________________ स्त्रीचरित्र. ब्राम्हणोंका अपमान करती है, हे गर्ववाली, तू नहीं जानती कि ब्राह्मणोंको इन्द्रादिक देवताभी प्रणाम करते है, पृथिवीपर रहनेवाले मनुष्योंकी क्या गिनती है, क्या तूने वृद्ध लोगोंसे उपदेश नहीं पाया, अग्निवे समान ब्राह्मण अपने तेजसे इस पृथ्वीकोभी भस्म करसकते हैं, यह सुनकर वह स्त्री बोली, हे तपोधन मैं वह बगुली नही हूं, जिसको तुमने कोधदृष्टिसे मा दिया था, आप क्रोधको त्याग दो, कोषदृष्टिसे देखका तुम मेरा कुछ नहीं करसकोगे, ब्राह्मणलोग शान्त स्वभाववाले देवताके समान होते हैं. उनका अपमान मैं नहीं करती हूं, हे विप्र, तुम मेरा अपराध क्षम करो, मैं ब्राम्हणोंके माहात्म्यको भलीभांति जानती हूं, महातपस्वी ब्राह्मणोंकेही क्रोधसे समुद्र खार किया गया है, ब्राम्हणोंका क्रोधामि दंडकवनमें अबतक शान्त नहीं हुवा है, महात्मा ब्राह्मणोंके बडे 2 प्रभा सुननेमें आते हैं, हे द्विजवर, पतिकी सेवा करनाई स्त्रीका परमधर्म है, उसके फलको तुमने प्रत्यक्ष देखा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust