________________ भाषाटीकासहित. 53 सत्तम / पञ्चैतानि पवित्राणि शिष्टाचारेषु नित्यदा // 3 // अर्थ--धर्म व्याध कहता है हे द्विजोत्तम ! यज्ञ, दान, तप, वेद, सत्त्य, ये पांच कर्म पवित्र है सदा शिष्टाचारमें गिने जाते है, अर्थात् शिष्टाचारोंमें इनकी गणना हैं // 3 // सर्वतो भावसे शिष्टाचारमें प्रवृत्त रहनेवाला पुरुष जिस वृत्तिको करता है, वह सर्वदा सुखी रहता है. वे. दका सार सत्य हैं, सत्यका सार दम (इन्द्रियोंको विष योंसे रोकताह) दमका सार त्याग अर्थात् दान हैं, जिस मनुष्यका जैसा स्वभाव होता है, वह अपने स्वभावके / अनुसार वैसाही रहता है, जिसका मन वशमें नही है / वह पापात्मा, क्रोध, काम, आदि दोषोंको ग्रहण करलेता है, जो मनुष्य आस्तिक, वेदमार्गपर चलनेवाले, ब्राम्हणोंको माननेवाले और सदाचारसम्पन्न है, वेही स्वर्गवासी होते है. मू-अन्योहि नाश्नति कृतं हि कर्म P.P.AC.Gunratnasuri M.S.: Jun Gun Aaradhak Trust