________________ स्त्रोचरित्र. संग्राम हुआ, धोखा देकर महाराज पृथिवीराज पकडलिये गये, और मारे गये, यह सुन संयोगताने सती होनेका निश्चय करके अपने स्वामीका शिर मांगा, तब उस दुरात्मा यवनाधीशने संयोगता पर मोहित होकर बहुत कुछ समझाया बुझाया, कि तुम व्यर्थ अपने इस कोमल शरीरको अग्निमें भस्म करना चाहती हो; संयोगताने बादशाहको ऐसे जवाब दिये कि, जिससे उसको विश्वास होगया कि यह रानी किसी प्रकार नहीं मानेगी, अन्तको महाराजका शिर उसको देदिया, तब सबके देखते देखते पतिका शिर गोदमें लेकर संयोगता सती होगई, सुवर्णके कटोरेमें जल पीकर जितना जल महाराज छोड गये थे, उस दिनसे सती होने पर्यन्त उतनाही जल पीकर संयोगताने अपना प्राण धारण किया था, कविचन्दने अपने ग्रन्थका एक खंड इसी रानीके तप और शारीरक कष्ट सहनेके वर्णनमें लिखा है, रानी * संयोगताके समयके महलोंके चिन्ह पुरानी दिल्लोके खड . हरोंमें अब तक मिलते हैं, रानीके रंगमहलका खण्ड P.P: Ac. Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust