुश्किलात आसान की ! फिर से यह तरन्त तो ताज वखशा खान वावाकी वगावत जिस वक्त याद आती है, दिल कांप उठता है, मगर वाह रे मुश्किलाकुशा अपने इस बच्चाकी वात उस वक्त कैसी रक्खी ? अहा हा ! हिन्दु मुसल्मानोंके रिश्तेदारीकी बुनियाद कैसी उमदा डाली गई हैं, अगर इसमें पूरे तोर पर का मयावी हुई तो खान्दान तैमरिया कभी हिन्दोस्तानसे नहीं हट सकता मगर वाह रे भगवान दास, तेरे बराब .P.P.AC.Gunratnasuri M.S: Gun Aaradhak Trust - Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 181 दरन्देश कोई काहे को पैदा होगा. हमारी पूरी चाल न जमने पाई, जो कही हमारे घरकी लड़कियां, हिंदुओंके घर जाती तो सव काम वन जाता, फिर तो इन्हें मुसल्मान वनानेमें कुछभी देर न थी, मगर उस दानिश मन्दने इस चालको तोडलिया, अच्छा कुछ मुजायक नहीं जाते कहां है जो चाल चली है, उसीको तरकी होनेका नतीजा वहभी होगा. मगर यह हिंदुओंका मुल्क है, यहां हिंदुही वसते हैं, इनकी वहादुरीका मुकाविला दुनियांमें कोई कौम नहीं कर सकती, हालांकि इस वक्त इन पर जवाल है, मगर कव खुदाताला. किसको. उरूज देगा, इसका कौन ठिकाना ? इस लिये जब तक इनके दिलसे मुल्मानासे नफरत न दूर की जावेगी. जव तक इनके दिलमें विरादराना नुहब्बत न पैदा की जायगी; तव तक मुमकिन नहीं कि मुसल्मानी सल्तनतको कयाम हो, और 19 तब तक मुमकिन नहीं. जब तक कि मजहवीजोश जहवा खयालात इनके मजबूत हैं, मगर क्या वजार AIGUBatasun Jun Gun Aaradhak Trust Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 182 स्त्रीचरित्र. - शमशेर इनका मजहवी खयाल तवदील होसकता है, हर्गिज नहीं, बल्कि खौफ है, कहीं उल्टी आग न भभक उठै, इसको मिटाने, इनको मुसल्मान वनानेकी अगर दुयियांमें कोई तदवीर है तो यही कि इनसे नाता रिश्ता वढाकर इनके दिलसे अपनी तरफसे नफरत दूर करना, इनके मजहबकी तारीफ करके इनकी मजहवी तकरीवोंमें शिरकत करके इनकी निगाहमें खुद हिंदू वनकर कुल परहेजोंको दफा करना, हाय, हमारे ना आकवत अन्देश मुसल्मान भाई हमारी इस दूरन्देशी पर तो खयाल करते नहीं, और हमहींसे नाखुश होते हैं. हों- मगर मैं अपनी इस चालको नहीं तवदील कर सकता... अकबर अगर तुझपर खुदाकी मेहरवानी हो और पूरी उम्र आता हो तू सावित करके दिखला कि तैन मुसल्मानी सल्तनतकी मेख हिंदमें किस कदर मजबूती के साथ गाडी है, और इन काफिरोंके मजहवमें दीन इस्लामिया की वू किस तरह मह कर दी है, इस प्रकार P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust. Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. विचार करते वादशाह अकबरके हृदयका भाव तथा वीर नारीकी वीरताको पाठक जन स्वयं समझ लेंगे. इति ... अब आगे रानी मृगनयनीका संक्षिप्त वृत्तान्त लि खते हैं. मृगनयनी. शाह जहां बादशाहके समयमें अर्थात् लडाई सौ वर्षके लगभगकी बात है. कि गान विद्यामें परम गुणवती महाराणी मृगनयनी गुजरात देशके महाराजाकी.. परम प्रिय पुत्री थी, और गवालियर के तोमर वंशीय राजा मानसिंहकी रानी थी, खड्ग रावन अपने इतिहासमें लिखा है कि, राजा मानसिंहकी दो सौ रानियोंमें सबसे अधिक रूपवती गुणवती, शीलवती, रानी मृगनयनी थी, राजाको गानविद्यामें अति प्रेम था, और रानी मृगनयनी गानविद्यामें बहुत प्रवीण थी, आजतक किसी राजकुलमें ऐसी परम प्रवीण रानी कोई नहीं हुई, मृगनयनीके निकाले हुये चार प्रकारके राग 1 गुजारी, 2 वहील गुजारी, 3 मंगल गुजारी, 4 माल PP.AC. Gunratnasuri-M.S. Jun' Gun Aaradhak Thusk Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 184 स्त्रीचरित्र... गुजारा; ये नाम प्रसिद्ध है दक्षिण देशमें इन रागोंकी वडी प्रशंसा है, आश्चर्य नहीं कि महारानी मृगनयनी को प्रशंसा सुनकर गानविद्याके परमाचार्य तानसेनजी गवालियरमें आये हो, वही अब उसकी समाधि वनी हुई है, गानविद्याही एक मोहनी मंत्र है, इस विद्याकी प्रतिष्टा इस देशमें बहुत कुछ थी, परंतु मुसलमानाकी देखा देखी अब इस देशवालेमी गान विद्याको नीच मानने लगे है, आज कल राजा सुरेन्द्रलाल कलकत्ता नीवासीने गानविद्याके उद्धार निमित्त बहुत यत्न किया है, कई पुस्तक उन्होंने इस विषयमें लिखकर वंगला भाषामें प्रसिद्ध किये है, और एक पाठशाला भी इस विद्याकी वृद्धिके निमित्तं स्थापित कीहै, इति / . - अब आगे राजकुमारीका संक्षिप्त वृत्तांत लिखते है. - राजकुमारीराजवाडमें राजधानी रूपनगरकी राजकुमारी जो राजकुमारी होके नामसे प्रसिद्ध थी, उसके प्रसिद्ध होनेका यह कारण था कि, वह अत्यन्त रूपवती थी, P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. , Jun Gun Aaradhak Trust Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 185 औरंगजेब बादशाहने राजकुमारीके साथ विवाह करनेकी इच्छासे उसको दिल्ली ले आनेके लिये चुनेहुये दो हजार सवार रूपनगरको भेजे और आज्ञा दी कि राजकुमारीको जल्द दिल्ली ले आओ, यह समाचार पाय राजकुमारीने मुसलमान बादशाहके साथ सम्बन्ध करनेसे घृणा करके राजा राजसिंहको एक पत्र लिख | भेजा कि आप यदि मुझको इस दुष्ट म्लेक्षसे बचा / सके तो बहुत अछी बातहै, मुझ राजहंसिनीको वगुलेकी स्त्री होना स्वीकार नहीं है, आप राजहंस हो आपको | यही योग्य है कि मुझको अपनी वना ओ, और क्षत्रि-:.. | यधर्मका परिपालन करो यदि शीघ्र आकर मेरेको इस | दुष्टसे नहीं छडावेंगे तो मैं अपना प्राण शीघ्र त्याग | दूगी. इस प्रकारका पत्र पातेही राजसिंहजी अपने चुने Jहुये सवारोंको साथ ले अवली गिरिके नीचे नीचे अचानक रूपनगरमें पहुंचगये, और बादशाहकी फौजको मारकर भगादिया, और राजकुमारीका डोला साथ लेकर अपने राजको लौट आये, तात्पर्य यह कि स्त्रियों P.P. Ac. Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak Tru Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्त्रीचरित्र, को जात्याभिमान कितना अधिक है, इसीसे स्त्रियोंका सत्कार अधिक होता है, इति। - अब आगे इन्दुमती रानीका वृत्तांत लिखते हैं: इन्दुमती. उजैनकी लडाईमें महाराजा जसवन्तसिंह राठौरने औरंगजेब और मुरादकी मिलीहुई सेनासे अपनी विजय न देखकर विचार किया कि हमारे साथ केवल चार पांच सौ सिपाही रह गये हैं अव युद्ध करके प्राण देना है, इस कारण अपने नैहरको लौटकर दूसरा उपाय करना चाहिये, यह विचारकर लौटा, रानी इन्दुमतीने सुना कि, मेरा पति समरभूमि त्यागकर आता है, तो नगरके फा: टक बन्द करवा लिये, और कह ला भेजा कि मैं महाराणा उदयपुरकी पुत्री हूं, तू महाराणा उदयपुर ऐसे ते. जस्वी और प्रतापवान क्षत्रीका जवाई होनेके योग्य नहीं है, और जो रणमें पीठ दिखावै, क्या वह मेरा पति कह ला सकता है, तुझको योग्य था कि या तो रणमें शत्रुका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 187 जीतकर लौटता, या समर भूमिमें शत्रुके सन्मुख लड। कर प्राण दे देता, अब तू इस नगरमें आनेके योग्य नहीं हैं, क्योंकि मैं कायरका मुख देखना नहीं चाहती, द्वारपालोंसे कहा कि उस कायरको फाटकके भीतर नहीं आने देना, जिस समय रानीने सुना कि शत्रुकी सेना बहुत है, मेरा स्वामी जीत नहीं सकता, उस ससय रानीने निश्चय करलिया था कि मेरा पति रणमें पीठ नहीं दिखावेगा, अवश्य शत्रुकी सन्मुख युद्ध करके लड मरैगा.... - यह निश्चय कर रानीने एक चिता वनवा रक्खी थी कि सुनतेही जलकर भस्म हो जाऊंगी, जव रानीने सुना कि मेरे पतिने रणमें पीठ दिखाई है, तब पतिको अनेक दुर्वचन कहे, और पतिके आनेका निषेध करके एक सप्ताह पर्यन्त कोधमें आकर पड़ी रही; जब रानाकी माता उदयपुरसे आई, और समझाया वुझाया कि तुमारा पति दूसरी बार सेना लेकर जायगा, और अपनी पहली हारका बदला लूंगा, राजधर्ममें लिखा है कि अपनी हार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust .. Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 188 स्त्रीचरित्र जानकर राजाको योग्य है कि रणसे लौट आवै और सैन्य संग्रह करके दुवारा युद्ध करे और शत्रुको जीते. - यह सुनकर रानीका क्रोध शान्त हुआ, इस वृत्तान्तसे पाठक गण अनुमान करें कि राजपूत स्त्रियां कैसी शूर वीर और साहसयुक्त होती हैं, इति / - आगे उन्नीरकी रानीका वृत्तांत लिखते हैं गुन्नीरकीरानी. भूपालके समीप गुन्नीरकी रानी राज्य प्रबन्ध करती थी, मुसल्मानोंने रानीके रूपकी प्रशंशा सुनकर अपना मन चंचल किया, और छलसे उसके राज्यको अपने अधिकार में करलिया, जिस मुसल्मान सरदारने भूपालके वर्तमान राजकुलको नींव डाली थी और गुन्नीरका राज्याधिकार छलसे अपने अधिकारमें कर लिया उसकी यह इच्छा हुई कि में गुन्नीरको रानीको अपनी स्त्री वनाऊं, गुनौरके राजमहलके नीचे खडे होकर रानीको वुलवाकर पूछा कि तुम हमारे साथ व्याह करोगी या P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित... 189 नहीं, सो जल्द जबाब दो, रानीने यह विचार किया कि यदि मैं इन्कार करूंगी तो यह दुष्ट मुझको वलात्कार ले जायगा, इससे ऐसा उपाय करना चाहिये कि जिससे मेरी मर्यादा रहे और काम भी वनजाय यह सोचकर रानीने उत्तर मिया कि खां साहब मैं आपके साथ ब्याह करूंगी परन्तु एक पहरभर तक का समय | दीजिये कि जिससे मैं व्याह का सव सामान तैयार | कर लूं, मियां साहब यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुये फूले | अंग न समाते थे, एक पहरभर तक का समय देकर आप | चले आये. | रानीने एक चबूतरा सजाया, और सुन्दर वस्त्र और एक दिव्य माला, पगडी और पगडो पर अमुल्य रत्नका एक तुर्रा लगानेको मियां साहबके पास भेजकर | कहा कि, आप आइये, मियां पहनकर आये और उस बबूतरे पर विठाये गये, उस समय कामातुर होकर मियां - साहस वारम्वार रानीको और देखकर प्रेमसनी वातें करते 1, थाडी ही देरमें मियां साहब का रंग विगडने लगा, "P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. - Jun Gun Aaradhak Trust. Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 190 स्त्रीचरित्र. सारा खेल भंग होगया, मुख नीला पीला पडने लगा, प्याससे जल जल पुकारने लगे, मुर्छा आने लगी, पंखा होने लगा, ऊपर गुलाब छिडका गया, रानीने मुख खोलकर खां साहबसे कहा,ऐ खां साहब आपका अन्तसमय आगया, आप खूब विचार कर लें कि जो कोई पुरुष पतिव्रता स्त्रीको और कुदष्टि से देखता है उसकी यही गति होती है, आपका और हमारा विवाह होनेवाला था, सो विवाह तो न हुआ, परन्तु मृत्यु एक साथ होगी, - अपने हमारा धर्म लेना चाहा, तो मैंने यही उपाय - सोचा कि अब दूसरी रीतिसे अपने धर्मकी रक्षा करना चाहिये, सो आपके अपने किये कर्मका फल पाया, यह कहकर रानी सबके देखते देखते किलेकी गुमटी परसे नर्वदा नदीमें कूदकर बमरी और मियां साहव सिसक कर मरगये, क्योंकि कपडोंमें विष भरपूर था, उसकी वायुसे खांसाहवके शरीरमें विष व्याप्त होगया था, मियांसाहवकी कवर भूपालकी सडक पर एक और वनीहुई, अनेक लोगोंका विश्वास है कि इस कवरक P:P.AC. Gunratmasuri.M.S... Jun Gun Aaradhak. Trust .. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ भाषाटीकासहित 191 दर्शनसे तिजारीका ताप शान्त होजाता है, इस | वृत्तान्तसे विचार कर लेना चाहिये कि यवनलोगोंने इस देसके निवासियोंको कैसा सताया, अनेक पतिव्रताओंके प्राण लिये, अनेक स्त्रियोंको वलात्कार अपनी वेगम बनाया, अनेक स्त्रियोंको वेगम वनानेकी इच्छासे उनको पृथ्वीमें चुनवाकर शिर कटालिया, अनेकोंके सामने उनके पिता माता पति आदिको मारकर वेगम बानाना चाहा, तो भी उन्होंने बेगम होना अंगीकार न किया, और अपना प्राण दिया, कहां तक यवनोंकी कुचाल पर विचार करते हुये लेखनी रुक जाती है, इति / - अब आगे अहल्याबाईका वृत्तान्त लिखते हैं: - अहल्याबाई. - अहल्याबाई भरतखंडकी महाराणीयोंमें सबसे अधिके विख्यात है, विक्रमीय सम्वत् 1782 में सेधियाके P.P. Ac. Gunratnasurin . Jun Gun Aaradhak Trust Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 192 स्त्रीचरित्र - राजकुलमे हुवा था, अहल्याबाई बहुत रुपवती तो न थी, .. परंतु उसके मुख पर एक दैवी तेज झलकता था, शरीर का रंग सांवला, और डील डाल बहुत ऊंचा न था, न बहुत छोटा था, अहल्याबाईको देखकर उसके मुख पर भोलापन और साधुत्व दर्शता था, परमात्माने अहल्याबाईको रूपवती वनानेके वदले दिव्य गुणोंसे विभूषित किया था, जिन गुणोंके सामने बाहिरी रूप आदि तुच्छ माने जाते है:___ अहल्याबाई विद्यावतीभी ऐसी थी कि जिसने माहा राष्ट्रीय मल्हाररावके वडे राज्यका प्रबन्ध तीस वर्षपर्यन्त अत्यन्त सावधानी और न्याय धर्मके साथ किया, इस मरहठी महारानी अहल्याबाईका विवाह मल्हारराव हुलकरके पुत्र खांडेरावके साथ हुआ, परन्तु खांडेराव अपने पिताके सामनेही मालीराव नामक पुत्र और मच्छाबाई नाम्नीपुत्रीको छोडकर सुरधाम सिधार गये थे, खांडेराव नामक पतिके मरनेके समय अहल्यावाईकी * अवस्था वीस वर्षको थी, अहल्याने विधवा होनेपर P.P.AC..Gunratnasuril Jun Gun Aaradhak Trust Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. विधवाओंकासा आचरण करना प्रारंभ किया, श्वेत ! वस्त्र धारण करती दुई, वाईने एक मालाके सिवाय सब आभूषणोंको परित्याग करदिया, इन्द्रियोंके सुख निमित्त सब सामग्री उपस्थित थी, परंतु बाईने संसारिक सर्व विषयोंसे अपने मनको हटा लिया, अहल्याबाई अपने मनको रोककर नियमधर्मसे पुराणादिकोंका पाठ करती थी, मल्हाररावकी मृत्यु हुये पीछे अहल्याका पुत्र मालीराव गद्दीपर विठाया गया, परन्तु वह गद्दी बैठनेसे एक वर्षके भीतरही मृत्युको प्राप्त हुआ, मच्छाबाईका विवाह दूसरे कुलमें हुआ था, इस कारण अहल्याबाई गद्दीकी अधिकारिणी हुई..... - मल्हाररावके मुख्य मंत्री गंगाधर जसवन्तने विचार किया और सम्मतिप्रकाश की कि अहल्याबाई अपने कुलमेंसे किसोको गोद लेकर गद्दीपर विठा दे, परंतु इस बातको अहल्याबाई स्वीकार नहीं किया, आपही राज्यका भार उठाया, तब गंगाधरने बाईको गद्दी न बैठने देने पर बहुत कुछ उपाय किये परंतु कोई उपाय .Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 194 स्त्रोचरित्र. काम न आया, बाईने अपनी सेना सजाकर युद्धकी -तैयारी की और विचार किया कि जो मेरेको आवश्य कता होगी तो रणक्षेत्रमें चलकर स्वयमेव शत्रुके साथ युद्ध करूंगी, अन्तको किसीने कान तक नहीं हिलाया . अहल्याबाईने गद्दीपर बैठकर पहलेही दिन सब द्रव्यपर संकल्प छोड दिया, और तुक्काजी हुलकरको सेनापति निमत किया, गंगाधरने यद्यपि बाईके साथ द्वेषभाव किया था, तथापि वुद्धिमतीबाईने पूर्वराजभक्ति और सेवाका विचार करके उसके दोषपर कुछ ध्यान न किया, और तथावस्थित दीवानीने कामपर नियत किया.. . अहल्याबाई मेवाड और मालवेके सव सूवोंका प्रबंध आपही करती थी, अहल्यावाईका सव कामधर्म और न्यायपूर्वक होता था, अहत्यावाईकी अभिलाषा यही रहा करती थी कि प्रजा सुखचैनसे रहे और देशमें सव प्रकारसे सुखसमृद्धि हो, तथा सबके धन व प्राणका सर्वतो भावसे रक्षा रहे, अहल्यावाई अपने साथ सेना P.P. Ac. Gunratnasuri M:S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भाषाटीकासहित. नहीं रखती थी, उसको दृढ विश्वास था कि, मेरी प्रजा पूर्ण राजभक्त है, अपनी प्रजामेंसे किसीकोभी अन्यायदृष्टि से नहीं देखती, और प्रजाकी वृद्धिमें सदा उद्योग करतीहुई प्रसन्न रहती थी. - इस प्रतापवती महाराणीके राज्यमें गोडोंने लूटमार कारण छोड दिया, उन सबको वह सन्तुष्ट रखती थी कभी कभी किसी किसी अन्यायी और हठी गोडको दण्ड शिक्षाभी देती थी, अपने मतसे विरुद्ध मतवाले कोभी कृपादृष्टिसे देखती हुई अहल्यावाई धर्मराज्य करती थी, किसीको दुःख नहीं था, इसके प्रवन्धमें कभी कसी प्रकारका उपद्रव नहीं उठा, एक वार महाराणा उदयपुरने अहल्याबाईके राज पर चढाई की, महाराणी अहल्याबाई ऐसी वीरतासे लडी कि महाराणाके छक्के छूटगये और सन्धिका प्रस्ताव किया, अन्तको महाराणीने अपने उदार स्वभावसे दयालु होकर सन्धिको स्वीकार कर लिया, महाराणी अहल्यावाई अपने कर्मचारियोंकों वदलती नहीं थी, क्योंकि राजकर्म चारियोंको वदलने P.R.AC..Gunratnasuri.M.S:.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 196 स्त्रीचरित्र. में भी प्रायः उपद्रव उठनेका भय रहता है, अहल्याबाईने जव तक राज्य किया तब तक केवल एकही दीवान गोविंद पंडित गन्नू रहा, खंडेराव बरावर वीस वर्ष पर्यन्त इन्दौरका प्रवन्ध करता रहा. वाईके वकील श्रीरंगपट्टन नागपुर, हैदरावाद, पूना और लखनऊ आदि नगरोंमें रहते थे, उसका लेन देन भारत वर्षके दूर दूरके राजा महाराजाओंसे रहता था, वाईने अनेकगढ़ और काटे बनवाये, बहुत साधन व्यय करके विन्ध्याचलका पहाड काटकर सडक निकाली है, सब सब राज्यभरमें वाईने लाखों रूपये लगाकर देवमन्दिर धर्मशाला और पक्के अनेको कुवां बनवाये, काशी, प्रयाग, द्वारका जगन्नाथ, सेतबंधरामेश्वर, केदारनाथ आदि प्रायः सबही तीर्थस्थानोंमें बाईने मन्दिर बनवाकर सदावृत नियत करदिया था, जो मन्दिर आज तक बने हुये हैं, काशीपुरीमें विश्वेश्वरनाथजीके मन्दिर पर ओ सुवर्ण महागया था, इन्दोर नगरनदी दाहिने -- तटपर था, परंतु विक्रमीय संवत् 1827 में बाइन P.P.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. नदीके वायें तटपर अव नवीन नगर वसाया है, बाईका नियम था कि प्रातः साय दोनों कालमें पूजन पाठ किया करती, और नियत समयपर कथाभी सुनती थी, अपना समय व्यर्थ नहीं होने देती थी, एक एक पल अपना नियमित कार्यमें विताती हुई परमात्माको मध्यास्थ मानकर सब राजकाज न्याय पूर्वक करती थी, उसकी जातिमें मांसभक्षणका निषेध नहीं है, परन्तु वाई परम वैष्णव थी, सच है जो मनुष्य उत्तम बुद्धिके हैं वे मासको कदापि उत्तम पदार्थ नहीं समझते हैं. अहल्याके समयमें तथा अवभी वहां विशेष पर्दा नहीं किया जाता, इसीसे अहल्याबाई दरवारमें वैठकर न्याय करती हुई सब दीन दुखियों तककी वातको ध्यानपूर्वक सुनती थी, और यथोचित सबको प्रसन्न रखनेकी चेष्टा रखती थी, दीन दुखियों तथा शास्त्रानुसार समय समय पर दान करनेमें अहल्यावाईका नाम प्रायः जगतभरमें विरव्यात था, अधिक क्या लिखा जाय नबाब निजाम P.P.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र दक्षिणवाला, व टीवसुलतान आदि सब बाईकी प्रतिष्ठा करते थे, बाईका विरोधी कोईभी न था. - अहल्यावाईने वुढापेमें कई एक कठिनायां झेली, इकलौता बेटा मरगया, और एक मात्र पुत्री मच्छावाई थी, उसके पतिया जब देहांत हुआ, और वह अपने पतिके साथ सती होनेको उद्यत हुई, तब माता (अहल्यावाई ) ने बहुत कुछ समझाया बुझाया कि हमारी तूही एक मात्र आधार है, अपनी वृद्धा माताकी और तेरेही निमित्त है मच्छाबाईने उत्तर दिया, हे माता; तुमारी मृत्युके दिनभी अब निकट है इस कारण कुछ थोडे दिनोंके लिये मैं जीवन धारण करना नहीं चाहती, पति सुखसे बढकर जगत्में दूसरा सुख नहीं है, आप जानती हो कि स्त्रीका सर्वस्व धन एक पतिही है, यदि परमात्माकी कृपा होती, तो मेरा सुख क्यों उठा लेता ? संसारसे उठ जानेका अवसर इससे वढकर फिर '.P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 199 मुझको कभी प्राप्त न होगा, इस कारण मेरे इस शुभकायमें विन्द डालना आपको योग्य नहीं हैं, - इस प्रकार सुनकर जब अहल्यावाईने देखा कि समुझाये बुझाये से नहीं मानेगी, तव लाचार होकर सती होनेकी आज्ञा देदो, अर्थी और सतीके साथ वाई नंगे पवि चिता तक आई, सती होनेके समय वाईको दो ब्रम्हण पकडे खडे थे, महादु .से वाईको छातो फटी जाती थी, कई वार वाईने चाहा कि चितामेंसे प्यारी लडकीको खींच लूं परंतु वह कहां, वातकी वातमें सती सहित दोनों शरीर भस्म होगये, वाई पछाड खाकर गिरपडी, और अचेत होगई, कुछ देरके उपरांत सावधान होनेपर लोगों वाईको नर्वदामें स्नान कराया, और घर ले आये, तीन दिन पर्यन्त वाईने मारेदुःखके अन्न जलको त्याग किया. मुख लपेटे एकान्तमें पड़ी रही, फिर कुछ सोच समझकर सावधान हुई और चित्तमें सन्तोष करके सतीके चिर स्मरणार्थ एक दिव्य मन्दिर वनवा दिया... वाईका हृदय दयासे परिपूर्ण था, हजारों लाखों Ac:Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust. Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 स्त्रीचरित्रः मनुष्योंका उपकार बाईके हाथसे होता था, बाईका नाम -सब प्रजाके हृदयमें अंकित था, घर घरमें बाईकी प्रशंसा होती थी, बाई अपनी प्रशंसाको सुनकर प्रसन्न नहीं होती थी, एक विद्वान पंडित बाईकी प्रशंसा में एक ग्रन्थ बनाकर ले गया, उसको बाईनें ध्यानपूर्वक सुना, और कहाकी मैं एक पापिनी स्त्री हूं, इस योग्य नहीं कि जो तुमने मेरी इतनी प्रशंसा लिखी, यह कह उस ग्रन्थको नर्बदामें डुबे देने की आज्ञा देदी, और पंडितको ग्रन्थ बनानेके परिश्रममें धन देकर बिदा किया, और कह दिया कि पंडित जी ? मनुष्यकी व्यर्थ प्रशंसा करने में अपना अमूल्य समय न विताया करो. - अकबर ऐसा बुद्धिवान था कि जिसकी प्रसंसा बहुत लोग करते है, परन्तु उसनेमी अपनी झूठी प्रशंसा क स्नेवालोंकी जिव्हा न पकडी, अचुकफजलने जो वृथा -प्रशंसा अकबरकी लिखी, उसको देख सुनकरमी अक बरने कुछ न कहा, और अपनी झूठी प्रशंसावाले ग्रंथको रहने दिया, परन्तु इस बातमें बाई कहीं बढकर हुई. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Gun Aaradhak Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 201 * अहल्याके समान भारतवर्षमें ऐसी धर्मावतार और उदारहृदय स्त्री दो हजार वर्षके बीच उत्पन्न नहीं हुई, जिसनें तीस वर्ष पर्यंत धर्मराज्य किया, विक्रमीय संवत् 1841 साठि वर्षकी अवस्थामें वाईका स्वर्गवास हुआ, इस मृत्यु लोकमें बाईका नाम शेष रहगया, इति। - अब आगे कृष्णकुमारीका शोकमय वृत्तान्त संक्षेप गतिसे लिखते हैं: कृष्णकुमारी. राजस्थानके सब राजाओंमें उदयपुरके महाराजाका वंश सबसे उच्च माना जाताहै, कृष्णकुमारी महाराणी उदयपुरकी कन्या थी, इसका जन्म विक्रमीय संवत् 1848 हुआ था, कृष्णकुमारीका मृदु भाषण, मंन्दगमन ऐसा मनोहर था कि प्रायः लोग उसको राजस्थानका कमल कहते थे, कृष्णकुमारी अति रूपवती थी, कृष्णकुमारीका विवाह जोधपुरके महाराजके साथ ठहरा परं M P.P.Ac:Gunratnasuri M.S. . . Gun Aaradhak Trust Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 न्तु विवाह होनेसे पहलेही महाराजका शरीर छूटगया अनन्तर जयपुरके माहाराजने कृष्णकुमारीके साथ विवाह करनेके लिये संदेशे भेजे, तिलक चढनेके सामग्री तैयार थी, इतनेमें जोधपुरकी गादीपर बैठेहुये दूसरे महाराजने कह ला भेजा कि कृष्णकुमारीके विवाहका विचार पहलेही इस राज्यके अधिपतीके साथ ठहर चुका है, इस कारण हमारे साथ उसका विवाह होना चाहिये, एक राजकुमारीको व्याहनेके लिये इस प्रकार दो राजा तुम हमारे साथ कन्याका विवाह नहीं करोगे तो हम तुमारे राज्यके विध्वंस कर डालेंगे, यद्यपि राना वंश और पदवीमें इस राजाओंसे बडा माना था, परन्तु उस समय इतना पौरुषवल नहीं था, जो इस राजाओंके सन्मुख ठहर सकै, और युद्ध करके जीत सकै वे दोनों राजा अपनीहो सेना बरन लुटेहरो और वट मारोंको इकठ्ठा करने लगे, उहोंने उदयपुरके राज्यमें लूट मार मंचादा, P.P.AC.Gunratnasuri M.S Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 203 कि क्या करें, अमीर उद्दीन जो अति कठोर हृदय और निर्दयी था उसने राजाको यह सम्मति दी कि तुम क्यों इतने बखेडेमें पडे हो, जिस लडकीके सब वस यह बखेडा उठा उसीको खतम करदिया तो सारा झगडा मिटजाय इस सम्मतिको सुनकर राजाको बडा दुःख हुआ, परंतु अन्तको उस म्लेक्षके मतमें आकर राजाने इस हत्याको उचित समझा, राजाको उस समय यह योग्य था कि एक बलवान राजाके साथ कुमारीका विवाह करके उसको अपना सहायक बना लेता, और दूसरेको परास्त कर देता, क्योंकि एकको दो राजा मिलकर परास्त कर होने लगा कि कौन इस कामको करै ? परन्तु वधिक नहीं मिलताथा, रानाका एक रिश्तेदार भाई समझा बुझा कर इस कामके लिये ठीक किया गया, परंतु जब वह बी लेकर राजकुमारीको मारने के लिये महलमें पहुंचा तो उसका हाथ उस सुन्दरी मनमोहनीके मारनेको नहीं उठा, घवराहटसे वर्ची हाथसे छूट पडी, और स Ac. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. ब भेद खुलगया, तब वह लज्जित होकर लौट आया कृष्णकुमारीकी माता उस निरपराधिनी कन्याके मारने वालोंको सहस्रों दुर्वचन कहने लगी, और रोने लगी, परन्तु वह वोर कन्या अपने पितावंश और देशके हेतु आपही मारनेको उद्यत होगई, अनन्तर कृष्णकुमारीको - वीसे मारनेके बदले विष देनेका विचार किया गया, एक रोतेहुये सेवकने रानाकी आज्ञासे विषका प्याला लाकर कृष्णकुमारीके हाथमें दिया, कृष्णकु. रोने अपने मनको दृढ करकै पिताकी आयु धन सम्पत्तिको वृद्धिके निमित्त परमात्माकी प्रार्थना करके उस विषको पीलिया, और आंखोंसे एक आंसू तक * नहीं निकला, जब माता उसके वधिकोंको दुर्वचन - कहती, तो कृष्णकुमारी समझती, हे माता तुम क्यों इतना शोक करती हो, क्या मैं तुह्मारी पुत्री नहीं हूं जो मृत्युसे भय करूं, पिताजीकी अत्यन्त कृपा थी, जो मुझे इतने दिनों तक जीता रक्खा इस प्रकार अनेक बात कहकर माताको समझाती थी, जब एक प्यालास Gun Aaladlak Trust P:AC.GunratnasuriM.S. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 205 कृष्णकुमारीके प्राण नहीं निकले, तब दूसरा प्याला विषका दिया गया,उससेभी उसका प्राण नहीं निकला, तब रानाने उसको तीक्ष्ण विषसे भरा हुआ तीसरा प्याला दिया गया, तब कृष्णकुमारीने उस तीसरे प्यालेको हाथमें लेके कहा कि मेरा जीव ऐसा निर्लज होगया, जो बार बार विष देनेसे भी नहीं निकलता यह कह उस विषको पी लिया, उसको नशेमें वह भोली राजकुमारी | ऐसी सोई कि फिर नजागी, और संसारसे सदाके लिये उठगई, उसका नाम सदाके लिये अमर होगया, क्योंकि सोलह वर्षकी कन्या इतना साहस होना छोटी बात नहीं हैं. - कृष्णकुमारीके इस प्रकार मृत्युका समाचार सुनकर सब प्रजा महारानाको धिक्कराने लगे, कृष्णकुमारीकी माताने कन्याके वियोगमें नित्यप्रति रोते रोते पागल होके अन्न जल त्यागदिया, और थोडेही दिनोमें मरगई, अब तक कृष्णकुमारीके इस शोकमय वृत्तान्त कह सुनकर प्रायः लोग आंसू वहाया करते है, इति / - - P.P.AC..Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 206 स्त्रीचरित्र. आगे बैजाबाईका संक्षेप वृत्तांत हम लिखते हैं. वैजाबाई. बैजाई एक मरहठे सरदार दीवान श्रीजीराव घट केकी पुत्री थी, उसके भाईका नाम हिन्दूराव था, हिन्दूरावकी तसबीर दिल्लीके अजायवखानेमें अब तक लटकती है, उसके देखकर बैजाबाईके रूपका अटकल हो सकता है, बैजाबाईका विवाह दौलतराव सेंधियाके साथ - बडी धूमधामके साथ हुआ, यहां तक कि सेन्धियाका कोष (खजाना) ऐसा खाली होगया कि फौजको तलब (पगार ) तक चुकानेमें कठिनाई होगई; बैजाबाई बडी उदार चित्त और वीर स्त्री थी, सेन्धिया उसका बहुत आ- दरसत्कार करती, यहां तक कि विना उसके पूंछे कोई काम नहीं करता था, विक्रमीय सम्वत् 1885 में जब . महाराज सेन्धियाका परलोक होगया. तब वैजाबाई 2 कोई पुत्र व कन्या न थी, इसकारण बैजाबाई स्वयं .. गद्दी पर बैठे और राज्य करने लगी. वैजाबाईका इच्छा थी कि अपने पिताके वंशमेंसे किसीको गोद ले P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gun Aaladnak Trust Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 207 कर अपनी गद्दीपर बिठावे, परन्तु कई कारणोंसे अपनी इच्छाको सफल न कर सकी, अन्तको बाईने विना मन अपने पतिके एक रिश्तेदार सुगतराव नामक ग्यारह वर्षके बालकको गद्दीपर बिठानेके लिये गोद लिया, जब तक वह बालक असमर्थ रहा तब तक बाईने बडी बुद्धिवानी के साथ राजकाज सम्हाला, परन्तु राजकाजके योग्य होने पर सुगतरावने गद्दीपर बैठनेके लिये वाई से प्रार्थना की तब बाईने अपने होते उसको गद्दीपर बिठाना स्वीकार नहीं किया, और यह कहा कि मेरे मरने उपरान्त तू इस गद्दीपर बैठ सकैगा, एक दिन सुगतराव महलसे निकलकर सरकार अंग्रेजके रजी डंटके पास भागकर आया और सब समाचार कहा; बाई और मुगतरावका युद्ध होना अच्छा न समझकर अंगरेजने वीचमें पढकर उनका यह निपटेरा कर दिया कि यथार्थमें सुगतराव गद्दीका स्वामी है, बाईने तो गद्दीपर बिठानेके लियेही गोद लिया था, उसके समर्थ होनेपर क्यों न गही दी जाय, इस प्रकार निवटेरा होकर विक्रमीय संवत् P.P.Ac. Gunratnasuri M:S. Gun Aaradhak Trust Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 208 स्त्रीचरित्र 1880 में सुगतराव अलिजाह जनकुजी सेंधियाकी पदवीसे सुशोभित होकर ग्वालियरके राज्यसिंहासनपर विराजमान हुये, बैजाबाईने अपना सब द्रव्य औरनौकर चाकर लेकर आगरेमें निवास किया, परंन्तु ग्वालियरके इतने समीप रहने पर सबको भय था, कि राजसेनाको पकडाकर बाई कुछ उपद्रव न खडा करै यह विचार आ पडनेपर सरकार अंगरेजने बाईके उच्च पदके अनुसार पेंशन नियत करके फरुखाबाद रहनेकी आज्ञा दी, कुछ समय उपरान्त दरबार ग्वालियरने इस शर्तके अनुसार राजकी आमदनीमेंसे बाईको वार्षिक देना स्वीकार किया कि, वह दक्षिणमें अपनी जागीरमें जाय वसै, बाईने यह शर्त मंजूर कर ली, और वही, ईसवीमें जब उपद्रव हुवा उस समय वाईने वागियोंसे सेंधियाके कुलवालोंकी रक्षा की, और उनके प्राण वचाकर छिपरा नदीके किनारे भाग गई, अनन्तर कुछही दिन उपरान्त वाईका परलोक होगया. P.P.AC: GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भाषाटीकासहित. 209 वैजावाईको मूर्ति मनमोहनी थी, और मुसक्यान ऐसी मधुर थी कि जिसको देखतेही मन हरण होजाता था, वृद्धावस्थामें बाईके सब केश श्वेत होगये थे कि जिससे वाई ऐसी जान पडती थी कि मानों इस सुवर्णके कामकी गद्दीपर बैठी हुई बाई साक्षात् जगदम्बा है, बाईके हाथे पांव बहुत छोड सुन्दर और सुडौल थे, गद्दीके समीप सेन्धियाकी तलवार रक्खी रहती थी ___ विधवा होनेके कारण बाईके हाथमें सुवर्णकी चूडीके सिवाय और कोई आभूषण नहीं रहता था, बाईके एक दैवी ज्योति देदीप्यमान थी, यह वैजाबाईका संक्षिप्त वृत्तान्त लिखा गया, इति / .. अब आगे रानी चन्दाका वृत्तान्त लिखते हैं. रानीचन्दा. रानी चन्दा पंजाब केसरी महाराज रणजीतको छोटी, स्त्री और दिलीपसिंहकी छोटी माता थी, बहुतसे मनुष्य अबभी ऐसे होंगे जिन्होंने रानी चन्दाको आने Ac. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 210 स्त्रीचरित्र. नेत्रोंसे देखा होगा, महाराज रणजीतके परलोक गये पीछे दिलीपसिंह छोटा था, विक्रमीय संवत 1880 में दिलीपसिंह अपने पिताकी राजगद्दीपर विठाया गया, उस समय उसकी अवस्था केवल पांच वर्षको थी, राजकाजके प्रबन्धके निमित्त हीरासिंह दीवान नियत हुआ, उस समय तक रानाने देशके प्रवन्धमें हाथ नहीं डाला था, दीवान हीरासिंहके मारे जानेपर जवाहिरसिंह दीवानपदपर नियत किया गया, परन्तु वहभी खालसाके फौजके सिपाहियोंके हाथसे मारा गया, तब तो रानीकी आखें खुली और सब काम अपने हाथमें करलिया, और पुत्रके नामपर स्वयं राज्य करने लगी, वह दखारमें बैठकर सब काम आप करती थी, विक्रमीय सम्बत् 1902 में रानीने लालसिंहको दीवान और तेजसिंहको सेनापति नियत किया, महाराज रणजीतसिंहकी मृत्यु होनेके उपरान्त खालसा सिक्खोंने हाथ पांव फैलाये, वे तो रणजीतसिंहसे दबते थे, यद्यपि रानी सावधानोके साथ राजकाजकरती थी, तथापि Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 211 भाषाटीकासहित. खालसा सिक्खोंसे भयभीत रहती थी, रानीने विचार किया कि इस दुष्ट उपद्रवी सेनासे देशको बचानेके लिये अन्य देशोमें चढाई करनेके वहाने उसे बाहर रखना उचित है, यह विचार कर रानी चन्दाने लाहौरको दुष्ट खालसा सिपाहियोंके उपद्रवसे रक्षा करनेके हेतु उन्हें काशी, देहली, लूटनेको बहार भज दिया, रानीका यथार्थ विचार यह था कि अपने दुष्ट उपद्रवी सिपाहियोंको अंगरेजों द्वारा नष्ट कराकर अपना प्राण बचावें, अंगरेजोंसे विरोध करना रानीको अभीष्ट न था, परन्तु फल उलटा हुआ, आधेसे अधिक सिक्रव कटगये और सब पंजाब अंग्रेजोंके आधीन होगया, परन्तु लार्डहारडिंगने तुरन्त उसको अंग्रेजी राज्यमें नहीं मिलाया. दिलीपसिंहको गद्दीपर बिठाये रक्खा, और एक जका किया, और रानी चन्दाको डेढ लाख रुपया वार्षिक देना नियत करके यह शर्त स्वीकार करा ली कि, P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 312 स्त्रीचरित्र. अंगीकार तो करनाही पडा, परन्तु रानीको इस प्रकार चुपचाप समय बिताना कब अच्छा लग सकता था, कुछही दिनोंके उरान्त रानी अपनी अप्रतिष्ठा और होनतापर अप्रसन्नता प्रगट करने लगी, अनन्तर अनेक उपद्रव उठते देखकर सरकार अंग्रेजने विचार किया कि रानीको पंजाबमें रखनेसे उपद्रव शान्त न होंगे, यह विचारकर एक दिन अचानक अपनी सेनाको रक्षामें रानीकै सलजतके पार उतारकर काशीमें ले आये, यद्यपि रानोके देशनिकासी होनेसे सिक्खोंको अच्छा नहीं लगा तथापि अंग्रेजोंने ऐसा प्रबन्ध कर रक्खा था कि कोई कानतक न हिला सका, कुछही दिनों बाद रानी चन्दा भागकर नेपालको चली गई, जिस प्रकार औरंगजेबके बन्दीखानेसे सेवाजी महाराज निकल आये थे. इसी प्रकार रानी चन्दाभी निकल आई, सरकार अंग्रेजने बार बार सरदार नेपालसे निवेदन किया कि, रानीचन्दाको भेज दो, हम उसको विना लिये न छोडेंगे; परन्तु सरदार नैपालने अपने धर्म और न्यायके विरुद्ध बातको M Gunaradiek Frus P.P. Ac. Cunrathasuri M.S. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. .. 213 स्वीकार न किया, क्योंकि शरणागतकी रक्षा न करना धर्म और न्यायके विरुद्ध हैं, सरदार नैपालने कह ला भेजा कि हम आप उसकी सावधानी रक्खेंगे, अंग्रेजोंको रानीसे कुछभी भय न करना चाहिये, अन्तमें रानीने अपने मनमें सन्तोष कर लिया, और अंग्रेजी राज्य पंजाव भरमें स्वतंत्र होगया, अंग्रेजोको रानीसे कुछभो भय नहीं रहा, पंजाबमें रानी चन्दाहो सब इतिहासोंमें प्रसिद्ध है, इति / -- आगे झांसीकी रानी लक्ष्मीबाईका वृत्तांत लिखते हैं.. - लक्ष्मीबाई. लक्ष्मीवाई बुंदेले राजा गंगाधररावकी रानी थी, जो विक्रमीय सम्वत् 1909 में एक लैपालक पुत्रको छोडकर मृत्युको प्राप्त हुये, उस समय अंगरेजो राज्यका वह गवर्नर जनरल था, जिसका यह विचार था, कि, सारे भारत वर्षमें केवल एक अंग्रेजीही डंका बजना चाहिये, यह निर्वल छोटे छोटे राज्य रखनेसे कुछ काम नहीं, परंतु P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 214 -स्त्रीचरित्र. एक साथ सबसे राज्य छीने लेनमें चारों ओर उपद्रव झोनेका भय है, इससे यह उपाय करना चाहिये कि जो राजा विना सन्तानका मरजाय, उसके पीछे किसी को गोद बैठाया हुआ पुत्र बनाकर गद्दी न दी जाय वह राज्य सरकारी राज्यमें मिला लिया जाय, ऐसे सिद्धान्तवाले लार्डके समय में ही नागपुर और सितारेके राजाओंका परलोक हुआ, उनका राज्य सरकारी राज्यमें मिला लिया गया, यह अन्धेर देखकर सब शजालोग काँप उठे कि बस एक हमारा प्राचीन राज्य इसी प्रकार अन्यायसे छोन लिया जायगा, परन्तु विकमीय सम्वत् 1914 सन् 1857 ईसवोके उपद्रवने इन्है बतला दिया कि, समयपर वही अंगरेजोंके सच्चे सहायक हो सकते हैं, और यथार्थमें वही उनके राज्यके स्तम्भ है, लार्ड कैनिगसाहब बहादुर गवर्नर जनरल हिन्दने उपद्रव शान्त होनेके उपरान्त दरबारोंमें सब राजे महाराजे और नवाबोंको इस बातकी सनदें दे दी कि आगेको तुम्हारा किसीका राज्य सन्तान न होनेपर स Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 215 रकार जप्त न करेगी, जबतक तुम सरकारके शुभ चि. न्तक वने रहोगे, तुम्हारा राज पीढी दर पीढी वना रहेगा, इस प्रकारसे उन सबका भय दूर कर दियागया... . लक्ष्मीबाईने सरकारसे अपनी गोद बैठाये हुये पुत्रको गद्दी देनेके लिये निवेदन किया, परंतु लार्ड डिलहौसीने (जो इस विचार में था कि सारे भारतवर्षका राज्य छीनकर सरकारी राज्यमें मिला लिया जाय ) रानीके निवेदनको अंगीकार नहीं किया, बिचारी रानी निराश होकर घर बैठे रही, सब माल असवाव उससे छीन लिया गया, तब रानी नित्यके आवश्यक खर्चकोभी नहीं चला सकी, और दुःखी हुई, जिन महाजनोंका रुपया झांसी राज्य परथा, उन्होनें नालिश की, तो सरकारने आज्ञा दि कि, महाजनोंको रानीकी पेंशनसे रुपये काद, कर दिये जाय, तब बिचारी पराधीन रानीने पश्चिमोत्तर देश लफ्टनेंट गवर्नरके यहां निवेदन किया कि, ऋणका रुपया राज्यहीके ऊपरका है, वह अब आपके आधीन है उसीकी आमदनीमें से चुका दिया जाय, मेरी तुच्छ "P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Gun Aaradhak Trust Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 216 स्त्रीचरित्र पेन्शनमेंसे कहां तक पूरा पडेगा. उसमेंसे काटकर आप क्या निहाल होंगे, पेन्शनका रुपया मेरे खर्च तक कोभी पूरा नहीं पडता, परन्तु रानीके निवेदनको सरकारने न सुना, तब तो रानीके क्रोधका ठिकाना न रहा, रानीसे सोचा कि कोई ऐसा अवसर मिलै जो इनसे इस अन्याय का भलो भांति वदला लूं. इस वातके तीन वर्ष उपरान्त सिपाहियोंका वलवा हुआ, तब रानीने झांसीके सिपाहियोंका वहका कर वागी बनाया, उन्होंने 4 जून सन 1857 को शरण आये हुये सब अंग्रेजोंको कुटुम्व सहित ... काट डाला, केवल एक मनुष्य उनमेंसे जीता बचा, किया था, यद्यापि यह हत्या रानांके शिरपर रक्खी जाती है तथापि विचार करनेसे ऐसा जान पडता है, रानीका अभिप्राय यह न था कि वे लोग मारे जाय, नहीं तो वह डाक्टरभी जीता नहीं रहने पाता, अनन्तर रानीने नये सिरेसे झांसीका राज्य स्थापित किया, __ और समझ लिया कि एक दिन अवश्य युद्ध करना Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 217 पडेगा, यह समझकर रामचन्द्ररावके समयकी वीस तोपें गडी हुई पृथ्वीसे विकलबाई, और चौदह हजार मनुष्योंकी सेना इकट्ठी की, एक वर्षभी नहीं व्यतीत होने पाया था कि अंगरेजोंकी फिर जय होने लगी, और 25 अप्रैल सन 1858 ईसवीको झांसी घेर लीगई, चारों ओरसे गोली वर्षने लगो, झांसोके सिपाही वडी शूरतासे लडकर कटने लगे, स्त्रियां तक तोपखानोंमें काम करती थीं, तोन हजार सिपाही रानीके महलोको रक्षाके निमित नियत थे, अन्तको अंग्रेज बहादुरके प्रति दिन वढते हुये ऐश्वर्य और प्रतापके सामने रानीको अत्यन्त सावधानो, वीरता, पौरुष, साहस और बुद्धिवानी कुछ न चली, दूसरे दिन झांसी और तीसरे दिन गढ विजय हुआ, परन्तु कुछ सच्चे स्वामिभक्त सवारोंकी सहायतासे रानीबचकर गढसे निकलगई, अनन्तर दो हाजार आदमियोंकी फौजके साथ कालपीकी सडकपर और 25 मईको वहांसे चलकर ग्यालियर टनके उपरान्त वह छिपरा नदीके किनारेको ओर Gun Aaradhak Trust Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 218 स्त्रीचरित्र. भागी, परन्तु मार्गमें मुरारमें एक अंगरेजी फौजसे युद्ध हुआ 17 जून सन् 1858 ईसवीको रानी लडाईमें बडी वोरतासे लडते लडते कट मरी उसके पीछे उसको सब फौज तितर वितर होगई चार तोपैं उस दिन अंगरेजोंके हाँथ पडी, निस्सन्देह यह स्त्री भारतवर्ष में इस समय वडी वीर और बुद्धिमती हुई, रानोको वीरताके विषयमें अनेक गोत उस देशमें प्रसिद्ध हैं, इति / आगे महारानी स्वर्णमयीका कुछ वृत्तान्त लिखते है, महारानी स्वर्णमयी. .. काशिमवाजारको स्वर्णमयी महाराणी जिस गद्दीपर विराजमान हुई, दीवान कृष्णकान्त नदीका स्थापित किया हुआ है यह दीवान वरन होस्टंगस गवर्नर जनरलकी कृतज्ञता और कृपा करके जिसके प्राण उसने एक कठिन समयमें वचायें थे, वडे अटूट धन और समर्थको प्राप्त हुआ। - दीवान कृष्णकान्तको गवर्नरजनरलने पहले सरकार P.P. Ac. Gunratnasuri M RU Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. से गाजीपुर और आजमगढके जिलेमें दो वडी जागीरें दिलवाई, और देशमें उसके वंशकी प्रतिष्ठा बढाने के लिये कृष्णकान्तके पुत्र लोकनाथको राजा बहादुरकी पदवी प्रदान की, बाबू कृष्णकान्त दीवानका परलोक विक्रमीय सम्वत् 1845 में हुआ, यह कासिमबाजारकी राजगद्दीपर तेरह वर्ष तक विराजमान रहे, विक्रमीय सम्बत् 1861 में बहुत समयसे रोगी होने के कारण लोकनाथ परलोकवासी हुई, उस समय लोकनाथका पुत्र हरीनाथ के समर्थ होनेपर सन् 1825 ईसवी तारीख 26 फरवरीको राजा बहादुरकी पदवी सहित राज्य अरलआवएमहर्सट साहबने उसको सौंपदिया, कुमार हरीनाथजीने धर्म के अनेक कार्य किये, सन् 1832 ईसवी विक्रमीय सम्वत् 1888 में हरीनाथकाभी देहान्त होगया, हरीनाथका पुत्र कुमार कृष्णनाथ बहुत छोटा था, सन् 1840 ईसवी तथा विक्रमीय संवत 1881 तक सरकार इस राज्यका प्रबन्ध करती रही, सन् 1840 ईसवी विक्रमीय सम्वत् 1888 में . P.P.AC.GunratnasuriM.S.. . .. Jun Gun Aaradhak Trust, Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. 14 जानेवारीको अरल आव ओकलेराड साहवने राजा बहादुरकी पदवी समेत कृष्णनाथको राज सौंप दिया, -राजा कृष्णनाथ रायबहादुरने वडी उदारता दिखाई, जब -किसी कारणसे कृष्णनाथने 31 अक्टूंबर सन् 1844 ईसवी विक्रमीय सम्वत् 1901 में आत्मघात किया, तब सरकारने इस राज्यपर अपना अधिकार करलिये अन्तको कृष्णनाथजीकी धर्मपत्नी महाराणी स्वर्णासयीने अपने पतिकी जाय दाद लेनेके लिये निवेदन किया, तो विचारकर सरकारने महाराणीको उसके पतिका राज्य दे दिया. - महाराणीस्वर्णयमी सन् 1827 विक्रमीय सम्वत् 1884 में बर्दवानके जिलेके भटाकोल गावमें उप्तन्न हुई, और सन् 1838 विक्रमीय सम्वत् 1895 में विवाही गई तथा सन् 1847 विक्रमीय संवत् 1904 में पतिके राज्यकी स्वामिनी हुई, कुछ अप्रबंधोंके कारण राज्यपर बहुत ऋण होगया था, परन्तु रानीने ऋणके चुक जानेका विचार करके अपने नौकरोंमें से चुनकर राव राजि P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटोकासहित वलोचनको दीवान नियत किया, उसने थोडेही कालमें | प्रबन्ध करके सब ऋण चुकादिया. आज उस राज्यको / इतनी आमदनी है कि किसी देशके राजा नबाबको इतनी आमदनी न होगी. / राणी स्वर्णमयीके पुरुषार्थके सुन्दर काम देखकर सरकारने 10 अप्रैल सन् 1872 विक्रमीय संवत् 1929 में उसको महाराणीकी पदवी प्रदान की, और यहभी | कहा कि जिसको आप गोद लेंगी, वह माहाराज कहा जायगा, जनवरी सन् 1878 ईसवी विक्रमीय संवत् 1835 में भारतवर्षकी मुकुटपदवीसे विभूषित करनेके कमिश्नरने कासिमबाजारमें दरबार करके राजराजेश्वरीका | आज्ञापत्र और तकमा महाराणी स्वर्णमयीको दिया, और खडे होकर सभाके सामने महाराणीको प्रशंसा की... महाराणी स्वर्णमयीके पुण्यार्थ कामोंकी प्रशंसा जितनी कुछ की जाय थोडी है महाराणीने यह नवीन P.P: Ac. Gunratnasuri M.S. Sun Gun Aaradhak Trust Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 212 स्त्रीचरित्र नियम नियत कर दिया था, कि प्रतिवर्ष एक लाख रुपया पुण्यकार्यके निमित्त निकाल लिया जाया करे. लाखों रुयये महाराणीने धर्मार्थ प्रदान किये, - महाराणीके धर्मकार्योकी प्रशंसा की जाय तो एक स्वतंत्र ग्रन्थ वनजाय, इस कारण यहां महाराणीका संक्षिप्त वृत्तान्त लिखा है, इति / . .. - राजराजेश्वरी महाराणी विक्टोरिया, - इतिहासके प्रेमियोंसे यह वात छिपी नहीं है कि इङ्गलैण्डकी अवस्थाका परिवर्तन नार्मनलो!के उस देसमें आकर वसने पर हुआ, बादशाह विलियमने इस देशको जीतकर यहां अपना राज्य जमाया, महाराणी विकटोरिया उसी विलियमके वंशमें हुई, ईश्वरकी कुछ विचित्र लीला है कि संसारमें कहीं तो वंशों पूर्ण नाश हो जाता है, और कहीं एकही वंश सहस्रों वर्ष पर्यन्त राज्य करता चला जाता हैं, इङ्गलैण्डराजके राज्यसिंहासन - पर आज तक तीन स्त्रियोंने राज्य किया, पहिली महा राणी एलिजवेथ, दूसरी महाराणी ऐन, तीसरी हमारी P.P.