________________ .. स्त्रीचरित्र. यवन शीश पगधरि वैर अपनो पलटायो। लक्खो राणाशीश राजलक्ष्मी तब आई। लक्ष्मी चारो ओर मनहं छाई छितराई॥ किये पहाडी प्रान्त आप वस रत्नखानिसह। सोना चांदी रत्न अमोलक बडे महल मह॥ किले महल बहु बने राजश्रीचहदिशि राजे। फीके शत्रुहिं किये अटल शिरछत्र दिराजे॥ प्रबल पराक्रम साथ पौत्र कुंभा जब बैठे। शत्रु हृदय दलमले कूर कायर घर पैठे॥ कविकुलमुकुट कहाइ नामथिर जगमेंथापे। विजयकियो गुजरात यवनहियभयसोंकांपे। याही कुलरानी मीर जग कीरति छाई। गिरिधर लाल रिझाई बहुत विधिलाडलडाई। राणा सांगा कीरति जगमेंको नहिं जाने। जाके असिको तेज शत्रुजिय सहजहिं माने।