________________ - स्त्रीचरित्र मनुष्य लोके मनुजस्य कश्चित् // यत्तेन कि चिंबिकृतं हि कर्म तदस्यते नास्ति कृतस्य नाशः॥४॥ ... अर्थ-इस मनुष्यलोकमें एकके कियेहुये कर्मका फल दूसरा कोई नहीं भोगता है, किन्तु जिसने जो कुछ कर्म किया है उसका फल वही भोगता है क्योंकि कर्मका नाश कभी नहीं होता है // 4 // इसप्रकार अनेक शुभ वचन धर्मसम्बन्धी सुनाका धर्म व्याध उस ब्राम्हणको अपने घरके भीतर लिवा ले गया जहां उसके वृद्ध माता, पिता प्रसन्नमन सुन्दा आसनपर बैठे थे, धर्म व्याधने जातेही उन दोनोंक प्रणाम किया, उन्होंने आशीर्वाद दिया और ब्राम्हणका देखकर प्रणामपूर्वक सत्कार किया, अनन्तर धर्मव्याधस ब्राह्मणसे कहा कि.. मू-पिता माता च भगवन्नेतौ मद्देवत म्परम् // यद्देवतेभ्यः कर्तव्यं तदेताभ्यां क Ac:Gunratnasure