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. . 223 राजराजेश्वरी महाराणी विक्टोरिया, तारीख 28 जून सन 1835 ईसवीको महाराणी विक्टोरियाके राज्या भिषेकका उत्सव बडी धूमधामके मनाया गयाथा, जिसमें सात लाख रुपये व्यय हुये थे, उस समय महाराणोको आयुष 19 उन्नीस वर्षकी थी क्योंकि महाराणी विक्टोरियाका जन्म 24 मई सन् 1819 ईसवीको हुआ था, महाराणी जब छ महीनेकी थी तबसे लेकर महाराणी होनेपर्यंत मिसलेहजनने महाराणीका साथ न छोडा पहिले पहल महाराणीको जर्मनभाषा सिखाई गई, पर जब वे नव वर्षकी हुई तव लैटिन, अंगरेजी, इतिहास, चित्र तथा गान विद्या आदिको शिक्षा दी जाने लगी, तीव्र बुद्धी होनेके कारण महाराणीने थोडेही दीनोंमें सबका मनन कर लिया. ____ महाराणीका विवाह प्रिन्स अलवर्टके साथ 10 फर्वरी सन् 1840 ईसवीको हुआ था, प्रिन्स अलवर्टकी सुंन्दरता, शांत स्वभाव और हंसमुख चेहरेको देखकर प्रत्येक स्त्री पुरूषका मन मोहित हो जाता था. . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224 / स्त्रीचरित्र. ... महाराणीपर अनेक आक्रमण हुये,परंतु भाग्यवती महाराणीको परमात्माने सब आक्रमणोंसे रक्षा को. - महाराणोके प्रथम कन्या उत्पन्न हुई, जिसका विवाह जर्मनीके राजराजेश्वरसे हुआ, जो आधुनिक राजराजेश्वरकी माता हैं, फिर प्रिन्स आफ वेल्स उप्तन्न हुये जो इस समय राजराजेश्वर सातवे एडवर्डके नामसे राजसिंहाननपर विराजते हैं, इनका जन्म नवम्बर सन् 1841 को हुआ; एवं सब मिलाकर नव सन्तान उत्पन्न हुये, उनमें से इस समय 4 कन्यायें, और 2 पुत्र वर्तमान हैं. महराणी विक्टोरियाका भारतवर्षसे पूर्ण सम्बन्धहै, क्योंकि भारतवर्षकी समस्त प्रजा महाराणीको अपनी माता समझती है और अतिकाल महाराणीने भारतवर्षकी रक्षामें तत्पर होकर यहांका राज्य किया यद्यपि सन्१९०१ के प्रारंभमें महाराणीका पर लोक वास होगया. तथापि महागणीके गुणोंका स्मरण करने तथा राज्य . प्रवन्धसे ऐसाही भान होने लागता है कि मानों अभी P.P.AC. Gunfatnasuri M.S.. Gun Aaradhak.Trust: Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 225 भाषाटीकासहित. तक जीवित हैं, इसमें सन्देह नहीं कि महाराणीका नाम इस भारतवर्षमें सर्वदा अमर रहेगा... महाराणीके स्वभावकी सरलता और उत्तमताका वर्णन जहां तक किया जाय, थोडाहै... . महाराणी अपने राजभवनके चारों ओर रहनेवाले दीन दुःखियोंकी सेवा सुश्रुषा स्वयं किया करती थीं.... - प्रायः प्रातःकाल निकलके झोपडोंमें घूमकर दीन दुःखियोंकी सुधिले आवश्यक वस्तुओंसे उनकी सहायता करतीं, और यह कहीं नहीं प्रगट करतीं कि हम इङ्गलैण्डकी महाराणी हैं, कई अवसरोंपर महाराणीको स्वयं उस समय तक रहना पडा, जब तक मृत प्रायः स्त्रीपुरुषकी आत्मा इस अनित्य शरीरको छोड सुरधामको न सिधार गई. सारांश यह है कि महाराणी अपनी प्रजासे सदा अति स्नेह रखती थी, और उनके दुःखसुखमें अपनी वास्तविक सहानुभूति प्रकट करती थी,महाराणीसा सजन,सरल और मृदु स्वभाव राजगणोंमेंसे विरलेही किसीके भाग्यमें होगा, - - - - P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___226 स्त्रीचरित्र. भारत प्रजापरभी महाराणीका कितना स्नेह था, यह भारतवासी भलीभाँति जानते हैं, भारतकी प्रजा परमभक्त हैं, सो जानकर महाराणीने कई वार भारतवर्षमें आनेका विचार किया पर कई कारणोंसे यह इच्छा महाराणीको पूरी न हो सकी, अब अन्तमें सच्चिदानंद परब्रह्म परमेश्वरसे हमारी यही प्रार्थना है कि, महाराणीकी आत्माको शाति दे और उनके वंशजोंको सुबुद्धीप्रदान करै, तथा उनके यशकी दिनों दिन वृद्धि हो इति। - दोहा. उनइससै अरुसाठिमें, विक्रम संवत् जान / चैत्र कृष्णकी दुइजको, भृगुवासर पहिचान // 1 // ता दिन पूरयो ग्रन्थ यह, नारायण मन लाय / व्रजवल्लभहित वंवई, भेज्यो मोद वढाय // 2 // इति श्री स्त्रीचरित्र द्वितीयभागोत्तरखण्ड सम्पूर्णम् // - स्त्रीचरित्र द्वितीयभाग समाप्तम् // "P.P.AC.GunratnasuriM.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाहिर खबर. पतिव्रतामाहात्म्य, कौशिकब्राह्मणधर्म .. व्याधका संवाद. . इसे भाषावार्तिक रीतसे बंगालीलाल परमानन्द सु हानेने सर्व सुजनोंके विनोदार्थ बनाया है कि जिस्में ___माता पिताकी शेवा रूप परम धर्म तथा पतिव्रता स्त्रीका उत्तम धर्म भलीभातिसे दर्शाया है कि जिसके बाचनेसे स्त्री पुरुष दोनोंको यथार्थ धर्म संबंधी ज्ञान हो शक्ता है. यह ग्रन्थ अपूर्व हैं इसे देखतेही लोग प्रसन्न करेंगे इसलिये अनेक महाशयोंकी प्रेरणासे हमने इस ग्रन्थको अत्युत्तम रीतसे उत्तम कागजपै सुन्दर लोहाक्षरोंमें छपवायके प्रसिद्ध किया है, की. 4 आ. ट. 1 आ. अकबर बीरबर वाणीविलास.. - वीरवरके चित्र व चरित्रसहित इसमें उस अकवर बीबरकी नर्मकोविदता और वाक्चातुर्यका परम रमणीय प्रस्ताव है कि जिसके गुढतर मानव मनोहर प्रश्नोत्तर वाचकको लोकोत्तर आनन्द देनेवाले हैं लेखक रघुवंश शर्माके करकमलित ललित AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्णमधुर बचनरचनाके पुस्तक अन्यत्रभी छपे हैं परंतु इतना विस्तार और ऐसा उत्तम प्रकार किसी पुस्कमें नहीं है इसमें प्रश्नोंत्तरोंकी संख्या तीनसौके लगभग हैं. पुस्तक अपूर्व और संग्रह करनेयोग्य है. मूल्य केवल 1 / रु. सेही ग्राहकोंके पास पहुं दिया जायगा. आल्हा-कंसवध। महाशयो! वीरपुरुषोंको आल्हादित करनेवाले आल्हा छन्दके प्रभावको कौन नहीं जानता, कि जिसके सुननेसे कायरभी शूरताके . जोशमें आकार भुजदण्डोंको उकसाता हुआ मूछोंको मारोडने लगता है. इसी बोरमनोरंजक छन्दमें हमने कंसवधका उल्था कराया है. कि जो आल्हाका आल्हा और भगवद्गुणानुवाद अर्थात् एक पंथ दो काज,आल्हारसिकोंको इसका संग्रह अवश्य . करना चाहिये मू.- 4 आना डा. म. 1 आना.. - हरिप्रसाद भगीरथजीकापुस्तकालय-कालकादेवीरोड़ रामवाड़ी-मुम्बई. P.P. Ac. Gunrainasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust