________________ स्त्रीचरित्र. कर्म जुगुप्सितेन ॥निरीक्ष्यकृष्णाऽपकृतं - गुरोः कृतं वामस्वभावा कृपया न नाम च // 32 // उवाच चासह त्यस्य बंधनानयनं सती / मुच्यतां मुच्यतामेषा ब्राह्मणो नितरां गुरुः // 33 // अर्थ-पशुके सामान रस्सीसे बांधकर लायेहुये, बालहत्यारूप दुष्कर्म करनेसे नीचामुख कियेहये महारथी उस गुरुपुत्र (अश्वत्थामा) को देखकर, सुशीला द्रौपदीको दया आगई, और तत्काल उसको प्रणाम किया 32 // तथा तिसके बंधकर आनेको न सहनेवाली पर तिव्रता द्रौपदी शीघ्रतासे कहने लगी, कि इसको अभी इसीसमय छोडो, छोडो, यह ब्राह्मण तुह्मारा सा. क्षात गुरुहै॥ 33 // मू-सरहस्यो धनुर्वेदः सविसर्गोपसंयमः / अस्त्रग्रामश्च भवता शिक्षितो यदनुग्रहात्३४ .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust