________________ - भाषाटीकासहित. 55 रोम्यहम् ॥५॥त्रयस्त्रिंशद्यथादेवाः सर्वे श-: ऋपुरोगमाः॥ सम्पूज्य सर्वलोकस्य तथा वृद्ध विमौमम् // 6 // . ___अर्थ- हे भगवन् ? ये मेरे पिता और माता हैं सो मेरे परमदेवता है,जो पूजन देवताओंके निमित्त योग्य है वही मैं इनकी करता हूं, // 5 // जिसप्रकार इन्द्रादिक तेंतीस देवता सबलोकोंको पूजनीय हैं उसीप्रकार ये वृद्ध माता पिता मुझे पूज्य हैं॥६॥ इन्हीं दोनौंको में अग्नि, यज्ञ, चारा वेद, और सब समझता हूं. मेरे प्राण, धन,स्त्री, पुत्र, मुहृद औरभी जो कुछ मेरे पास है, सो सब इन्हींके निमित्त है, इनकी पूजा मैं नित्य स्त्री पुत्रोंसहित करता हूं, अपनेही हाथसे इनको प्रतिदिन स्नान कराता, पादप्रक्षालन करता, और भोजन खिलाताहूं, इनका काम कैसाभी हो मैं उसको धर्म समझकर करताहूं, इनकी सेवा मैं आलस्य छोडकर करताहूं,ऐश्वर्यकी इच्छा करनेवाले मनुष्यके माननीय गुरु, पांच हैं. 1 पिता, 2 माता, 3 अनि, 4 आत्मा, गुरु, जो / P.P. Ac. Gunratnasyri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust..