________________ भाषाटीकासहित. कोही साक्षात् देवता मानती थी, सास, श्वसुर आदिकीभी यथोचित सेवा करती थी, और देवता, अतिथिकाभी यथाशक्ति सत्कार करती थी, सबके भोजन करने पश्चात् आप भोजन किया करती थी, और इन्द्रियोंको सर्व तो भावसे अपने वशमें रखती थी, जब सब कामसे निश्चित हुई, तब वह स्त्री भिक्षाके निमित्त द्वारपर स्थित हुये ब्राह्मणका स्मरण आजानेसे भिक्षा लेकर गई, और उसको देखकर बहुत लजित दुई, ब्राह्मणने उस स्त्रीको देखकर कहा कि, इतनी देर मुझको भिक्षा देनेके अर्थ क्यों की यह कह क्रोधदृष्टिसे देखने लगा, तब वह स्त्री ब्राम्हणसे बोली कि, मैं अपने पतिको सबसे बढकर देवता मानतीहूं, इस समय मेरा पति बाहरसे भूखा और थका आया था, उसकी सेवा करनेमें लगगई, इस कारण आपको भिक्षा देनेको न आसकी. ... - यह सुन ब्राम्हण बोला, तू अपने पतिको ब्राह्मणसेभी श्रेष्ठ मानती है, और गृहस्थधर्ममें रहकरभी P.P. Ac. Guhratnasuri M.S. Jun Gun, Aaradhak. Trust