________________ भाषाटीकासहित. बहुत अच्छा, तब वह व्याध ब्राह्मणको अपने घर लिवा लेगया, और उस सुन्दर भवनमें उत्तम आसनपर बिठाय अर्घपाद्यादिसे यथोचित पूजन किया. अनन्तर जब वह ब्राम्हण सुखपूर्वक बैठा, तब उस व्याधसे बोला, हे व्याध , यह कर्म आपके योग्य नहीं है ऐसा - मुझे जान पडता है, आपके इस घोर कर्मको देख मुझे - बडा खेद होता है, यह सुनकर व्याध बोला. हे विप्र ? यह कुलोचित धर्म हमारे पिता, पितामहादिकोंका किया हुआ है, उसीमें मैं भी प्रवृत्त हूं, आप इसमें खेद न कीजिये, विधाताने जो कर्म पूर्वकालसे हमारे लिये रचा है उस कर्मको मैं करता हूं और बडे यत्नसे वृद्ध मातापिताकी सेवाभी करता हूं. मैं सत्य बोलता हूं, किसीके गुणोंमें दोष नहीं लगाता हूं. यथाशक्ति देवता, अतिथि, सेवकों दानभी करता हूं, और शेष अन्नसे अपनी जीविका करता हूं, किसीको दोष नहीं लगाता हूं. किसीकी निन्दा नहीं करता हूं, इस संसारमें खेती, गारेक्षा, वाणिज्य, दंड नीति, त्रयीविद्या; ये जीविकाके P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust.