________________ स्त्रीचरित्रः अरिसन्मुख नहिं नवै फिरैकिनवनवन खेर वरुदिनकर पश्चिमउऐ ग्रहपति पूर्व अथायें। सागर मर्यादातजै पंकजगगनलखायं // पंकज गगन लखायं केसरी खरवरुखावें। नभ नक्षत्र करमिलैं केदली फेरि फरावें // . जबलों तनमें प्राण प्राणमें वुद्धिरतिकभर। तजै नहठपरताप उऐ पश्चिम वरुदिनकर॥३. अकबरके दरिमें पृथ्वोराजका समय पाय बचन.. . महाराणा प्रतापसिंहकी ओरले सन्धिरूपी किम्बदन्तीको सुनकर पृथ्वीराजने दिल्लीसे महाराणाको पत्र लिखा उसको पढकर प्रतापसिंहका वचनपराधीन व्है कौन चहै जीवो जगमाहीं। को पहिरै दासत्व शंखला निज पग माहीं॥ इक दिनकी दासता अहै शतकोटि नरकसम | पलभरको स्वाधीनपनो स्वर्गहुते उत्तम॥४॥ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.