________________ भाषाटीकासहित. स एष भगवान् द्रोणः प्रजारूपेण वर्तते / तस्यात्मनोऽर्धपत्न्यास्तेनान्वगाहीरसूकृपी तधर्मज्ञमहाभाग भवद्भिौरवं कुलं // ब्रजिनंनाहतिप्राप्तुंपूज्यं वंद्यमभीक्ष्णशः३६ . अर्थ-क्योंकि गुप्त मंत्रों सहित धनुर्वेद और छोडना तथा लौटाना इन रीतियों सहित सकल अस्त्र तुमने जिनकी कृपासे सीखे // 34 // वहही यह भगवान् द्रोणाचार्य पुत्र रूपसे विद्यामान हैं (अन्यत्रभी लिखाहै, “आत्मावैजायतेपुत्रः ' पुत्रअपनी आत्मा होता है) और तिन द्रोणाचार्यके शरीरका आधाभागरूप 'कृपी' नामा उनकी स्त्रीभो अभी जीवित, वहवीर माता होनेके कारण पतिके साथ परलोकको नहीं गई, (पुत्रवाली स्त्रीको शास्त्रमें सती होनेका अधिकार नहीं है)॥३५॥f ससे हे धर्मज्ञ ! हे महाभाग! तुम्हारे वारंवार पूजने और वन्दना करने योग्य जो गुरु कुला, वह तुमसे दुःख पानेके योग्य नहीं हैं // 36 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S Gun Aaradhak Trust.